झारखंड में विधानसभा चुनाव की आहट से राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गयी हैं. चुनाव का एलान कभी भी हो सकता है. समय कम है, ऐसे में राजनीतिक दल इस अवधि को अधिक से अधिक भुनाने में लगे हैं. सरकार में शामिल घटक दल के मंत्री अपना कुनबा बचाने और सत्ता कायम रखने के प्रयास में ताबड़तोड़ घोषणाएं कर रहे हैं. विपक्ष भी प्रभावशाली ढंग से प्रयास कर रहा है.
राजनीतिक विश्लेषक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रांची आने और झारखंड के लिए कई सौगातों के संभावित एलान को इसी कड़ी का हिस्सा मान रहे हैं. विपक्ष नरेंद्र मोदी के दौरे को लेकर काफी उत्साहित है और वह इसका पूरा राजनीतिक फायदा भी लेना चाहता है. विपक्ष के पास सबसे बड़ा और धारदार हथियार भी यही है. लोकसभा का चुनाव इसका प्रमाण है. लोकसभा चुनाव की घोषणा से ठीक पहले नरेंद्र मोदी का रांची आना और उसके प्रभाव के रूप में विपक्ष का अब तक का सबसे बेहतर प्रदर्शन करना इसे पुष्ट भी करता है. अब विपक्ष फिर से अपनी इसी योजना को अमलीजामा पहनाने के प्रयास में है. इधर, सरकारी स्तर पर भी सत्ताधारी दल के लोग कई तरह से फायदे उठाने की कोशिश में हैं.
सत्ताधारी दल पिछले तीन माह में शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया शुरू कर, कर्मचारियों की वेतन विसंगतियों को दूर कर, विभिन्न पदों पर नियुक्तियों का एलान कर और आंदोलनकारियों को नौकरी देकर जनता के बीच अपनी पैठ बना कर चुनाव में जाने की तैयारी में है. चुनाव में अधिक से अधिक सीटें पाने की राजनीतिक दलों की इस लड़ाई में आखिरकार आम व निरीह जनता के हाथ में कुछ आ जाये, तो इससे बेहतर और क्या हो सकता है. पर दुर्भाग्य की बात यह है कि चुनाव के पास आते ही जिस तरह जनकल्याणकारी योजनाओं की झड़ी लग जाती हैं, लगभग सभी राजनीतिक दल आम लोगों पर अपनी पूरी संवेदना उड़ेलने में लग जाते हैं, वह पहले नहीं दिखता. चुनाव समाप्त होने और नयी सरकार बनने के बाद सब अतीत की बातें हो जाती हैं. कुछ घोषणाएं याद रहती हैं, तो कुछ सरकारी स्तर पर भी भुला दी जाती हैं. अब देखना है कि इस बार सत्ताधारी दल और विपक्ष की कितनी घोषणाएं पूरी तरह जमीन पर उतरती हैं और उसका कितना लाभ लोगों को मिल पाता है?