सोमवार को जारी आंकड़ों के अनुसार, जून में थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर 5.43 फीसदी रही, जो पिछले चार महीने में सबसे कम है. मई में यह 6.01 फीसदी तक पहुंच गयी थी. बढ़ती महंगाई और अपेक्षा से कम विकास दर से जूझती अर्थव्यवस्था के लिए यह खबर बहुत संतोषजनक हो सकती थी, विशेषरूप से तब जबकि शेयर मार्केट में तेजी है और मोदी सरकार के पहले बजट से उद्योग व व्यापार जगत में उत्साह है.
मुद्रास्फीति की दर यानी महंगाई पर नियंत्रण सरकार की घोषित प्राथमिकताओं में है और आर्थिक सर्वेक्षण ने भी कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था की सकारात्मक छवि पेश की थी. लेकिन, कमजोर मॉनसून के कारण देश के कई हिस्सों में औसत से बहुत कम बारिश से सूखे की स्थिति पैदा होने के पूरे आसार हैं. भारत की तकरीबन दो ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में खेती का हिस्सा भले ही 14 फीसदी के आसपास हो, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में बसनेवाली दो-तिहाई आबादी इसी अर्थतंत्र पर आश्रित है.
मौसम विभाग के ताजा अनुमानों के अनुसार 14 जुलाई के बाद अच्छी बारिश हो सकती है, जिससे औसत वर्षा की कमी काफी हद तक पूरी हो सकती है. लेकिन, जानकारों का यह भी मानना है कि अगर ये अनुमान सही भी साबित होते हैं, तब भी इस वर्ष खाद्यान्न उत्पादन में कमी होगी और अर्थव्यवस्था पर इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा. ऐसे में मुद्रास्फीति में कमी के फायदे बेअसर हो सकते हैं. कमजोर मॉनसून से निर्यात, खाद्यान्न मुद्रास्फीति और उपभोक्ता वस्तुओं की मांग पर प्रतिकूल असर पड़ता है. कई जरूरी चीजों के आयात की भी जरूरत पड़ सकती है.
औसत से काफी कम वर्षा के कारण पांच वर्ष पहले 2009 में ऐसे ही हालात पैदा हुए और देश के कई हिस्सों को सूखे के संकट से जूझना पड़ा था. हालांकि वित्त मंत्री ने भरोसा जताया है कि कृषि उत्पादन पर बहुत असर नहीं होगा और आपात स्थिति से निबटने के लिए केंद्र के भंडारों में पर्याप्त अनाज है. केंद्र ने राज्य सरकारों के साथ मिल कर 500 जिलों में खेती के लिए आपात तैयारी भी शुरू कर दी है. जाहिर है, यह मोदी सरकार और देशवासियों के लिए मुद्रास्फीति के ताजा आंकड़ों पर खुश होने का नहीं, बल्कि बड़ी चुनौती से निपटने के लिए तैयार रहने का वक्त है.