वैसे तो ग्रामीणों के विकास की बात हर कोई करता है, चाहे वह मंत्री हो या फिर संतरी. लेकिन इस पर कोई विचार नहीं करता कि आखिर ग्रामीणों का विकास कैसे हो? आज भी देश में पुराने कानूनों के सहारे लोकतंत्र की गाड़ी हांकी जा रही है. जिस समय ये कानून लागू किये गये थे, तब देश में गांव अधिक और शहर कम थे, देश अंगरेजों के हाथों गुलाम था.
आज आजादी के 67 साल बाद भी पुराने डंडे से पुरानी लकीर पीटना कहां तक तर्कसंगत है? आजादी के पहले और इसके कुछ सालों बाद तक गांवों में लोगों के खर्च कम थे. लोग खेती पर निर्भर थे और ज्यादातर वस्तुओं का घरेलू उत्पादन होता था. इसलिए शहरी कामगारों की तुलना में ग्रामीणों का वेतन कम था, लेकिन आज हर जगह उत्पादन घटा है और आमदनी भी. इसलिए अब ग्रामीणों का विकास भी जरूरी है.