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राज्य मंत्रियों की भूमिका

केंद्रीय मंत्रिपरिषद में शामिल राज्य मंत्री अब अधिक उत्तरदायित्व का वहन कर सकेंगे. इस श्रेणी में आनेवाले कनिष्ठ मंत्रियों का कार्य कैबिनेट मंत्रियों का सहयोग करना होता है, लेकिन यह लगभग परिपाटी बन गयी है कि अक्सर उन्हें कम महत्व के विभागीय काम, जैसे- राजभाषा से जुड़े मामले, संसद के अतारांकित प्रश्नों के उत्तर तैयार […]

केंद्रीय मंत्रिपरिषद में शामिल राज्य मंत्री अब अधिक उत्तरदायित्व का वहन कर सकेंगे. इस श्रेणी में आनेवाले कनिष्ठ मंत्रियों का कार्य कैबिनेट मंत्रियों का सहयोग करना होता है, लेकिन यह लगभग परिपाटी बन गयी है कि अक्सर उन्हें कम महत्व के विभागीय काम, जैसे- राजभाषा से जुड़े मामले, संसद के अतारांकित प्रश्नों के उत्तर तैयार करना आदि- मिलते हैं. ऐसे में वे निर्णय करने की प्रक्रिया में अधिक योगदान नहीं कर पाते हैं.

कैबिनेट मंत्री द्वारा राज्य मंत्रियों की अनदेखी की शिकायतें पूर्ववर्ती सरकारों के दौर में आती रही थीं, पर अब इस स्थिति में ठोस बदलाव की संभावना है. कैबिनेट सचिवालय ने सभी मंत्रालयों के सचिवों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि हर संचिका राज्य मंत्री से होकर ही कैबिनेट मंत्री के पास पहुंचे. इस निर्देश में यह भी आगाह किया है कि अति आवश्यक होने का आधार बना कर संचिका को सीधे कैबिनेट मंत्री के पास भेजने की कोशिश न हो.

रिपोर्टों के अनुसार, शपथ ग्रहण के बाद हुई पहली कैबिनेट बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंत्रियों से अपने विभाग के राज्य मंत्रियों को अधिक जिम्मेदारी देने को कहा था, ताकि वे सरकार के कामकाज को सीख सकें और उनमें दरकिनार होने का भाव न पैदा हो. प्रधानमंत्री का वह आग्रह अब औपचारिक तौर पर कैबिनेट सचिवालय द्वारा निर्दिष्ट कर दिया गया है.

प्रधानमंत्री मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान भी इस तरह के निर्देश जारी हुए थे, पर उनका असर नहीं पड़ा था. कनिष्ठ मंत्रियों का दायरा संसद में लिखित उत्तर देने तक सीमित था और बहुत कम अवसरों पर ही उन्हें बोल कर जवाब या स्पष्टीकरण देने का अवसर मिला था.

अहम बैठकों और निर्णयों में भी उनकी भागीदारी न के बराबर रही थी. ऐसा माना जा रहा है कि इस बार जब स्वयं प्रधानमंत्री कैबिनेट के सहयोगियों से कनिष्ठों के साथ जिम्मेदारी बांटने का आग्रह कर रहे हैं, तो निश्चित रूप से इसका सकारात्मक प्रभाव होगा.

इसकी गंभीरता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि ताजा निर्देश में एक नया हिस्सा जोड़ कर साफ कहा गया है कि संसद के तारांकित प्रश्नों एवं ध्यानाकर्षण प्रस्तावों समेत सभी संचिकाएं राज्य मंत्रियों से होकर ही कैबिनेट मंत्री की मेज पर आयेंगी. वर्तमान मंत्रिपरिषद में 33 राज्य मंत्री हैं, जिनमें नौ राज्य मंत्रियों को स्वतंत्र प्रभार मिला है, पर उनमें से कुछ विभिन्न मंत्रालयों में राज्य मंत्री के रूप में भी योगदान दे रहे हैं. दोनों श्रेणियों में 17 नये चेहरे हैं. उल्लेखनीय है कि मंत्रिपरिषद की औसत आयु 60 वर्ष से नीचे है और जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा है, इसमें युवा ऊर्जा और प्रशासनिक अनुभव का मेल है.

ऐसे में अगर राज्य मंत्रियों को अधिक जिम्मेदारी दी जाती है, तो न सिर्फ इससे उनकी क्षमता के विकास में मदद मिलेगी, बल्कि सरकार का प्रदर्शन भी बेहतर होगा. आशा है कि सरकार में सामूहिकता और सहभागिता बढ़ाने में यह सराहनीय पहल बहुत कारगर साबित होगी.

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