नौकरियों में आरक्षण दशकों से चली आ रहा है. कभी अंगरेजी सरकार ने अपनी सत्ता सुरक्षित रखने के लिए इसके जरिये हम लोगों को बांटा था. आजादी के बाद भी यह रीति ज्यादा नहीं बदली है. पहले यह धर्म के नाम पर होता था और अब जाति के नाम पर, लेकिन उद्देश्य वही है, सत्ता की लालसा. इस आरक्षण के जरिये हमारे आज के नेता अपने वोट आरक्षित कराते हैं और फिर कुरसी के सामने देश के विकास का पलड़ा हल्का पड़ जाता है.
आज किसी भी क्षेत्र में नजर डालें, हर जगह अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए आरक्षण है. जब सबको एक जैसी शिक्षा मिल रही है तो नौकरियों में भेदभाव क्यों? किसी भी पद के लिए व्यक्ति की कार्यशैली और बुद्धिमत्ता मायने रखती है, उसकी जाति नहीं. आरक्षण की वजह से देश के विकास को क्षति पहुंचती है, यह व्यवस्था खत्म हो.
निधि कुमारी, रांची