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भयावह होता कैंसर

दुनियाभर में कैंसर की बीमारी बहुत तेजी से बढ़ रही है. बड़ी संख्या में बच्चे भी इसकी चपेट में आ रहे हैं. वैश्विक स्तर पर कैंसर के शिकार बच्चों की 82 फीसदी संख्या निम्न और मध्यम आय के देशों में है. लांसेट ऑन्कोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, इन देशों में रोग की शुरुआती पहचान […]

दुनियाभर में कैंसर की बीमारी बहुत तेजी से बढ़ रही है. बड़ी संख्या में बच्चे भी इसकी चपेट में आ रहे हैं. वैश्विक स्तर पर कैंसर के शिकार बच्चों की 82 फीसदी संख्या निम्न और मध्यम आय के देशों में है. लांसेट ऑन्कोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, इन देशों में रोग की शुरुआती पहचान न हो पाने और मामूली उपचार के कारण स्वस्थ जीवन के 70 लाख साल बर्बाद हो जाते हैं. अधिक आबादी के जिन 50 देशों पर नजर डालें, तो भारत, चीन, नाइजीरिया, पाकिस्तान और इंडोनेशिया में यह समस्या बेहद गंभीर है.

विकासशील देशों में रोग की पहचान होने के बाद भी 40 फीसदी से कम ही बच्चे पांच साल की उम्र के बाद जीवित रह पाते हैं, जबकि विकसित देशों में यह आंकड़ा 80 फीसदी के आसपास है. इस स्थिति को यदि हर उम्र के कैंसर मरीजों की संख्या के साथ देखें, तो एक भयानक तस्वीर उभरती है. लांसेट जर्नल में छपे एक अन्य शोध के अनुसार, चीन और अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा कैंसर रोगी भारत में हैं. पिछले साल हमारे देश में 6.70 लाख नये मरीजों को कीमोथेरेपी की दरकार थी और 2040 तक यह संख्या हर साल 11 लाख से अधिक हो सकती है.
इसमें अगर गंभीर कैंसर से पीड़ित रोगियों को भी शामिल कर लें, तो यह तादाद 12 से 15 लाख तक भी जा सकती है. साल 2018 में 7.84 लाख मौतों की वजह कैंसर था और 11.5 लाख नये रोगियों की पहचान हुई थी. अभी देश में कैंसर पीड़ितों की संख्या लगभग 22.5 लाख है. स्वास्थ्य सेवा की सीमित पहुंच और लचर व्यवस्था के कारण एक तो 83 फीसदी रोगियों को समुचित उपचार नहीं मिल पाता है, वहीं 15 फीसदी बीमार गलत इलाज की चपेट में हैं.
लगभग 27 फीसदी रोगियों को कीमोथेरेपी की सही दवाएं नहीं मिल पाती हैं. बीते ढाई दशकों में कैंसर की चुनौती दुगुने से भी अधिक हो चुकी है. इस रोग का मुकाबला करने के लिए आगामी दो दशकों में हमें 7300 विशेषज्ञ कैंसर चिकित्सक चाहिए. इनके साथ अन्य प्रशिक्षित कर्मी, इंफ्रास्ट्रक्चर और संसाधन भी जुटाने होंगे. यह बेहद चिंताजनक है कि भारत में अभी करीब 1250 विशेषज्ञ चिकित्सक ही हैं.
जानलेवा होने और स्वस्थ जीवन पर ग्रहण के साथ कैंसर एक आर्थिक चोट भी है. एक अध्ययन के मुताबिक, 2012 में कैंसर के कारण 6.7 अरब डॉलर मूल्य की उत्पादकता का नुकसान हुआ था, जो हमारे सकल घरेलू उत्पादन का 0.36 फीसदी हिस्सा था. महंगे उपचार और बदहाल सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा के कारण लाखों लोग हर साल गरीबी के चंगुल में फंस जाते हैं.
गंभीर कैंसर के इलाज का खर्च देश की अधिकांश आबादी की सालाना पारिवारिक आमदनी से भी ज्यादा है. पिछले कुछ सालों से केंद्र सरकार नयी स्वास्थ्य नीति के तहत राज्य सरकारों के साथ कई स्तरों पर पहलकदमी कर रही है. बजटीय आवंटनों में भी बढ़ोतरी हुई है. इन प्रयासों में कैंसर की रोकथाम पर प्राथमिकता मिलनी चाहिए क्योंकि यह रोग धीरे-धीरे महामारी बनता जा रहा है.

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