हम में से कोई जब विदेश यात्रा से लौटता है और वहां की साफ-सफाई व बेहतर व्यवस्था की तारीफ करता है, तो मन में सवाल उठता है कि क्या हमारे देश में भी वैसा स्वच्छ वातावरण नहीं बनाया जा सकता? अरस्तू ने कहा था, नागरिकता के नियमों और सामाजिक न्याय के बिना मनुष्य सभी जीवों से अधिक खतरनाक है. मनुष्य ने जो भी उन्नति की है, वह समाज में रह कर ही की है. इसलिए अगर हम समाज-हितकारी नियमों का अपने आप पालन नहीं करते और उसकी तरक्की में सहयोग देना अपना कर्तव्य नहीं समझते, तो हम समाज में रहने के योग्य नहीं हैं.
हाल के वर्षो में नागरिकता की भावना में काफी कमी आयी है और हम सामाजिक हित के बजाय व्यक्तिगत लाभ को अधिक महत्व देने लगे हैं. हम दूसरों के हित-अहित का ख्याल नहीं रखते और अपने लाभ या खुशी के लिए समाज विरोधी व्यवहार करने तक को तैयार हो जाते हैं. कहने का अर्थ यह नहीं कि हमें अपना हित छोड़ कर केवल समाज का हित करना चाहिए. हम कम से कम ऐसे कार्यो से बचे रहें, जो हर व्यक्ति के लिए असुविधाजनक अथवा हानिकारक सिद्ध होते हैं. सार्वजनिक स्थानों को गंदा करना हमारी आदत में शामिल है.
हम हाट-बाजार, गली, मंदिर, आश्रम, मुसाफिरखाना, प्लैटफॉर्म, रेल के डिब्बे, मोटर-बस, धर्मशाला, होटल, सार्वजनिक पार्क अथवा मनोरंजन के स्थानों को आदतन गंदा करते हैं. हम आते या बैठते समय तो अपने लिए साफ जगह ढूंढ़ेंगे, पर चलते समय इस बात की जरा भी चिंता नहीं करेंगे कि दूसरों के लिए इसे कितनी गंदी हालत में छोड़े जा रहे हैं. अगर हर व्यक्ति एक-दूसरे का ख्याल रखने लगे, तो समाज की कई समस्याएं स्वत: दूर हो जायेंगी.
सतीश कुमार, ई-मेल से