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ताकि कल म्यूजियम में न दिखे टमाटर..

।। पंकज कुमार पाठक ।। प्रभात खबर, रांची एक बड़े अखबार की वेबसाइट पर खबर है, ‘कॉल सेंटर से जानिए प्याज-टमाटर के भाव.’ प्याज-टमाटर के लिए इससे बडी ‘गुड न्यूज’ क्या होगी कि उनकी कीमत बताने के लिए सरकार ने कॉल सेंटर खोल दिया है. यकीन मानिए, अगर वो दोनों इस खबर को पढ़ ते, […]

।। पंकज कुमार पाठक ।।

प्रभात खबर, रांची

एक बड़े अखबार की वेबसाइट पर खबर है, ‘कॉल सेंटर से जानिए प्याज-टमाटर के भाव.’ प्याज-टमाटर के लिए इससे बडी ‘गुड न्यूज’ क्या होगी कि उनकी कीमत बताने के लिए सरकार ने कॉल सेंटर खोल दिया है.

यकीन मानिए, अगर वो दोनों इस खबर को पढ़ ते, तो उनका सीना सिर्फ 56 इंच का नहीं, बल्कि 556 इंच का हो जाता. इसी तरह फेसबुक पर भी एक टिप्पणी है : ‘‘हाल ही में ‘सब्जीलोक’ में ‘सब्जीभूषण’ की उपाधि से नवाजे गये प्याज जी ने ‘सब्जीपति’ आलू महाराज से सिफारिश की है कि इस बार टमाटर जी को ‘सब्जीरत्न’ की उपाधि दी जाये.’’

मैं भी मानता हूं कि अगर कहीं ऐसी दुनिया है, तो निश्चित रूप से टमाटर को ही सब्जीरत्न की उपाधि मिलनी चाहिए. लेकिन फिर लगा कि अगर सब्जीलोक में इसी तरह के ‘सम्मान’ पाने की होड़ मच गयी, तो यकीन मानिए सब्जियों के दर्शन करने हमें बाजार नहीं, बल्कि म्यूजियम जाना पड़े गा.

वह भी लंबी लाइन में खड़े होकर, टिकट ले कर. प्याज का मंहगा होना तो फिर भी समझ में आता है. उसमें कुछ खास गुण है, जिसे खासतौर से मांसाहारी जानते हैं. लेकिन ये अदना-सा टमाटर..? इसने प्याज का रिकार्ड कैसे तोड़ दिया? हम सब जानते हैं कि कैसे प्याज ने अपना ‘शक्ति प्रदर्शन’ किया था.

प्याज के इस महाशक्ति प्रदर्शन में ‘कालाबाजारियों और बिचौलियों’ ने भी उसका पूरा साथ दिया था. नतीजा हमारे सामने था. इसी शक्ति प्रदर्शन का परिणाम हुआ कि अन्य सब्जियों को भी अपने अंदर छिपी शक्ति का अंदाजा लग गया. कालाबाजारियों के सहयोग से, एक के बाद एक सब्जी अपनी शक्ति का प्र्दशन करने लगी. पहले प्याज ने किया, फिर आलू ने और अब टमाटर कर रहा है.

दूसरी तरफ, आम जनता के पास इनकी शक्ति के सामने नतमस्तक रहना भर ही विकल्प है. हम सिर्फ उस शक्ति की स्तुति कर सकते हैं. हम ‘एडजस्ट’ कर जानेवाले लोग हैं, जो किसी चीज का विरोध नहीं करते. इसी का परिणाम है कि ‘टमाटर’ जैसी सब्जी भी ‘मामूली और सस्ती’ चीजों की श्रेणी से उठ कर, ‘महंगी’ चीजों की सूची में, यानी पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस वाली सूची में चली गयी है. इधर हमलोग ‘अतिसहनशील व्यक्ति’ की परिभाषा के उदाहरण बन कर खड़े हैं.

हालांकि मुझे लगता है कि टमाटर हमसे ‘बदला’ ले रहा है. क्योंकि इसे बेचनेवाले बिचौलिये मालामाल और इसे उगानेवाले किसान आज कंगाल हो गये हैं. वह चाहता है कि हम किसानों को प्रेरित करें कि वह अधिक से अधिक टमाटर उगायें और बदले में उस किसान को उसकी मेहनत की सही कीमत दें.

बिचौलियों को किसानों से दूर रखें, ताकि बाजार में टमाटर के भाव सही रहें. वह कोई म्यूजियम में रखी जानेवाली चीज न बने, बल्कि हमारे रसोईघर की शोभा बढाये. टमाटर को भी यह गर्व महसूस हो कि वह लाल है और उसे खानेवाले भी ‘देश के लाल’ हैं.

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