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..तो हजारों पेड़ कटने से बच जाते

राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच) संख्या 33 को झारखंड की जीवनरेखा कहा जाता है. यह सड़क पटना, रांची और जमशेदपुर-तीन अहम शहरों को जोड़ती है. झारखंड में यह कोडरमा जिले से लेकर पूर्वी सिंहभूम तक फैली हुई है.केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के आने के बाद पूरे देश में राष्ट्रीय राजमार्गो का चौड़ीकरण शुरू हुआ, लेकिन […]

राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच) संख्या 33 को झारखंड की जीवनरेखा कहा जाता है. यह सड़क पटना, रांची और जमशेदपुर-तीन अहम शहरों को जोड़ती है. झारखंड में यह कोडरमा जिले से लेकर पूर्वी सिंहभूम तक फैली हुई है.केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के आने के बाद पूरे देश में राष्ट्रीय राजमार्गो का चौड़ीकरण शुरू हुआ, लेकिन झारखंड में एनएच 33 का चौड़ीकरण बरसों तक लटका रहा. अभी कुछ वर्षो पहले इसका चौड़ीकरण शुरू हुआ. थोड़े से हिस्से को छोड़ दें, तो यह काम पूरा हो चुका है.

चौड़ीकरण में देरी की सबसे बड़ी वजह यह रही कि यहां एनएच 33 के दोनों किनारों पर जंगल हैं. सड़क चौड़ीकरण के लिए बड़ी तादाद में पेड़ों को काटना था. विकास या पर्यावरण में से किसी एक को चुनना था. अंतत: पर्यावरण को दरकिनार कर विकास को चुना गया है, जिसकी कीमत हमें आज नहीं तो कल जरूर चुकानी पड़ेगी.

जब हजारों पेड़ काट दिये गये, तो यह खबर आयी है कि केंद्र सरकार ने एक योजना तैयार की है जिसमें सड़क के किनारे लगे पेड़ों को काटना नहीं पड़ेगा, बल्कि उन्हें जड़ समेत उखाड़ कर कहीं और लगा दिया जायेगा. गुजरात में कनाडा की एक कंपनी ऐसा ही काम कर चुकी है. सरकार इसी कपंनी से करार करने की तैयारी में है. वैसे, सरकार ने देश की विभिन्न कंपनियों से इस बारे में प्रस्ताव मांगा है. अगर यह तकनीक पहले आ गयी होती तो हजारों पेड़ों को बचाया जा सकता था.

कुछ ऐसे पेड़ भी कट गये जिनके साथ लोगों की धार्मिक आस्था जुड़ी थी, या वहां का स्थानीय इतिहास जुड़ा हुआ था. ऐसे पेड़ों को लोग अपने गांव में रख पाते, तो उन्हें कितनी खुशी होती! अब एनएच 33 पर पूर्वी सिंहभूम जिले के थोड़े से हिस्से में काम बाकी है. चलिए, कम से कम यहीं के कुछ जंगल बच जायें! बताया जा रहा है कि पेड़ों को दूसरी जगह लगाने की यह योजना लागू में तीन-चार महीने लगेंगे. अगर कुछ पेड़ बचाये जा सकते हैं तो उसके लिए इतना इंतजार करने में किसी को ऐतराज नहीं होगा. इस नयी तकनीक से झारखंड में एनएच 6 के चौड़ीकरण में भी फायदा होगा. वहां भी पेड़ नहीं काटने पड़ेंगे. बस मलाल इस बात का रहेगा कि काश, यह तकनीक और पहले आ गयी होती तो बहुत से पेड़ कटने से बच जाते.

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