ट्रैफिक पुलिस और परिवहन विभाग द्वारा मिल कर औचक जांच अभियान चलाने की खबरें अखबारों में अक्सर छपती हैं. अच्छा भी लगता है कि जिम्मेदार विभाग अपना कार्य सक्रि यता से कर रहे हैं, लेकिन इसे आप मेरा निजी कष्ट कहें या सामाजिक, लेकिन कई कामों में विभागों की विफलता आम लोगों को बड़ा असहाय कर देती है.
बात यह है कि दिसंबर 2013 में मैंने कार खरीदी, जिसका सारा टैक्स उसी समय दे दिया, लेकिन मेरी गाड़ी का रजिस्ट्रेशन कार्ड मुझे तीन महीने तक नहीं मिला और ऐसे ही औचक निरीक्षण के दौरान मेरी गाड़ी पकड़ ली गयी.
सारी रसीद दिखाने पर जिला परिवहन अधिकारी तो मान गये, आनन-फानन में नया नंबर भी इश्यू कर दिया पर ट्रैफिक पुलिस के अधिकारी नहीं माने, चार घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद 500 दंड भरना पड़ा, तब जाकर गाड़ी मिली.
सौरभ मिश्र, बोकारो