यक्ष प्रश्न यह है कि हम एक अरब पैंतीस करोड़ भारतीय हर साल बुराई के प्रतीक हजारों-लाखों रावणों को दशहरा के अवसर पर जलाकर, कथित बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न खूब धूमधाम से मनाते हैं, तो अगले साल फिर से ये हजारों-लाखों रावण फिर से क्यों और कहां से पैदा हो जाते हैं, जिससे कि उन्हें फिर से जलाने की जरूरत आ पड़ती है.
हजारों सालों से बुराई का प्रतीक रहे ये रावण जलकर नष्ट क्यों नहीं होते! बुराई रूपी लाखों रावण बार-बार उठकर अच्छाई से भी बड़े क्यों हो जाते हैं? इस पर गंभीरतापूर्वक विचार किया ही जाना चाहिए. हर साल इस व्यर्थ के रावण को जलाने रूपी नाटक से हमारा कुछ भी भला नहीं होने वाला, अपितु हमें अपने मन, वचन और कर्म से पवित्र और ईमानदार होना ही पड़ेगा. जबतक हम सच्चरित्र नहीं होंगे, रावण का खात्मा नहीं होगा.
निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद