रांची की निचली अदालत द्वारा ऋचा को पांच कुरान बांटने की जो सजा सुनाया उसको लेकर पूरे भारत में उठे जबर्दस्त जनाक्रोश के कारण कोर्ट को दी गयी सजा का निर्णय बदलना पड़ा है. उसे अपनी भूल का एहसास हो गया. कोर्ट ने पूर्व निर्णय को बदलते हुए न्यायपालिका पर लोगों के विश्वास को खोने से बचाने में सफलता पायी है.
वास्तविकता में यह विजय जाग्रत नागरिकों की है. देश की जनता अपने अधिकारों के प्रति कितनी जागरूक है, यह ऋचा ने साबित किया है. कोई भी पक्ष हमारी धार्मिक स्वतंत्रता पर विवश नहीं कर सकता. कोर्ट के निर्णय सभी पक्षों के लिए समान होने चाहिए. इस देश की संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता की बात स्पष्ट रूप से कही गयी है. ऐसे ही बेबुनियादी निर्णयों के कारण न्यायपालिका अपना विश्वास खो देती है. इस तरह के निर्णय देश के लोकतंत्र के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं.
मंगलेश सोनी, मनावर,धार