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राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर संकल्प

शफक महजबीन टिप्पणीकार mahjabeenshafaq@gmail.com भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संसद में एक बार कहा था- ‘प्रेस आधुनिक जीवन के महत्वपूर्ण हिस्सों में एक है, खासकर लोकतंत्र में. प्रेस में बहुत ताकत और इसकी जिम्मेदारियां भी हैं.’ इन्हीं जिम्मेदारियों को निभाते हुए तमाम महत्वपूर्ण खबरों और जानकारियों को लोगों तक पहुंचानेवाले पत्रकारों (प्रेस) के […]

शफक महजबीन

टिप्पणीकार

mahjabeenshafaq@gmail.com

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संसद में एक बार कहा था- ‘प्रेस आधुनिक जीवन के महत्वपूर्ण हिस्सों में एक है, खासकर लोकतंत्र में. प्रेस में बहुत ताकत और इसकी जिम्मेदारियां भी हैं.’ इन्हीं जिम्मेदारियों को निभाते हुए तमाम महत्वपूर्ण खबरों और जानकारियों को लोगों तक पहुंचानेवाले पत्रकारों (प्रेस) के लिए खास है आज का दिन.

दरअसल, भारत में प्रेस परिषद की स्थापना चार जुलाई, 1966 को हुई थी, लेकिन 16 नवंबर, 1966 से इसने काम करना शुरू किया. इसलिए हर साल 16 नवंबर को ‘राष्ट्रीय प्रेस दिवस’ मनाया जाता है. इसका उद्देश्य प्रेस को ताकतवर बनाना है, जिससे पत्रकार सच्ची खबरों को लोगों के सामने लाने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी पूरी कर सकें.

निष्पक्ष भाव, किसी तथ्य को बिना तोड़े-मरोड़े पेश करना और व्यावसायिक गोपनीयता का ख्याल रखना आदि पत्रकारों की जिम्मेदारियां हैं, जिन्हें वे बखूबी निभाते रहे हैं.

पत्रकार अपना काम पूरी लगन से तभी कर सकते हैं, जब उन पर किसी भी तरह का गैर-जरूरी दबाव न हो और उन्हें सच बाहर लाने की आजादी हो. जैसा कि देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने पत्रकारिता के बारे में लिखा है- ‘कलम की निरंकुशता खतरनाक हो सकती है, लेकिन उस पर व्यवस्था का अंकुश ज्यादा खतरनाक है.’ विडंबना है कि पत्रकारों पर यह अंकुश या दबाव कभी घटा नहीं, बल्कि बढ़ता ही चला गया और यह स्थिति निरंतर बनी हुई है. इस स्थिति का अंदाजा देश के कुछ जांबाज पत्रकारों की हत्या को देखते हुए आसानी से लगाया जा सकता है.

हमें यह समझना बहुत जरूरी है कि प्रेस की आजादी से लोकतंत्र को मजबूती मिलती है, इसलिए किसी मजबूत राष्ट्र के लिए प्रेस की आजादी बहुत जरूरी होती है. क्योंकि प्रेस समाज का दर्पण है, जो सच और झूठ को हमारे सामने लाता है.

अफसोस है कि कुछ पत्रकार पत्रकारिता के सिद्धांतों को ताक पर रख देते हैं और ऐसी खबरें करते हैं, जो सच से कोसों दूर होती हैं. वे फेक न्यूज को बढ़ावा देते हैं.

फेक न्यूज लोकतंत्र के लिए घातक है. फेक न्यूज को लेकर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है- ‘फेक न्यूज एक वायरस की तरह है, जिससे पूरा देश कभी-कभी संक्रमित हो जाता है और इससे किसी की जान भी चली जाती है.’ हम देख चुके हैं कि फेक न्यूज समाज में हिंसा का कारण भी बनती रही है. यहीं पर प्रेस और पत्रकारों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है और यहीं हमें ‘राष्ट्रीय प्रेस दिवस’ का महत्व भी समझ में आता है.

मीडिया लोगों और खबरों के बीच एक सेतु है. यह लोगों तक सच्ची खबरों और सही जानकारियों को पहुंचाने का माध्यम होता है. ऐसे में अगर सोशल मीडिया पर कोई गलत खबर वायरल होती है, तो मीडिया की जिम्मेदारी है कि इसकी तह में जाकर सच सामने लाये. अच्छी खबरों की अहमियत को समझना चाहिए और खबरों में तथ्यों को हूबहू रखना चाहिए. आज ‘राष्ट्रीय प्रेस दिवस’ पर यह संकल्प जरूरी है.

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