पिछले दिनों संचार माध्यमों से पता चला कि सेबी (भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड) को और अधिक शक्तिशाली बनाया गया है. यह अच्छी बात है, लेकिन उन निवेशकों के लिए किसी ठोस पहल की कोई सूचना नहीं मिली जिनकी गाढ़ी कमाई सेबी जब्त करके भारत सरकार के खजाने मे जमा करवा चुका है और जांच के नाम पर जनता को गुमराह कर रहा है!
गोल्डन फॉरेस्ट, जेवीजी, हेलियस, बिजीलैंड, संचयनी जैसी कई गैर बैंकिंग कंपनियों को सेबी सील करके, उनकी सभी चल और अचल संपत्तियों को जब्त कर चुकी है. लगभग 15 वर्ष होने को हैं.
इस दरम्यान कई के तो संचालकों की मृत्यु हो चुकी है, तो कई के निवेशकों की मृत्यु हो चुकी है. डेढ़ दशक की इस अवधि में कई सरकारें बदल गयीं, कई जांच करने वाले अधिकारी भी काल के गाल में समा गये, लेकिन जांच पूरी नहीं हो सकी.
इन मामलों में जांच पूरी कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए सेबी पर दबाव बनाने और बढ़ाने के बजाय सरकार से इनाम के रूप में उसे और अधिकार मिल गये. इससे फायदा किसे होगा? सेबी को, सरकार को या निवेशकों को, यह तो वक्त ही बतायेगा लेकिन मुद्दे की बात यह है कि लोगों की आंखों में धूल झोंकनेवाले स्कीम चलानेवाली जालसाज कंपनियां रातों-रात तो पैदा नहीं होती हैं?
एक ही दिन में करोड़ों की उगाही तो नहीं कर लेती हैं? उस समय सेबी क्या सोयी रहती है? उस समय वह सख्त क्यों नहीं होती? जब निवेशकों का पैसा निकलने का वक्त आता है, तब सेबी सक्रि य कैसे हो जाती है? इस पर गौर करने की आवश्यकता है. इस पूरे खेल में निवेशकों को गुमराह किया जा रहा है. पहले सेबी सच बताये, तब अधिकार ले.
संतोष कुमार, आदित्यपुर