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अब युद्ध जमीन पर नहीं अंतरिक्ष में

डी रघुनंदन वैज्ञानिक, दिल्ली साइंस फोरम delhi@prabhatkhabar.in वैज्ञानिक तरक्की हमेशा ही एक सतत शोध प्रक्रिया के तहत चलती रहती है और हम इसमें रोज कुछ न कुछ नया और आश्चर्यजनक उपलब्धि जोड़ते चले जाते हैं. दुनियाभर के वैज्ञानिक किसी न किसी खोज में हमेशा लगे ही रहते हैं. चाहे वे खगोल वैज्ञानिक हों, जीव या […]

डी रघुनंदन
वैज्ञानिक, दिल्ली साइंस फोरम
delhi@prabhatkhabar.in
वैज्ञानिक तरक्की हमेशा ही एक सतत शोध प्रक्रिया के तहत चलती रहती है और हम इसमें रोज कुछ न कुछ नया और आश्चर्यजनक उपलब्धि जोड़ते चले जाते हैं. दुनियाभर के वैज्ञानिक किसी न किसी खोज में हमेशा लगे ही रहते हैं. चाहे वे खगोल वैज्ञानिक हों, जीव या पादप वैज्ञानिक हों, या फिर अंतरिक्ष वैज्ञानिक हों.
जाहिर है, जिस तरह की वैज्ञानिक तरक्की होगी, उसी तरह के नये-नये युद्ध की अवधारणाएं भी विकसित होंगी. और उन अवधारणाओं के हिसाब से युद्ध लड़ने के लिए नयी-नयी तकनीकें भी विकसित होंगी. यही वजह है कि चाहे धरती हो, समंदर हो, या अंतरिक्ष हो, इन जगहों पर लड़ने के लिए इनके हिसाब से ही हथियार विकसित किये गये.
अब ऐसा माना जा रहा है कि आगे आनेवाले समय में लोग जमीन पर नहीं लड़ेंगे, बल्कि अंतरिक्ष में लड़ेंगे. उपग्रह और मिसाइलों पर आधारित इस लड़ाई में जो जीतेगा, वही दुनिया पर राज करेगा. दुनिया जीतने की अवधारणा एक बहुत पुरातन अवधारणा है, जिसे दुनिया का हर ताकतवर इंसान हमेशा इसको अपने अंदर जीवित रखता है. कितने बड़े-बड़े युद्ध हुए और लाखों लोग उन युद्धों में मार दिये गये, लेकिन अब भी लड़ाई खत्म नहीं हुई है.
वक्त बदल गया है, तो लड़ाई का फॉरमेट भी बदल गया है. यही वजह है कि स्पेस वार के लिए दुनिया के बड़े और शक्तिशाली देश अपने-अपने तरीके से जुटे हुए हैं. अब भारत भी इसमें शामिल हो गया है, जो आज से कुछ महीने पहले ही अंतरिक्ष में किसी सैटेलाइट को धरती से मिसाइल के जरिये मारने की क्षमता विकसित कर चुका है.
इस सिस्टम को एंटी सैटेलाइट (ए-सैट) हथियार का नाम दिया गया है. इसी सिस्टम के तहत भारत ने ‘इंडियन स्पेस एक्स’ नामक दो दिवसीय युद्धाभ्यास शुरू किया है. इससे संबंधित खबर आयी है कि हमारे देश की तीनों सेनाएं और कुछ प्रख्यात वैज्ञानिक इस अभ्यास को अंजाम दे रहे हैं. अंतरिक्ष में विचरण कर रहे किसी सैटेलाइट को धरती से मार गिरानेवाले सक्षम देशों में भारत के अलावा अमेरिका, रूस और चीन, ये तीनों देश बहुत पहले ही यह उपलब्धि हासिल कर चुके थे. भारत चौथा देश है, जिसके पास यह क्षमता है. भारत के लिए यह एक उपलब्धि तो है, लेकिन कोई बड़ी और महान उपलब्धि नहीं है. मैं समझता हूं कि इससे भारत को कोई बड़ा वैज्ञानिक फायदा नहीं होनेवाला है.
