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जहां चलती नहीं, वहां टांग क्यों अड़ाना

आपके अखबार में चंचल का लेख ‘छड़ी में जादू नहीं है..’ पढ़ा. उन्होंने लिखा है, ‘जहां जो नहीं होना चाहिए, वहां वही हो रहा है. जिन्हें जेल में होना चाहिए था, वो निजाम की कुंजी लिए मुल्क के मुस्तकबिल का फैसला कर रहे हैं.जिन्हें पंचायत की समझ है, वे हाशिये पर डाल दिये गये हैं.’ […]

आपके अखबार में चंचल का लेख ‘छड़ी में जादू नहीं है..’ पढ़ा. उन्होंने लिखा है, ‘जहां जो नहीं होना चाहिए, वहां वही हो रहा है. जिन्हें जेल में होना चाहिए था, वो निजाम की कुंजी लिए मुल्क के मुस्तकबिल का फैसला कर रहे हैं.जिन्हें पंचायत की समझ है, वे हाशिये पर डाल दिये गये हैं.’

अब चंचल की नासमझी कहें या कुछ और, उन्हें यह ज्ञान कहां से हुआ कि इस देश की अवाम इतनी बेवकूफ है कि उसने पंचायत की समझ वालों को कुर्सी से बेदखल करके जेल में डाले जाने योग्य अपराधियों को देश का तख्तोताज सौंप दिया. यह तो चंचल जी ही जानते होंगे कि जिन्हें सत्ता से जनता ने बेदखल किया वे कितने समझदार थे या इस समझदारी का इन लोगों ने इस्तेमाल कर घोटाले दर घोटाले से देश की कितनी सेवा की.

आम लोग चंचल जी की तरह आत्मज्ञानी बुद्धिमान तो थे नहीं कि इतनी महीन बात समझ पाते. उनको तो शायद यहां की जुडीशियरी पर भरोसा था और उनको लगा कि मोदी विरोधियों के सत्ता में होने और लाख कोशिशों के बाद भी अगर जुडीशियरी इनको क्लीन चिट देती है तो यही सही होगा.

इजराइल पर भी चंचल जी के अंदाज नायब हैं. फरमाते हैं कि पहले तो इजराइल का गुणगान करनेवाले आज के सत्ताधीश को जब दुनिया के सामने बोलना पड़ा तो उसके खिलाफ बोल गये. अब चंचल जी को कौन समझाए कि इजराइल के साथ दोस्ती और सहयोग को बढ़ावा सबसे अधिक अगर मिला तो यूपीए शासन के दस सालों में. इजराइल के मसले का, जहां हमारी चलती नहीं, चल सकती नहीं, वहां टांग अड़ाने की बेवकूफी से बचने में समझदारी है. दो महीने में मोदी से चमत्कार की आस अगर चंचल जी पालते हैं तो कहीं न कहीं मोदी में उनका भरोसा दिखता है. बेहतर हो कि वे सब्र रखें.

डॉ शिवशंकर प्रसाद, रांची

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