प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वतंत्र भारत में पैदा होनेवाले पहले प्रधानमंत्री हैं. तो वहीं मेरा जन्म सन 1962 के भारत-चीन युद्ध के लगभग एक दशक बाद हुआ. किस्से-कहानियों से लेकर किताबों तक में इस युद्ध के बारे में जो जाना उसका निचोड़ यही है कि ‘हिन्दी-चीनी भाई-भाई’ की बात करनेवाले पंडित जवाहरलाल नेहरू को चीनियों ने जबरदस्त धोखा दिया. भारत शुरू से ही अहिंसा का पुजारी है, साथ ही अपने पड़ोसियों पर भरोसा भी करता है.
लेकिन दो पड़ोसियों चीन और पाकिस्तान से उसे धोखा मिल चुका है. अगर मैं गलत नही हूं, तो शायद भारत-चीन युद्ध के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री के चीन के दौरे को लेकर देश से लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय तक में इतनी दिलचस्पी है. हम एक बार धोखा खा चुके हैं इसलिए सतर्क भी हैं. 1962 के युद्ध जैसी अब हमारी स्थिति भी नहीं है. अब हम भी विश्व की एक बड़ी शक्ति बन चुके हैं. चीन ने भी भारत को परमाणु शक्ति मान लिया है. वैसे चीन दोस्ती का हाथ बढ़ाता तो है, लेकिन सीमा पर उछल-कूद करने से बाज भी नहीं आता है. सीमा पर घुसपैठ की खबरें हम जब-तब अखबार में पढ़ते ही रहते हैं.
हाल ही में उसने पाकिस्तान की पीठ पर भी हाथ रखा है. उसके यहां 43 अरब डॉलर का निवेश कर रहा है. प्रधानमंत्री के दौरे के पहले सीमा विवाद और अरुणाचल प्रदेश पर चीन का जो बयान आया उसे सुखद तो नहीं ही कहा जा सकता है. हम जहां ‘मेड इन इंडिया’ से आगे ‘मेक इन इंडिया’ की तरफ बढ़ रहे हैं, वहीं चीन भारतीय बाजारों पर अपना कब्जा बढ़ाता जा रहा है. यह कब रुकेगा पता नहीं. बड़ी अजीब स्थिति है कि हमारी लक्ष्मी (पैसा) चीन जा रहा है और वहां से आयी लक्ष्मी (प्रतिमा) की हम पूजा कर रहे हैं. ‘मेड इन चाइना’ सामान से हम जिस तरह खुश होते हैं वैसा गौरान्वित ‘मेड इन इंडिया’ सामान देख कर नहीं होते हैं.
चीन युद्ध की कई कहानियां सुनी हैं और पंडित नेहरू का भी धोखे को लेकर मन टूटने की भी चर्चा कइयों के श्रीमुख से सुन चुका हूं. मैं विदेश मामलों को जानकार तो नहीं हूं, लेकिन हर भारतीय की तरह अपने देश की भलाई किस में है यह जरूर जानता हूं. उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रधानमंत्री का चीन दौरा सफल साबित होगा. मेक इन इंडिया, मेड इन चाइना पर भारी पड़े. उससे भी अहम यह है कि चीनी भाई इस बार धोखा मत देना और भरोसे को टूटने मत देना. अब 1962 नहीं है. इस बार भरोसा टूटा तो चालीस करोड़ को नहीं सवा अरब को हिमालय पुकारेगा तो इसका मतलब आसानी से समझा जा सकता है. इसलिए दरके ‘हिन्दी-चीनी भाई-भाई’ के रिश्ते को पाटने का यह शायद अंतिम मौका है और मौके का लाभ तो उठाना ही चाहिए. मौके पर चूकना समझदारी नहीं होगी.
दीपक कुमार मिश्र
प्रभात खबर, भागलपुर
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