सत्य प्रकाश चौधरी
प्रभात खबर, रांची
नमो टी स्टॉल पर पर मोदीजी के नामी और दामी सूट को लेकर चर्चा चाय की तरह उबल रही थी. मुन्ना बजरंगी ललकार रहे थे, ‘‘है कोई दूसरा इस देश में माई का लाल जिसके सूट की बोली डेढ़ करोड़ तक पहुंच जाये.’’ तभी आम आदमी जैसे दिखने वाले एक आदमी ने कहा, ‘‘केजरीवाल का मफलर..’’ मुन्ना यूं भड़के मानो सांड़ को लाल कपड़ा दिखा दिया गया हो.
उसकी बात काटते हुए बोले, ‘‘ऊ तो बेटा जल्दिए पंखे से टंगा मिलेगा! देखते हैं कैसे बिजली-पानी का वादा पूरा करता है!’’ एक भूतपूर्व चायवाले की ये हस्ती देख वर्तमान चायवाला राजू लहालोट हुआ जा रहा था. यह बात और है कि उसकी बहुत जिद के बावजूद बाऊजी उसके लिए शादी में भी सूट नहीं सिलवा पाये थे. तभी उसके मोबाइल की घंटी बजी.
क्या संजोग था, वह सूट को लेकर बाऊजी को याद कर रहा था और उनका फोन भी आ गया. उसने स्टोव धीमा किया, ताकि हर हर.. (मोदी नहीं, स्टोव की आवाज) कम हो और वह ठीक से बात कर पाये. उसने बाऊजी को प्रणाम किया और फिर काफी देर सिर्फ हां-हूं करते हुए फोन सुनने के बाद बोला, ‘‘आप भी बाऊजी! मोदीजी को छोटा-मोटा काम के लिए काहे परेशान करना चाहते हैं? ऊ देश को सोने की चिड़िया वाले जुग में ले जायें कि आपके लिए यूरिया का इंतजाम करें?
वो भारत को विश्वगुरु बनाने में लगे हैं और आपको अपने गेहूं की पड़ी है.. अब मोदीजी छपरा में आकर यूरिया तो नहीं न बांटेंगे! हम चुनाव में ‘चाय पर चर्चा’ कराये थे, इसका मतलब ई तो नहीं है कि हम डायरेक्ट मोदीजी से बात कर सकते हैं!’’ राजू ने चिढ़ते हुए फोन काट दिया. उससे बिना कुछ पूछे ही मुझे पूरा माजरा समझ में आ गया. अभी पूरे देश में यूरिया को लेकर ऐसा हाहाकार मचा हुआ है कि बीवियां परदेश में कमानेवाले अपने मर्दो से फोन पर सास की शिकायत और साड़ी की फरमाइश करने की जगह खाद का जुगाड़ करने के लिए कह रही हैं. उनका 10 रुपये का छोटा रीचार्ज यूरिया की बोरी की आरजू में उड़ रहा है.
तभी रुसवा साहब के अंदर जिज्ञासा का कीड़ा कुलबुलाया- ‘‘आखिर यूरिया की इतनी किल्लत क्यों है?’’ मैंने कहा, ‘‘सरकार ने पैसा बचाने के लिए यूरिया का आयात तिहाई कर दिया है. और देश के यूरिया उत्पादकों का सब्सिडी का पैसा भी लटकाये है.’’ रुसवा साहब जोर से हंसे (हालांकि ऐसा करने से पहले उन्होंने यह पक्का कर लिया था कि मुन्ना की तवज्जो उनकी ओर नहीं, बल्कि केजरीवाल समर्थक को फींचने में है), बोले- ‘‘मोदीजी को पैसे की क्या कमी?
वह तो पारस पत्थर हैं. पारस पत्थर को तो फिर भी लोहा चाहिए, मोदीजी कपड़े को सोने में बदल देते हैं. रोज 10 बार कपड़े बदलें और उनकी नीलामी करवायें. पैसा ही पैसा..’’ मुन्ना ने यह सुन लिया. वह गुर्राये- ‘‘चचा, ज्यादा काबिल नहीं बनो. कौन चीज कब और कैसे बेचनी है, मोदीजी हम सबसे ज्यादा जानते हैं.’’