Advertisement
कुकृत्यों से प्रेम को हम न करें धूमिल
परमेश्वर, ईश्वर, भगवान या फिर सृष्टि के रचयिता ढाई आखर प्रेम की प्रतिमूर्ति हैं. सारा ब्रह्मांड ही उसके प्रेम पर टिका है. प्रेम वह अथाह शांत समुद्र है, जिसकी तलहटी में अनेकानेक अनमोल रत्नों के भंडार पड़े हैं.इन रत्न भंडारों को जो पा गया है, वह इस भवसागर से पार पा गया. पति-पत्नी, माता-पिता, रिश्ते-नाते, […]
परमेश्वर, ईश्वर, भगवान या फिर सृष्टि के रचयिता ढाई आखर प्रेम की प्रतिमूर्ति हैं. सारा ब्रह्मांड ही उसके प्रेम पर टिका है. प्रेम वह अथाह शांत समुद्र है, जिसकी तलहटी में अनेकानेक अनमोल रत्नों के भंडार पड़े हैं.इन रत्न भंडारों को जो पा गया है, वह इस भवसागर से पार पा गया. पति-पत्नी, माता-पिता, रिश्ते-नाते, प्रेमी-प्रेमिका, देशप्रेम, विश्वप्रेम आदि उस रत्न भंडार के कुछ नमूने भर हैं. प्रेम पवित्र होता है. वह स्वार्थी नहीं, त्यागी होता है.
वह लेना नहीं जानता, देना जानता है. बिना किसी भेदभाव के संसार के लोगों की मदद करता है, तो वह अपने दुश्मनों से बदला भी नहीं लेता. उसका न तो कोई दुश्मन है और न ही बैरी. वह सहनशील और खुशमिजाज होने के साथ ही सरल भी है. हमें ऐसी पवित्र भावना की सुंदर छवि को अपने कुविचार और कुकृत्यों से धूमिल नहीं करना चाहिए.
दीदी शकुन, चक्रधरपुर
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement