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दूरदर्शी प्रधानमंत्री थीं इंदिरा गांधी

इंदिरा गांधी भले ही अर्थशास्त्र की बड़ी जानकार नहीं थीं, लेकिन उन्होंने अपने कॉमनसेंस का अच्छा इस्तेमाल किया. बैंकों का राष्ट्रीयकरण एक साहसी और बड़ा कदम था. भारत को खाद्य पदार्थो के मामले में आत्मनिर्भर बनाने में भी उनका योगदान महत्वपूर्ण रहा. इंदिरा गांधी की विदेश नीति पर पंडित जवाहरलाल नेहरू का काफी प्रभाव था. […]

इंदिरा गांधी भले ही अर्थशास्त्र की बड़ी जानकार नहीं थीं, लेकिन उन्होंने अपने कॉमनसेंस का अच्छा इस्तेमाल किया. बैंकों का राष्ट्रीयकरण एक साहसी और बड़ा कदम था. भारत को खाद्य पदार्थो के मामले में आत्मनिर्भर बनाने में भी उनका योगदान महत्वपूर्ण रहा.

इंदिरा गांधी की विदेश नीति पर पंडित जवाहरलाल नेहरू का काफी प्रभाव था. लेकिन जवाहरलाल नेहरू को एक बहुत बड़ा एडवांटेज यह था कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका के कारण वैश्विक स्तर पर उनका दबदबा था. विश्व के बड़े-बड़े राजेनता और बुद्धिजीवी उनका मान-सम्मान करते थे. जवाहरलाल नेहरू की बेटी होने के कारण इंदिरा गांधी को भी यह कुछ हद तक विरासत में मिला था. नेहरू जी विश्व राजनीति के बहुत बड़े जानकार थे. यहां तक कि वे जनसभाओं में भी विदेश नीति का जिक्र करते थे, कि इंडोनेशिया में ये हो रहा है या वियतनाम में ये हो रहा है. लेकिन, इंदिरा गांधी ने भी प्रधानमंत्री बनने के बाद विश्व की स्थिति बखूबी समझा और उसके अनुरूप नीतियों को ढाला.

विदेश नीति : इंदिरा गांधी की विदेश नीति को देखें तो उन्होंने भारत-सोवियत मैत्री को आगे बढ़ाया और भारत के पक्ष में उसका इस्तेमाल किया. इस तरह हम कह सकते हैं कि इंदिरा गांधी ने भारत की प्रतिनिधि के रूप में न केवल विश्व की स्थिति को बारीकी से समझा, बल्कि भारतीय विदेश नीति को देश और समय की जरूरतों के हिसाब से ढाला भी. लिंडन जॉन्सन का राष्ट्रपतिकाल हो या रिचर्ड निक्सन का, इंदिरा गांधी अमेरिका के दबाव में कभी नहीं आयीं और उसके खिलाफ मजबूती से टिकी रहीं, जबकि भारत एक विकासशील देश था. परमाणु अप्रसार संधि के पक्ष में वोट न देकर उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की एक अलग पहचान बनायी. 1971 के बांग्लादेश युद्ध में मिली जीत में उनकी ऐतिहासिक और सराहनीय भूमिका थी. इसके बाद पाकिस्तान ने वैश्विक पटल, पर खासतौर पर इसलामिक देशों में, भारत के खिलाफ जो घेराबंदी की, उसका उन्होंने बखूबी सामना किया. सोवियत संघ के साथ मित्रता संधि उनकी कूटनीतिक होशियारी की मिसाल है.

विश्व राजनीति के मंच पर भारत को मजबूत करने में इंदिरा गांधी की ऐसी और भी कई उपलब्धियां हैं, जिनकी वजह से भारत का एक अलग और स्वतंत्र अस्तित्व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बना. इसमें गुटनिरपेक्ष आंदोलन की चर्चा भी करनी होगी. जवाहर लाल नेहरू गुटनिरपेक्ष आंदोलन के बहुत बड़े लीडर थे, पर धीरे-धीरे ऐसे हालात बने कि यह आंदोलन कमजोर पड़ता गया. इंदिरा गांधी ने इस आंदोलन को फिर से मजबूत किया. दो ध्रुवों के टकराव के दौर, जिसे ‘कोल्डवार एरा’ कहते हैं, में उन्होंने अफ्रीका और एशिया के बीच में एक स्पेशल ग्रुप बनाया. वह एक हद तक समाजवादी सोवियत संघ की ओर झुकी रहीं, लेकिन साथ ही भारत के अमेरिका के साथ कामकाजी रिश्ते भी बने रहे. इस तरह वे एक दूरदर्शी प्रधानमंत्री साबित हुईं.

