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शेरा की शेरनी!

आलोक पुराणिक वरिष्ठ व्यंग्यकार puranika@gmail.com सरकार की योजना है कि निजी रेलगाड़ियां चलायी जाएं. जी बिल्कुल जब सरकारी बसों के मुकाबले निजी बसें हो सकती हैं, तो सरकारी रेल के सामने निजी रेल क्यों न हो सकती. पर मुझे कई सीन दिखायी पड़ रहे हैं निजी रेलों के. निजी बसों में कंपीटीशन होता है कि […]

आलोक पुराणिक

वरिष्ठ व्यंग्यकार

puranika@gmail.com

सरकार की योजना है कि निजी रेलगाड़ियां चलायी जाएं. जी बिल्कुल जब सरकारी बसों के मुकाबले निजी बसें हो सकती हैं, तो सरकारी रेल के सामने निजी रेल क्यों न हो सकती.

पर मुझे कई सीन दिखायी पड़ रहे हैं निजी रेलों के. निजी बसों में कंपीटीशन होता है कि पहले सारी सवारी भर के निकल लें, तेज चलाकर दिन भर में ज्यादा फेरे कर लें. निजी बस कंडक्टर को हर मानव मात्र में दस रुपये, बीस रुपये या पचास रुपये दिखायी पड़ते हैं.

निजी रेलों में भी यही कुछ होने के आसार हैं. निजी बस के कंडक्टर सवारियों को कन्विंस करते हैं कि आपको जहां जाना है, ठीक वहां पर तो यह बस ना जायेगी, पर उसके पास के स्टाप पर आपको छोड़ देंगे. मुझे दिखायी पड़ रहा है कि दिल्ली में निजी ट्रेन का कंडक्टर यात्री को कन्विंस कर रहा है- जी आपको अहमदाबाद जाना है, ठीक है. आप हमारी पटनावाली गाड़ी में बैठ लीजिए. पटना के पास ही है अहमदाबाद.

पटना से हमारी ही कंपनी की दूसरी ट्रेन चलती है, उसमें बैठ कर आप गुवाहाटी चले जाइए. गुवाहाटी से हमारी कंपनी की सीधी ट्रेन चलती है मुंबई के लिए. बस आप मुंबई पहुंच कर वहां से अगली ट्रेन में बैठ कर अहमदाबाद पहुंच जायेंगे. सिंपल.अहमदाबाद वाया पटना, गुवाहाटी, पहुंचा सकते हैं, निजी बस वाले भी निजी ट्रेनवाले भी. मुंबई जाने के लिए संभव है कि जम्मू होते हुए हरिद्वार आना पड़े और यहां से डॉल्टनगंज होते हुए राजमहेंद्री से निकलते हुए वाया गंज बासौदा बंदा मुंबई पहुंचे. पहुंचा देगा जी, निजी ट्रेनवाला तो पक्का पहुंचा देगा.

स्पीड के मामले में यह भी संभव है कि निजी ट्रेन का गार्ड के ड्राइवर को डपटे- ओये राजू देख पुन्नू की ट्रेन आगे निकल रही है. इसे न निकलने दीयो. यह निकल ली, तो आगे की सारी सवारी उठा लेगी. दौड़ा ले, पुन्नू की ट्रेन न निकल जाए. दौड़ा जल्दी दौड़ा.

पुन्नू की ट्रेन न आगे निकल जाए- यह चिंता केंद्रीय हो जाये, तब तो गाड़ी लेट ही न हो सकती. सारी गाड़ियां बिफोर टाइम ही पहुंचेंगी अपने स्टेशन पर. हां, उसके बाद तो पुन्नू और राजू में स्टेशन पर भिड़ंत इस बात पर हो सकती है कि तू बिफोर टाइम कैसे पहुंच लिया.

निजी बसों का मामला हो, तो यह तो पक्का है कि कुछ बसें कुछ रूट पर बगैर लाइसेंस के भी चलेंगी. बिना लाइसेंस की यह बसें लोकल विधायक की हो सकती हैं. लोकल मंत्री की हो सकती हैं. बिना लाइसेंस की निजी रेल भी चलेंगी, विधायक जी की. स्टेशन मास्टर चकरायेंगे- ये कौन सी ट्रेन आ गयी, इसका तो जिक्र ही ना है टाइम टेबल में? इसके बारे में तो पीछे से कोई सूचना न है जी?

विधायक जी की ट्रेन लाइसेंस सूचना के साथ थोड़े ही चलती है. वह तो बस चलती है. स्टेशन मास्टर को न पता, तो यह गलती स्टेशन मास्टर की है. इसमें विधायक जी और उनकी ट्रेन क्या कर सकती है. मुझे विधायकजी की ट्रेन के पीछे लिखा हुआ दिख रहा है- शेरा की शेरनी.

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