अनुज कुमार सिन्हा
कार्यकारी संपादक, झारखंड
प्रभात खबर
anuj.sinha@prabhatkhbar.in
झारखंड के मतदाताओं ने झारखंड मुक्ति माेर्चा, कांग्रेस और राजद के गठबंधन काे स्पष्ट बहुमत दिया है. रघुवर दास की सरकार सत्ता से बाहर हाे गयी है. छह माह पहले जब लाेकसभा चुनाव हुआ था, ताे इसी झारखंड ने 14 में से 12 सीटें भाजपा और उसके सहयाेगी दल (आजसू) काे दी थीं. उस समय काेई यह नहीं कह सकता था कि विधानसभा चुनाव में भाजपा की ऐसी बुरी हार हाे सकती है. लाेगाें की नाराजगी इतनी कि मुख्यमंत्री समेत कई मंत्री चुनाव हार गये.
2014 में पहली बार झारखंड में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी. पहली बार झारखंड में गैर-आदिवासी काे मुख्यमंत्री बनाया गया था और यह सरकार पांच साल तक चली. एेसी बात नहीं कि इस सरकार ने काम नहीं किया. इस चुनाव ने कांग्रेस काे झारखंड में जीवित कर दिया है. इसे दूसरे राज्याें में भविष्य में हाेनेवाले चुनाव में कांग्रेस भुनायेगी.
झारखंड मुक्ति माेर्चा ने झारखंड के गठन हाेने के बाद अपने सबसे अच्छा प्रदर्शन करते हुए इस धारणा काे ताेड़ दिया है कि वह 20-22 सीटाें से ज्यादा कभी जीत नहीं सकता. अलग झारखंड बनने के बाद जब 2005 में पहली बार झारखंड विधानसभा का चुनाव हुआ, ताे झामुमाे 17 सीट ही जीत सका था. 2009 में उसे 18 और 2014 में 19 सीटाें पर विजय मिली थी. इस बार लगभग 10 सीट ज्यादा लाना झामुमाे की बहुत बड़ी उपलब्धि है. जनता ने उस पर भराेसा किया है, इसलिए हेमंत साेरेन के सामने कई बड़ी चुनाैतियां हाेगीं. खास कर जाे वादे उन्हाेंने किये हैं, उन्हें हर हाल में पूरा करना पड़ेगा.
सवाल यह उठता है कि भाजपा काे हार का सामना क्याें करना पड़ा? अनेक कारण दिखते हैं. दाे-तीन माह पहले तक नाराजगी इतनी दिख नहीं रही थी. हालांकि सीएनटी में बदलाव के मुद्दे काे लेकर नाराजगी थी.
सरकार ने बदलाव नहीं किया, लेकिन विपक्ष आदिवासियाें के बीच यह संदेश देने में सफल रहा कि भाजपा सरकार आदिवासियाें की जमीन छीनना चाहती है. इसे मुद्दा बनाया. झारखंड की 28 सीटें आदिवासियाें के लिए आरक्षित हैं. आदिवासियाें में कितनी नाराजगी थी, उसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 28 में सिर्फ दाे सीटाें पर भाजपा जीत सकी.
रघुवर दास की सरकार ने धर्मांतरण पर कानून बनाया था. कुछ मिशनरी संस्थाओं के खिलाफ कार्रवाई भी हुई थी. इसका परिणाम यह हुआ कि इस सरकार काे हटाने के लिए गाेलबंदी हुई. सबसे बड़ी ताकत विपक्ष काे उस समय मिली, जब हेमंत साेरेन की अगुआई में झामुमाे, कांग्रेस और राजद का गठबंधन हाे गया. सीटाें के बंटवारे काे लेकर काेई किचकिच नहीं. जहां कांग्रेस काे झुकना पड़ा, झुकी भी, लेकिन गठबंधन काे टूटने नहीं दिया.
कांग्रेस के कई दिग्गज नाराज थे, पार्टी छाेड़ दी, लेकिन कांग्रेस ने इस पर ध्यान नहीं दिया. उसका पहला मकसद था, किसी तरह यह सरकार जाए. 2014 में कांग्रेस, झामुमाे और राजद ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था. वाेट बंट गया था. इसके विपरीत भाजपा, आजसू और लाेजपा ने साथ चुनाव लड़ा था. 2019 में तीनाें ने अलग-अलग चुनाव लड़ा, वाेट बंटे और उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
भाजपा और आजसू की जिद दाेनाें काे ले डूबी. आजसू के अलग हाेने से महताे मतदाता भाजपा से दूर हाे गये. अधिकांश वाेट आजसू के खाते में गये, लेकिन इतने नहीं कि वह अधिक-से-अधिक सीट जीत सके.
भाजपा सरकार ने पांच साल में अपनी पूरी ताकत संताल परगना में लगायी थी. काेल्हान में ताे पूरे ताैर पर भाजपा का सफाया हाे गया. संताल परगना ने भी पहले जैसा साथ नहीं दिया. एक बड़ी नाराजगी स्थानीय नीति काे लेकर थी. खास कर मूलवासियाें (सदानाें) में. उसकी भी कीमत भाजपा को चुकानी पड़ी. शहरी क्षेत्र भाजपा का गढ़ माना जाता रहा है. वहां उदासीनता रही.
भाजपा के मतदाता घराें से कम संख्या में निकले. उन्हें निकालने के लिए संगठन में धार नहीं दिखी. भाजपा की हार का बड़ा कारण भितरघात है. भाजपा ने बड़ी संख्या में यानी 12 विधायकाें का टिकट काटा. शायद ही किसी ने काम किया. पार्टी ने असंतुष्टों को मनाने की कोशिश भी नहीं की. प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ अपनी सीट बचा नहीं सके. पहले लाेकसभा चुनाव हारे, फिर विधानसभा चुनाव.
पूरे संगठन काे सक्रिय करने और सरकार की उपलब्धियाें काे जनता तक पहुंचाने में वे विफल रहे. एक टीम के ताैर पर भाजपा ने इस चुनाव काे लड़ा ही नहीं. दल की अपेक्षा व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के कारण भाजपा के नेता प्रत्याशियाें काे हराने में भी लगे रहे. पारा टीचर और आंगनबाड़ी की सेविकाओं के धरना-प्रदर्शन के खिलाफ जाे कार्रवाई हुई, जाे स्कूल बंद हुए, उसे विपक्ष भुनाने में सफल रहा. टिकट नहीं मिलने के बाद जब नाराज हाेकर सरयू राय ने मुख्यमंत्री के खिलाफ जमशेदपुर में माेर्चा खाेला, ताे विपक्ष काे एक माैका मिल गया. इस माैके काे विपक्ष ने हाथ से जाने नहीं दिया.
रणनीति के तहत एक तरह से सरयू राय काे विपक्ष का प्रत्याशी बता कर मताें काे बिखरने नहीं दिया. सरयू राय के मुख्यमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ने से माहाैल तेजी से बदला और यह सारा कुछ भाजपा सरकार के खिलाफ गया. जाे मुद्दे दबे थे, वे भी तेजी से सतह पर आ गये. सरकार के खिलाफ माहाैल बनाने में विपक्ष सफल रहा. कह सकते हैं कि विपक्ष की रणनीति का काट भाजपा नहीं निकाल सकी और उसे सत्ता से जाना पड़ा.