‘सबने मेरा शोषण किया, जाऊं तो कहां जाऊं’ शीर्षक से सात जुलाई को प्रभात खबर के ‘आधी आबादी’ पृष्ठ पर प्रकाशित खबर आंखें खोलनेवाली तो है ही, मौसा और सगे पिता से बलत्कृत होते रहने के लिए विवश 17 वर्षीया लड़की के लिए और कोई ठिकाना न होना हमारे राज्य के लिए शर्मनाक भी है. बड़े दुख की बात है कि राज्य गठन के 14 साल होने को आये, लेकिन लाचार महिलाओं के लिए सरकार शेल्टर होम (आसरा घर) नहीं खोल सकी.
शायद महिला उत्थान के नाम पर यहां ढोंग ही हो रहा है या यदि कुछ सकारात्मक हो भी रहा है तो निस्संदेह वह पर्याप्त नहीं है. हमारे राज्य में जगह या संसाधन की कमी नहीं है, कमी है इच्छाशक्ति की. फिलहाल तो सैकड़ों एकड़ वाला रांची अवस्थित पुराना जेल परिसर इसके लिए उपयुक्त स्थान हो सकता है क्योंकि यह शहर के केंद्रीय स्थल पर है. समझ में नहीं आता कि अंधों, बहरों और गूंगों के, राजनीतिक रूप से अस्थिर इस अविकसित राज्य में किसके सामने फरियाद करूं. सार्वजनिक जिम्मेदारी कोई जिम्मेदारी नहीं होती है.
अत: मैं राजधानी की नवनिर्वाचित मेयर आशा लकड़ा से अनुरोध करती हूं कि वे इस दिशा में ठोस पहल करें. यहां एक हजार बेड क्षमतावाला महिला शेल्टर होम सह प्रशिक्षण केंद्र खुलवायें, जिससे राज्यभर की लाचार महिलाएं वहां से हुनरमंद होकर औरों का सहारा बनें और राज्य के विकास में योगदान दें. दिल्ली की निर्भया की मौत का मातम मना कर हम निश्चिंत नहीं हो सकते हैं. शहर के विकास के लिए मेयर की पहल से नालियों का पुनरुद्धार तो हो रहा है, वक्त का तकाजा है कि नैतिक पतन की नालियों से स्त्रियों को बचा कर उन्हें ऐसा आश्रयस्थल दें जहां वे सुरक्षित एवं सम्मानित जीवन जी सकें.
डॉ उषा किरण, खेलगांव, रांची