आरके पटनायक
पूर्व सेंट्रल बैंकर
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मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) प्रस्ताव में 7 अगस्त, 2019 को 4:2 के मत से नीतिगत रेपो दर में 35 आधार अंकों तक कमी करने का निर्णय लिया गया. यह खास इसलिए भी है कि इससे पहले आमतौर पर 25 आधार अंकों के आसपास बदलाव किये जाते थे. एमपीसी के अध्यक्ष के तौर पर आरबीआइ गवर्नर ने पहले ही संकेत दिया था कि नीतिगत रेपो दर में 25 आधार अंकों से ज्यादा की कटौती हो सकती है. एमपीसी के एक सदस्य, प्रोफेसर रविंद्र ढोलकिया ने तो पिछले एमपीसी प्रस्ताव में 40 आधार अंकों की कमी का विचार दिया था.
एमपीसी के पास ऐसे कई कारण हैं, जिससे उसने दरों में कटौती की पेशकश की है. पहला, वर्तमान महंगाई और संभावित महंगाई, जिसे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (ग्रामीण और शहरी दोनों, संक्षिप्त रूप में- सीपीआइ-सी) में मापा जाता है, वह अपरिवर्तित रहेगी और अनुमान है कि अगले एक वर्ष में औसतन चार प्रतिशत लक्ष्य के आसपास रहेगी.
आंकड़ों के अनुसार, जून 2019 में खुदरा महंगाई (हेडलाइन इन्फ्लेशन) 3.2 फीसदी रही और स्थायी स्फीति (खुदरा महंगाई से खाद्य और ईंधन महंगाई को घटा कर) मध्यम स्तर 4.1 प्रतिशत पर रही. आरबीआइ द्वारा वर्ष 2019-20 की दूसरी तिमाही के लिए अनुमानित मुद्रास्फीति 3.1 प्रतिशत, दूसरी छमाही के लिए 3.5 से 3.7 प्रतिशत और वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही के लिए 3.6 प्रतिशत है. इन सबको ‘ग्रीन’ जोन में कहा जा सकता है, क्योंकि ये लक्षित मुद्रास्फीति की दर चार प्रतिशत से नीचे हैं.
दूसरा, फरवरी-जून की अवधि में ताजा ऋणों पर 29 आधार अंकों की कटौती, दरों में पिछली कटौती से यह बिल्कुल अलग है. यह संकेत है कि औसत कर्ज दर 29 आधार अंक कम है, जो कि वांछित से बहुत कम है. एमपीसी को उम्मीद है कि इसमें सुधार होगा और इसलिए दर में बड़ी कटौती का फैसला किया गया.
तीसरा, आर्थिक उत्पादन (वृद्धि) उत्पादन क्षमता से कम है. चौथा, निवेश और निजी खपत मांग, जो वास्तव में आर्थिक विकास के सही संकेतक हैं और जिसे स्थिर कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के रूप में मापा जाता है, वे अभी मंद हैं.
अत: मौद्रिक नीति (कीमतों की स्थिरता को ध्यान में रखते हुए) में एमपीसी सकल मांग को बढ़ा कर विकास को गति देना चाहती है, जिसके लिए ब्याज दरों में कटौती का फैसला किया गया है. जहां तक वर्ष 2019-20 के लिए विकास दर की बात है, तो एमपीसी ने अपनी जून की नीति में इसे संशोधित कर सात प्रतिशत से घटा कर 6.9 प्रतिशत कर दिया है.
वर्ष 2019-20 की पहली छमाही में यह 6.4-6.7 प्रतिशत के मुकाबले 5.8-6.6 प्रतिशत था. वहीं वर्ष 2019-20 की दूसरी छमाही के लिए विकास का अनुमान 7.3 से 7.5 प्रतिशत और वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही के लिए 7.4 प्रतिशत है. इस प्रकार, निकट भविष्य में विकास के अनुमान में बढ़ोतरी कर इसे 6.9 प्रतिशत से 7.4 प्रतिशत किया जायेगा.
अनुकूल मुद्रास्फीति अनुमान और संशोधित मुद्रास्फीति संभावनाओं के तहत विकास अनुमान के पीछे तर्क यह है कि ब्याज दरों में कमी से निवेश को बढ़ावा मिलेगा और जिससे मांग में वृद्धि होगी. इससे आर्थिक विकास को गति मिलेगी. लेकिन, क्या यह सैद्धांतिक समाधान आर्थिक विकास के लिए पर्याप्त होगा?
ब्याज दरों में कटौती का अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, विशेषकर अर्थव्यवस्था की बचत पर. बैंकों द्वारा ऋण दर में कमी, बैंकों द्वारा जमा दर में कमी के बगैर स्थिर नहीं रह सकती, इससे एक के बाद एक समग्र ब्याज दर कटौती प्रभावित होती है. नतीजतन वित्तीय बचत प्रभावित होती है.
एमपीसी अपने प्रस्ताव में राजकोषीय नीति पर पूरी तरह से चुप है, जो आर्थिक नीति का महत्वपूर्ण अंग है. तथ्यों से स्पष्ट है कि केंद्रीय बजट के राजकोषीय अंकगणित में स्पष्टता की कमी है. चूंकि समय अंतराल अधिक है, इसलिए राजकोषीय परिघटनाओं पर सार्वजनिक तौर पर चर्चा कम होती है.
हालांकि प्राप्तियों, खर्च में वित्तीय फिसलन और घाटे का निजी क्षेत्र के निवेश पर प्रभाव पड़ता है. इस संदर्भ में, यहां रेखांकित करना जरूरी है कि 2019-20 के केंद्रीय बजट में, राजस्व प्राप्तियों में विचलन है, लेकिन बजट स्तर पर राजकोषीय घाटे को कम या अधिक विनिवेश की प्रक्रिया अपना कर व्यवस्थित किया गया है.
आर्थिक विकास पहिये की तरह घूमता है. निवेश और उपभोग इसके दो महत्वपूर्ण संचालक हैं. हालांकि, खपत की अगुआई वाली वृद्धि, विशेष तौर पर सरकारी क्षेत्र द्वारा, टिकाऊ नहीं होती है. यहां सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों द्वारा निवेश की अगुआई वाली वृद्धि वांछनीय है.
वर्तमान में नीतिगत रेपो दर 5.40 प्रतिशत है. मुद्रास्फीति दर के चार प्रतिशत से नीचे रहने का अनुमान है. इस प्रकार, मोटे अनुमान के मुताबिक वास्तविक ब्याज दर लगभग 1.4 प्रतिशत है. एमपीसी ने अभी तक स्पष्ट रूप से नहीं बताया है कि उचित और स्थायी वास्तविक ब्याज दर क्या है, सिवाय कुछ सदस्यों के यह कहने के कि वास्तविक ब्याज दर अधिक है. वास्तविक ब्याज दर के बिना, इस प्रकार दर में कमी करना स्वैच्छिक है और यह टिकाऊ नहीं है.