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नारी-नारी करके समाज को न बांटें

‘नारी पर आरी मत चलायें’ पत्र पढ़ कर दु:ख हुआ. इस नारी-नारी के खेल का अंत कितना भयानक हो सकता है, संभवत: इसका अंदाजा इस तथाकथित नारी प्रधान समाज को नहीं है. यदि शब्दों की परिसीमा न होती, तो लेखिका के तर्को को हवा होने में समय नहीं लगता. शायद आप यह भूल गये कि […]

‘नारी पर आरी मत चलायें’ पत्र पढ़ कर दु:ख हुआ. इस नारी-नारी के खेल का अंत कितना भयानक हो सकता है, संभवत: इसका अंदाजा इस तथाकथित नारी प्रधान समाज को नहीं है. यदि शब्दों की परिसीमा न होती, तो लेखिका के तर्को को हवा होने में समय नहीं लगता. शायद आप यह भूल गये कि देश में आत्महत्या करनेवालों की बड़ी संख्या उन लोगों की है जिन्हें दहेज के झूठे मामलों में फंसाया गया है.
क्या यह सिर्फ कुछ उदाहरण भर है? यह एक ऐसा सच है, जिसने दहेज प्रथा को खत्म तो नहीं किया, बल्कि नारी-नारी के खेल में न जाने कितने परिवारों को तबाह कर दिया. देश में महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिए अनेक कानून हैं, लेकिन उनका कितना दुरुपयोग होता है, सभी जानते हैं. यौन शोषण तक के झूठे आरोप लगाये जा रहे हैं. नारी-नारी का राग अलाप कर समाज को न बांटें.
रणजीत, रांची

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