पिछले बीस साल से रूस, चीन और अमेरिका के पास ये हथियार पड़े हुए हैं, लेकिन उन्हाेंने अभी तक इसका बेजा इस्तेमाल नहीं किया है, और भविष्य में ऐसा करना भी नहीं चाहिए.
हालांकि, सवाल उठते रहे हैं कि कोई देश किसी दूसरे देश के महत्वपूर्ण सैटेलाइट को मार गिरायेगा और उसे घुटने टेकने के लिए मजबूर कर देगा. यह सवाल वैसा ही है कि अगर किसी के पास बंदूक है, तो वह दूसरे को गोली मार देगा.
लेकिन, इस तर्क के पीछे कोई ठोस वजह नहीं है. कोई देश नहीं चाहेगा कि किसी दूसरे देश के सैटेलाइट को बेवजह मार गिराये, क्योंकि इससे उसका भी नुकसान हो सकता है. स्पेस वार की अवधारणा पर ऐसा कोई भी वैज्ञानिक सहमत नहीं होगा, जो मानव सभ्यता की तरक्की के लिए प्रयासरत होगा.
अंतरिक्ष में अपनी क्षमता हासिल करना एक अलग बात है, लेकिन वहां युद्ध करना एक दूसरी बात है. अंतरिक्ष विज्ञान में सक्षम होने का मतलब है कि ज्यादा से ज्यादा सूचनाएं एकत्र कर हम अपने देश को ज्यादा शोध और तरक्की के रास्ते पर ले जा सकते हैं, न कि युद्ध कर विध्वंस के रास्ते पर.
मेरा एक सीधा सा सवाल है कि अंतरिक्ष में इस तरह से युद्ध करने से किसी देश को फायदा क्या है? आखिर हम करना क्या चाहते हैं? इसकी जगह हमें तो करना यह चाहिए कि हम महत्वपूर्ण सूचनाओं के लिए ही अंतरिक्ष में सैटेलाइट भेजें.
कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि अंतरिक्ष में जो सैटेलाइट क्षतिग्रस्त हो चुके हैं, इस तकनीक से उनको मारकर खत्म किया जा सकता है, ताकि अंतरिक्ष में कूड़ा इकट्ठा न हो. उन्हें यह जानना चाहिए कि अंतरिक्ष में क्षतिग्रस्त सैटेलाइट तो कुछ समय बाद जलकर खुद ही नष्ट हो जाते हैं.
दरअसल, यह एक पुरानी सोच है कि दुश्मनों के सैटेलाइट को हम गिरा देंगे. सोचना अच्छी बात है, लेकिन आखिर लोग यह क्यों नहीं सोच पाते कि दुश्मन भी अगर हमारे सैटेलाइट गिराने लगें, तब क्या होगा?
यह एक प्रकार से सैन्य सोच है कि दुश्मन देश के मिलिटरी सैटेलाइट को गिराकर उसको मजबूर कर दिया जायेगा. लेकिन, मजे की बात यह है कि जिन तीन देशों (रूस, चीन, अमेरिका) ने ऐसा करने की सोचकर यह क्षमता विकसित की, उन्होंने भी इस तकनीक पर पंद्रह साल पहले ही काम करना छोड़ दिया.
दरअसल, इन देशों ने यह बात तभी समझ ली थी कि इसका कोई फायदा नहीं है. ऐसा इसलिए, क्योंकि अगर गलती से निशाना चूक गया और मिलिटरी सैटेलाइट गिराने की जगह किसी टेलीविजन सैटेलाइट को गिरा दिया, तो फिर लेने के देने पड़ जायेंगे.
इससे कोई फायदा होने के बजाय खुद का ही नुकसान होगा. हमारे ज्यादातर काम सैटेलाइट के जरिये ही संभव हो पाते हैं. संचार माध्यमों की सारी व्यवस्थाएं सैटेलाइट पर टिकी हुई हैं. ऐसे में इस युद्धाभ्यास से मुझे कोई बड़ा फायदा नजर नहीं आ रहा है. हां, हमने अंतरिक्ष में यह क्षमता विकसित कर ली है, यह हमारे लिए एक अच्छी उपलब्धि जरूर है.

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