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भ्रष्टाचार के रोग से ग्रस्त खेल

एमजे अकबर प्रवक्ता, भाजपा ब्लाटर अपनी तलवार पर अपमान में नहीं गिरे हैं, उन्हें धक्का दिया गया है क्योंकि बहुतों की जान सांसत में थी. कभी खेल भावना से पूर्ण खेल अब धोखाधड़ी का मामला बन गया है. कुछ बदले, तभी इन खेलों का भविष्य है.बीसवीं सदी के ज्यादातर हिस्से में देखने का खेल फुटबॉल […]

एमजे अकबर

प्रवक्ता, भाजपा

ब्लाटर अपनी तलवार पर अपमान में नहीं गिरे हैं, उन्हें धक्का दिया गया है क्योंकि बहुतों की जान सांसत में थी. कभी खेल भावना से पूर्ण खेल अब धोखाधड़ी का मामला बन गया है. कुछ बदले, तभी इन खेलों का भविष्य है.बीसवीं सदी के ज्यादातर हिस्से में देखने का खेल फुटबॉल था, अगर आपको मैच का टिकट मिल जाये, और सुनने का खेल क्रिकेट था, अगर आपके पास रेडियो हो.

भारत हॉकी के रूप में एक बीच का रास्ता निकाल सकता था, किंतु कुछ समय के गौरव के बाद यह खेल हाशिये पर चला गया जिसके कारणों पर विद्वान आज भी गौर नहीं करते और इस वजह से इस बारे में आम समझ भी नहीं बन सकी है.

क्रिकेट की तुलना में फुटबॉल कम समय का खेल था और इस कारण उसमें गति थी. आर्कटिक की ठंड और रेगिस्तानी गरमी के अलावा उसे मौसम से दिक्कत न थी. क्रिकेट एक रूसी उपन्यास की तरह था, जो कभी खत्म ही नहीं होता था, तथा वह इतना अनिश्चित था कि हल्की बारिश भी उसे रोक सकती थी.

पुराने दिनों में एक टेस्ट मैच हफ्ते भर चलता था. तब क्रिकेट नौकरीपेशा लोगों के बुते की बात नहीं था, भले ही ढीले नियमों वाली सरकारी नौकरी ही क्यों न हो. जिन्हें अपनी नौकरी या पेशे में ऊपर जाने की धुन थी, उनके लिए तो इसकी सिफारिश नहीं की जा सकती थी.

इसी कारण इसे अजीब कहकर अमेरिकियों ने खारिज कर दिया. इसके अधिकांश दर्शक युवा थे, जिनकी उम्र अभी नौकरी की नहीं हुई थी, और जो बोरियत से भरे सेवानिवृत उच्च वर्ग के बैठनेवाले हिस्से का रोचक विलोम प्रस्तुत करते थे.

क्रिकेट और फुटबॉल के प्रशंसक परंपरागत रूप से वर्गीय आधारों पर बंटे हुए होते हैं. हर कथन की तरह यह भी कुछ गलत है. फुटबॉल ने अपने ठोस आदिम रूप के कारण वर्ग की सीमाओं को लांघा है. भारत में यह समुदायों के रूप में प्रतिबिंबित हुआ है. कोलकाता की पुरानी प्रसिद्ध टीमें- मोहन बागान, इस्ट बंगाल और मोहम्मडन स्पोर्टिग- जातीय आधार पर थीं, जो क्रमश: पश्चिम बंगालियों, पूर्वी बंगालियों और मुसलिमों की टीमें थीं.

समुदाय वर्गों को अपने में समाहित कर लेता है. वकील रसोईयों से आगे निकल जाते हैं. जुनून बहुत मजबूत होता है. बड़े मैचों से पहले और बाद में चर्चाएं कोलकाता की चाय दुकानों की अर्थव्यवस्था को संवारते हैं. इंग्लैंड में चर्चाओं और पैसे का बहाव शराबखानों की ओर होता है.

भूगोल ने निष्ठा के लिए एक समानांतर ब्रह्मांड उपलब्ध कराया था, जिसमें भावनाओं का आना-जाना था. लेकिन इससे जुनून में कमी नहीं आयी. अगर लोगों को किसी झंडे की प्यास होती है, तो कोई भी मसला उपयोग में आ सकता है.

खेल के जनाधार में पहली गंभीर बढ़त 1960 के दशक में ट्रांजिस्टर के आने के साथ हुई. टेलीविजन क्रांति के साथ मामले का रुख बदल गया. जहां बाजार होगा, वहीं खरीद-बिक्री होगी. जहां विज्ञापन होगा, वहीं पैसा होगा. जहां पैसा होगा, वहां बढ़त और ललक होगी. जहां ललक होगी, वहां वे लोग होंगे, जो इसे नियंत्रित न कर सकेंगे. तर्क तो यह समझाता है कि धन लालच को कम कर करता है क्योंकि इसने जरूरत पूरी कर दी है और आराम की चाह को संतुष्ट कर दिया है.

लेकिन मनुष्य तार्किक नहीं होता. उनका व्यवहार उलटा भी हो सकता है. आम तौर पर गरीब धनिकों से अधिक ईमानदार होते हैं क्योंकि वे अपने सीमित साधनों में जीना सीख गये हैं. धनरापनी पीठ खुजाने के लिए सुनहरे नाखूनों की लगातार इच्छा करता रहता है.

जब से बहुत धन आया है, फुटबॉल और क्रिकेट दोनों ही भ्रष्टाचार की बीमारी से ग्रस्त हो चुके हैं. ऐसे में खिलाड़ियों का पेशेवर जीवन भी छोटा होने लगा है और उनमें से अधिकतर लोगों को कुछ नहीं सूझता, जब पलक झपकते ही कैरियर समाप्त हो जाता है. किसी टीम के हर दो हीरो की तुलना में नौ बहुत जल्दी भुला दिये जायेंगे और बाहर बेंच पर बैठे दो दर्जन खिलाड़ियों को तो कोई याद भी न करेगा. बड़े-बड़े खिलाड़ी और टीमें भ्रष्टाचार में लिप्त पायी गयी हैं.

सामने आये हर ऐसे मामले की तुलना में दस और मामलों होंगे, जो पकड़ में नहीं आ सके. इस रोग की दरुगध इसलिए लंबे समय तक बनी रहती है, क्योंकि यह सड़न ऊपर प्रबंधन के स्तर तक है. भारतीय क्रिकेट के सबसे शक्तिशाली नाम सटोरियों से संबद्ध हैं. खाने-खिलाने के नियम पर यह पूरा तंत्र संचालित हो रहा है, जिसमें कमेंटेटर भी शामिल हैं.

विश्व फुटबॉल फीफा के 17 वर्षो तक प्रमुख रहे सेप ब्लाटर के खुलासे के बाद परेशान है. यह एक परस्पर लाभदायक भागीदारी थी. जो विश्व कप को अपनी हैसियत का पैमाना मानते हैं, वे फुटबॉल को नियंत्रित करनेवाले इस भ्रष्ट लोकतंत्र में अपनी सफलता खरीदने के लिए तैयार है.

नीलामी की प्रक्रिया के बाद किसी की भी संपत्ति घटती नहीं है, बस खेल को ही नुकसान होता है. ब्लाटर अपनी तलवार पर अपमान में नहीं गिरे हैं, उन्हें धक्का दिया गया है, क्योंकि बहुतों की जान सांसत में थी. कभी खेल भावना से पूर्ण खेल अब धोखाधड़ी का मामला बन गया है. कुछ बदले, तभी इन खेलों का भविष्य है.

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