आम तौर पर जब हम जीपीएस या जियोस्पेशियल टेक्नोलॉजी की बात करते हैं तो मन में सबसे पहले ख्याल आता है एक नेविगेटर का, जो हमें जानी-अनजानी जगहों का रास्ता और चीजों का पता बताता है. लेकिन दिनोंदिन उन्नत होती तकनीक के इस दौर में इसकी भी परिभाषा बदल रही है. आज जीपीएस सिस्टम्स का इस्तेमाल कृषि भूमि का रकबा जानने से लेकर शल्य क्रिया तक में किया जा रहा है. आइए जानें…
।। राजीव चौबे ।।
किसी नयी जगह जाने पर आपके फोन या गाड़ी में लगा जीपीएस, यानी ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम युक्त नेविगेटर आपको सड़कों की भूल-भुलैया और गलियों के मायाजाल में उलझ कर अपना कीमती समय और पैसा बरबाद करने से बचाता है. यही नहीं, इसके जरिये बस स्टैंड से लेकर एयरपोर्ट तक और होटल से लेकर शौचालय तक का ब्योरा आपकी उंगलियों पर उपलब्ध रहता है. दुनिया के किसी भी कोने की मंजिल का पता दे दिया जाये, तो बाकी जिम्मेदारी सेटेलाइट से जुड़े नेविगेटर की है. इसका सॉफ्टवेयर अपने ही अंदाज में, कितनी दूरी पर और किस ओर मुड़ना है, यह बताते हुए आपको मंजिल तक पहुंचाता है.
यह तो थी आपको दिशा बतातनेवाली जीपीएस तकनीक की बात. लेकिन यह तकनीक केवल इतने भर ही सीमित नहीं है. आजकल इस तकनीक का इस्तेमाल और भी कई क्षेत्रों में हो रहा है. हमारे देश में भी उपग्रहों के समूह से जुड़ी इस तकनीक से खेत की गुणवत्ता, भूमि की ऊर्वरा शक्ति और फसलों के उत्पादन को जाना-समझा जा रहा है. इससे किसानों को पटवारी पर निर्भर रहने की जरूरत कम होगी. इसके लिए किसी खास जिले भर में मुख्य बिंदु चिह्नित कर दिये जाते हैं. उन्हीं बिंदुओं से जीपीएस सिस्टम के माध्यम से सेटेलाइट से जुड़ कर क्षेत्र में उगायी गयी संबंधित फसल का सटीक आंकड़ा इकट्ठा किया जाता है.
दरअसल इस तकनीक को इस्तेमाल करने से पहले फसलों को तकनीक द्वारा एक विशेष रंग दिया जाता है, जिसके आधार पर सेटेलाइट फसलों का पता लगा सके कि कितने क्षेत्र में कौन-सी फसल उगी है. इससे संबंधित विभाग को खाद्यान्न की पूरी जानकारी मिल जाती है. उगायी गयी फसल का सेटेलाइट से सटीक आकलन होने से भूमि की ऊर्वरा शक्ति के बारे में भी पता लगा कर किसानों को इसके प्रति जागरूक किया जा सकेगा, जिससे वे अपने खेतों में सही फसल का उत्पादन कर सकें. यही नहीं, यह तकनीक बाढ़ से फसलों को हुए नुकसान का भी अच्छी तरह जायजा ले लेती है.
दूसरी ओर, चिकित्सा क्षेत्र में जीपीएस तकनीक का इस्तेमाल शरीर के भीतर हड्डियों की सटीक जानकारी पाने के लिए किया जाता है. पिछले दिनों इसी तकनीक की मदद से बेंगलुरु के फोर्टिस अस्पताल में 17 मरीजों के घुटनों का प्रत्यारोपण किया गया.
इस काम को अंजाम देनेवाले डॉ नारायण हुल्से बताते हैं कि इस तकनीक में मरीज के शरीर के साथ हम ट्रैकर्स लगाते हैं जिसकी मदद से कंप्यूटर स्क्रीन पर इंफ्रोरेड सिग्नल्स के जरिये हड्डी और घुटने का सही एंगल का पता लगाया जाता है, जिससे हमें यह पता चलता है कि मरीज के शरीर पर चीरा कहां और कितना बड़ा लगाना है. डॉ हुल्से बताते हैं कि हम इनसान हड्डी की लंबाई और मोटाई का जो अंदाजा लगाते हैं, वह अक्सर सटीक नहीं बैठता और घुटना प्रत्यारोपण के मामले में अगर हड्डियों के जोड़ पर चीरा लगाने में अगर एकाध डिग्री इधर-उधर हुआ तो मरीज के पैरों का अलाइनमेंट बिगड़ जाता है.
जीपीएस या जियोस्पेशियल तकनीक दरअसल एक ग्लोबल नेवीगेशन सेटेलाइट सिस्टम है. यह तकनीक उपग्रह के जरिये विभिन्न चीजों पर कई कोणों से नजर रख सकती है और छिपी वस्तुओं को देखने में भी सक्षम होती है. जीपीएस डिवाइस उपग्रह से प्राप्त सिगनल द्वारा किसी खास जगह को नक्शे में दशार्ती रहती है. इसके इस्तेमाल से यूजर अपनी स्थिति का आसानी से पता लगा सकता है. पहले सेटेलाइट नेवीगेशन सिस्टम ट्रांजिट का प्रयोग अमेरिकी नौसेना ने 1960 में किया था.
27 अप्रैल, 1995 से जीपीएस ने पूरी तरह से काम करना शुरू कर दिया. शुरु आत में जीपीएस का प्रयोग सेना के लिए किया जाता था, लेकिन बाद में इसका इस्तेमाल नागरिक कार्यों में भी होने लगा. आज जीपीएस का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर होने लगा है. अब भारत में भी नक्शा बनाने, जमीन का सर्वे करने, सर्विलांस और गाडि़यों, ट्रेनों व जहाजों की स्थिति का पता लगाने के लिए भी इसका इस्तेमाल होने लगा है.
* ऐसे होता है स्थिति का आकलन
वर्तमान में जीपीएस तीन प्रमुख क्षेत्रों से मिल कर बना हुआ है, स्पेस सेगमेंट, कंट्रोल सेगमेंट और यूजर सेगमेंट. जीपीएस रिसीवर अपनी स्थिति का आकलन, पृथ्वी से ऊपर रखे गये जीपीएस सेटेलाइट द्वारा भेजे जाने वाले सिगनलों के आधार पर करता है. प्रत्येक सेटेलाइट लगातार मैसेज ट्रांसमिट करता रहता है. रिसीवर प्रत्येक मैसेज का ट्रांजिट समय नोट करता है और प्रत्येक सेटेलाइट से दूरी की गणना करता है. ऐसा माना जाता है कि रिसीवर बेहतर गणना के लिए चार सेटेलाइट का इस्तेमाल करता है. इससे यूजर की थ्रीडी स्थिति (अक्षांश, देशांतर रेखा और उन्नतांश) के बारे में पता चल जाता है. एक बार जीपीएस की स्थिति का पता चलने के बाद, जीपीएस यूनिट दूसरी जानकारियां जैसे कि स्पीड, ट्रैक, ट्रिप, दूरी, जगह से दूरी, सूर्य उगने और डूबने के समय के बारे में जानकारी एकत्र कर लेता है.