मॉब लिंचिंग भारतीय लोकतंत्र के गाल पर तमाचा है. भीड़ द्वारा बर्बरतापूर्ण तरीके से किसी व्यक्ति की हत्या कर देने को किसी भी परिस्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता.
इस प्रकार कानून हाथ में लेकर लोग न्यायपालिका को चुनौती दे रहे हैं, जिस पर अभी तक भारतीय जनमानस का पूरा भरोसा कायम है. मॉब लिंचिंग नैसर्गिक न्याय के भी खिलाफ है. भारतीय संविधान ने भी अपराधी को निष्पक्ष मुकदमे का हक प्रदान किया है. हालांकि 17 जुलाई 2018 को ही सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने केंद्र सरकार को इस पर कानून बनाने का आदेश दिया है.
साथ ही कई महत्वपूर्ण निर्देश भी दिये हैं. कोर्ट तो इस मसले पर गंभीर है, लेकिन क्या हमारा समाज इतना असभ्य, आक्रोशित, असंवेदनशील, हिंसक और बर्बर हो चुका है कि आज के युग में भी कुछ लोग मिलकर विभत्स तरीके से किसी की जान ले सकते हैं?
अलीरजा अंसारी, कैरो, लोहरदगा