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पर्व-त्योहारों में न करें विभेद

झारखंड के सभी पर्व-त्योहारों का सीधा संबंध प्रकृतिक मान्यताओं से है. बहुत हद तक संभव है कि पर्व-त्योहारों का प्रचलन ग्राम्य परिवेश से प्रारंभ हुआ हो. नगर व्यवस्था में इन पर्व-त्योहारों में भी बाजारीकरण के प्रभाव के कारण अनेक विकृतियों का समावेश हुआ है. आज समाज में विभिन्न जाति, समुदाय, संस्कृति के पक्षधर लोग हैं. […]

झारखंड के सभी पर्व-त्योहारों का सीधा संबंध प्रकृतिक मान्यताओं से है. बहुत हद तक संभव है कि पर्व-त्योहारों का प्रचलन ग्राम्य परिवेश से प्रारंभ हुआ हो. नगर व्यवस्था में इन पर्व-त्योहारों में भी बाजारीकरण के प्रभाव के कारण अनेक विकृतियों का समावेश हुआ है. आज समाज में विभिन्न जाति, समुदाय, संस्कृति के पक्षधर लोग हैं.
भाषा विद्वानों का लेख समाचार पत्रों में छपता है, जिसमें वे किसी त्योहार विशेष को जाति-संप्रदाय या भाषा-भाषी की देन मानते हैं. कोई व्यक्ति अपनी भाषा और संस्कृति का गुणगान करे, परंतु अपने समुदाय को श्रेष्ठ साबित करने की होड़ में किसी एक जातीय संप्रदाय द्वारा समस्त समाज की मान्यताओं पर आधिपत्य का दिखावा नहीं करना चाहिए. कुछ पर्व-त्योहारों का समापन मेला के साथ होता है.
मेला यानी बड़े पैमाने पर लोगों का मेल-जोल. समाज में विभिन्न जातियों, संस्कृतियों के लोगों का मिलने-जुलने से एक वृहद और अद्भुत समाज का निर्माण होता है. ऐसे में कोई त्योहार किसी एक जाति या समुदाय विशेष का कैसे हो सकता है? पर्व-त्योहारों में विभेद पैदा नहीं करें, प्लीज.
नरेंद्र कुमार दास, रांची

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