आजादी के वर्षो बाद भी सरकार साक्षरता के अनुमानित लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकी है. शिक्षा के नाम पर पैसे बहाये जा रहे हैं और यथासंभव प्रयास भी किये जा रहे हैं. लेकिन नतीजा सिफर है. सरकार द्वारा सर्वशिक्षा अभियान के तहत प्राथमिक शिक्षा की नींव को मजबूत बनाने और छह से 14 साल के बच्चों को शिक्षित करने के लिए कई कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं.
शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए सरकार गैर-सरकारी संस्थाओं का सहारा लेती है. फिर भी सरकारी स्कूल के बच्चे निजी स्कूलों के बच्चों के आगे बौने हो जाते हैं. मैं निजी तौर पर तोरपा प्रखंड के सर्व शिक्षा अभियान के तहत संचालित इजीएस एवं इसीइ केंद्रों का मूल्यांकन कर चुकी हूं. शिक्षा विभाग में फैले भ्रष्टाचार, अनुशासनहीनता और कर्तव्य के प्रति उदासीनता से भली-भांति अवगत हूं. भ्रष्टाचार में केवल पैसे के लेन-देन ही मायने नहीं है. शिक्षकों को समय पर वेतन नहीं मिलना और जो वेतन इजीएस और इसीइ के शिक्षकों को मिलता है, वह इतना कम है कि वे केवल इसी आय पर निर्भर नहीं रह सकते.
नतीजतन, उन्हें परिवार का भरण-पोषण करने के लिए दूसरे काम भी करने पड़ते हैं. शिक्षा की बुनियाद मजबूत करने के लिए सरकारी और गैर-सरकारी स्कूलों के पाठ्यक्रम में समानता होनी चाहिए. सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को भी निजी स्कूलों के शिक्षकों के अनुरूप प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए. सरकारी स्कूलों में ज्यादातर मध्याह्न् भोजन ही आकर्षित करता है. बच्चे पढ़ाई के महत्व को समझाने के लिए अभिभावकों को जागरूक करना जरूरी है. सरकारी स्कूलों में ऐसा देखा गया है कि बच्चों को पेड़ों के नीचे शिक्षकों के अभाव में पढ़ाया जाता है. सरकार इस पर ध्यान दे.
शीला प्रसाद, ओरमांझी