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रुसवा साहब अब चौक पर नहीं आते

।।सत्य प्रकाश चौधरी।।(प्रभात खबर, रांची)रुसवा साहब ने पिछले कुछ दिनों से चौक पर आना छोड़ दिया है. दरअसल जैसे ही वह पप्पू पनवाड़ी के यहां पहुंचते, कोई न कोई मोदी पर चर्चा छेड़ देता और उन्हें कनखियों से कुछ इस अंदाज में देखता मानो कह रहा हो–’बहुत उड़ लिये कांग्रेसी राज में, अब पता चलेगा […]

।।सत्य प्रकाश चौधरी।।
(प्रभात खबर, रांची)
रुसवा साहब ने पिछले कुछ दिनों से चौक पर आना छोड़ दिया है. दरअसल जैसे ही वह पप्पू पनवाड़ी के यहां पहुंचते, कोई कोई मोदी पर चर्चा छेड़ देता और उन्हें कनखियों से कुछ इस अंदाज में देखता मानो कह रहा होबहुत उड़ लिये कांग्रेसी राज में, अब पता चलेगा बेटा. रुसवा साहब ने दोचार दिन तक तंज करती, धमकाती नजरों को ङोल लिया, फिर तय किया कि उन्हें चौक पर जाना ही नहीं है. पान खाने का शौक तो घर पर पनडब्बा रख कर भी पूरा किया जा सकता है. रुसवा साहब यह भी समझते हैं कि वह अदनासे शायर हैं, कोई यूआर अनंतमूर्ति की तरह नामी लेखक नहीं कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर देश छोड़ने की चेतावनी दे डालने का जोखिम उठा लें, सो उन्होंने चुपचाप घर में बैठना ही कबूल कर लिया. यह अलग बात है कि पप्पू पनवाड़ी रोज मुझसे उनका हाल और उनके आने की वजह पूछता रहता है. मैं बीमारी वगैरह का बहाना बना कर उसे टरका देता हूं.

क्योंकि अगर मैंने उसे असली बात बता दी और बात फैल गयी, तो मामला सांप्रदायिक रंग पकड़ सकता है. वैसे भी मुजफ्फरनगर के बाद यह यकीन पक्का हो गया है कि पीनेवालों को भले ही पीने का बहाना चाहिए हो, पर दंगा करनेवालों को दंगे का बस बहाना चाहिए. वे मुर्दा गाय और सुअर को लेकर दंगादंगा खेल लेते हैं, यहां तो मामला पीएम इन वेटिंग-2 का है. खैर, दोचार दिन और उनकी राह तकने के बाद मैं उनके घर पहुंच गया. जनाब टीवी देख रहे थे. मुङो देखते ही रिमोट से आवाज कम की और चहकते हुए बोले, ‘‘मियां सुप्रीम कोर्ट ने तो कमाल कर दिया. आधार कार्ड को निराधार बना दिया.’’ मैंने कहा, ‘‘तो इसमें इतना खुश होने की क्या बात है.’’ उन्होंने जवाब दिया, ‘‘बिल्कुल खुश होने की बात है.

मुल्क की सियासी हवा किस तरह बिगड़ रही है, तुम देख ही रहे हो. करनैलजरनैल भी सियासत में कूद रहे हैं. खुदा खास्ता, ऐसे में अगर कोई फासिस्ट किस्म का आदमी गद्दी पर बैठ जाये और वह किसी खास जातिमजहब के लोगों का सफाया करने की सोच ले, तो सोचो क्या होगा..’’ मैं उनका इशारा समझ गया. हिटलर ने भी हर नागरिक का ब्योरा इकट्ठा कराया था. साथ ही आइबीएम कंपनी से कार्ड सॉर्टिग मशीनें बनवायी थीं, जिससे किसी भी नागरिक का पूरा ब्योरा पलक झपकते ही हाजिर हो जाता था. यहूदियों के नरसंहार के लिए इसी मशीन की मदद से उन्हें चिह्न्ति किया गया था. एडविन ब्लैक नामक एक पत्रकार ने इस पर आइबीएम एंड होलोकास्ट नामक बहुचर्चित किताब भी लिखी है. इसमें कोई शक नहीं कि फासीवादी निजाम में आधार कार्ड के नाम पर इकट्ठा किया गया डाटा बड़ा खतरा बन सकता है. बेहतर होगा कि सुप्रीम कोर्ट पूरा डाटा नष्ट करने का आदेश दे. हो सकता है कि इससे रुसवा साहब के दिल में थोड़ा और भरोसा जगे और वह चौक पर फिर से आने लगें.

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