आज 21वीं सदी में पूरे विश्व में हर जगह असहिष्णुता, हिंसा, कट्टरवाद, अपराध, विवाद का बोलबाला हो गया है, जो विकास और कल्याणकारी कार्यों में बाधा उत्पन्न कर रहा है. इतना ही नहीं, विश्व पटल पर भी देखा जाये, तो एक देश का दूसरे देशों के साथ विभिन्न हितों के टकराव को लेकर विश्वयुद्ध की नौबत बनती रही है.
यह स्थिति मानव जाति के हितों के लिए कतई सही नहीं है. बढ़ते हुए आतंकवाद व नक्सली घटना, लोगों की सहनशीलता का बेहद कमजोर होना, स्थानीय स्तर पर बढ़ती हुई हिंसा के चलते राष्ट्रीय स्कूली शिक्षा पाठ्यचर्या के ढांचे में शांति शिक्षा को महत्वपूर्ण स्थान दिये जाने की जरूरत है.
साथ ही इसको व्यापक तौर पर व्यवहार में अमल में भी लाना जरूरी है. शांति शिक्षा मूल्य, ज्ञान और व्यवहार, कौशल और व्यवहार को विकसित करने की प्रक्रिया है, जो मानव में विश्व शांति की दिशा में बेहद सार्थक पहल हो सकती है.
सौरभ भारद्वाज, रोसड़ा (समस्तीपुर)