आर्थिक नीतियां : इंदिरा गांधी भले ही अर्थशास्त्र की बहुत बड़ी जानकार नहीं थीं, लेकिन उन्होंने अपने कॉमनसेंस का अच्छा इस्तेमाल किया. बैंकों का राष्ट्रीयकरण एक साहसी और जनता के हित से जुड़ा एक बड़ा कदम था. इसका आम लोगों को बहुत फायदा हुआ. आज जो हम सरकारी बैंकों में इतनी आसानी से खाता खोल पाते हैं या लोन ले पाते हैं, इसकी साठ के दशक में कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. उस समय प्राइवेट बैंक होते थे, और वे सिर्फ पूंजीपतियों, राजा-महाराजाओं के लिए होते थे. आम आदमी के लिए बैंक की सुविधा बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद ही सुलभ हुई. इसकी बुनियाद इतनी मजबूत थी कि यह अब तक कायम है. फिर चाहे वह सेंट्रल बैंक हो या स्टेट बैंक, आज ये बैंक अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं.

इसी तरीके से भारत को खाद्य पदार्थो के मामले में आत्मनिर्भर बनाने में भी इंदिरा गांधी का महत्वपूर्ण योगदान रहा. पहले पैसे की भी कमी थी. पैसे के अलावा सामान की भी बहुत कमी थी. लेकिन भारत में कभी इस तरह की समस्या नहीं आयी कि पैसा होने के बावजूद लोगों को दो वक्त का खाना न मिले. इसमें हरित क्रांति और दुग्ध क्रांति की बड़ी भूमिका रही, जो इंदिरा गांधी के समय हुइर्ं. इंदिरा जी ने माइक्रो और मैक्रो मैनेजमेंट के जरिये भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान की. हालांकि उस समय भी योजना आयोग का काम करने का जो तरीका था, उसके आंकड़ों में कई बार उलटफेर भी होता था, लेकिन अर्थव्यवस्था के जो बेसिक फंडामेंटल्स होते हैं, वे कभी कमजोर नहीं हुए.

विज्ञान एवं तकनीक : इंदिरा गांधी के पास बहुत ज्यादा डिग्री नहीं थी, लेकिन उनकी एक अच्छी बात यह थी सिर्फ विज्ञान ही नहीं, कला और खेदकूद जैसे तमाम क्षेत्रों में उनकी काफी रुचि थी और वे इन विभागों में नजर रखती थीं. साइंस एंड टेक्नोलॉजी के लिए उन्होंने कई इंस्टीट्यूट और सेट-अप शुरू किये. जो पुराने इंस्टीट्यूट थे, उन्हें फंड उपलब्ध कराया. स्पेस रिसर्च के क्षेत्र में उनके समय में बहुत काम हुआ. भारत ने इनसेट उपग्रह का प्रक्षेपण किया. इससे शिक्षा और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भारत की अच्छी बुनियाद पड़ी. इसरो का आज स्पेस रिसर्च के क्षेत्र में विश्व में नाम है. उन्होंने दूरदर्शन शुरू किया और टेलीविजन को बहुत जल्दी शहर ही नहीं, ग्रामीण इलाकों तक भी पहुंचा दिया.

राजनेता के रूप में इंदिरा गांधी की बड़ी मिलीजुली सी छवि बनती है. इसमें सकारात्मक बातें भी हैं और नकारात्मक भी. इससे इनकार नहीं कि इंदिरा गांधी ने अपने आप को मजबूत करने की खातिर कांग्रेस को कमजोर कर दिया. इंदिरा गांधी मुख्यमंत्री चुनने लगी थीं. नेहरू के समय राज्यों के जो छत्रप होते थे, वे धीरे-धीरे कमजोर होते गये. आज भी राज्यों में कांग्रेस पार्टी के क्षत्रप बहुत कमजोर हैं. इसकी बड़ी वजह इंदिरा गांधी रहीं. हाईकमान कल्चर इंदिरा गांधी ने शुरू किया. इससे कांग्रेस की जड़ें कमजोर हुइर्ं और यह परंपरा कांग्रेस में अब भी चलती आ रही है. आपातकाल लगा कर उन्होंने प्रजातंत्र और प्रजातांत्रिक मूल्यों पर प्रहार किया, जिसके लिए आज भी उनकी व्यापक आलोचना होती है. परंतु यह भी ध्यान रखना चाहिए कि उन्होंने अपनी हार स्वीकार कर फिर से चुनाव की घोषणा की. यह एक बहुत बड़ी मिसाल है. हम अपने पड़ोसी देशों में देख लें. किसी देश से एक बार डेमोक्रेसी जाती है, तो लंबे समय तक उसे वापस ला पाना संभव नहीं होता या फिर वह पनप नहीं पाती. भारत में 1975 में जो आपातकाल लगा था, उसके बाद इसके भयानक परिणाम का एहसास इंदिरा जी को हो गया था, इसलिए उन्होंने चुनाव कराया. इस चुनाव में वे बुरी तरह पराजित हुईं और उन्होंने अपनी हार स्वीकार की. राजनीति में इंदिरा गांधी ने वापस अपनी जगह बनायी और 1980 के चुनाव में जीत कर वे पुन: सत्ता में आयीं. अपनी गलती को समझना और उसे सुधारने की पहल करना उनकी महानता थी.

(प्रीति सिंह परिहार से बातचीत पर आधारित)

राशिद किदवई

वरिष्ठ पत्रकार

delhi@prabhatkhabar.in

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