विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की अक्सर प्रशंसा होती है कि वे अपने विभाग से संबंधित शिकायतों पर तुरंत सुनवाई करती हैं, चाहे वह शिकायत सोशल मीडिया के जरिये ही क्यों न की जाती हो.
कुछ दिन पहले पासपोर्ट के मामले में अंतर्धार्मिक विवाह करनेवाले एक दंपत्ति की शिकायत पर भी उन्होंने कार्रवाई की है. लेकिन, इसके लिए सोशल मीडिया पर उन्हें अभद्र तरीके से कोसा जा रहा है. पासपोर्ट हासिल करना हर नागरिक का हक है और इसे सुनिश्चित करना संबंधित अधिकारियों का कर्तव्य है.
संविधान इस बात की गारंटी देता है कि इस तरह के मामलों में किसी नागरिक के साथ जाति, धर्म, प्रांत, लिंग, भाषा आदि के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए. अगर कोई पूर्वाग्रहग्रस्त अधिकारी ऐसा करता है, तो यह मंत्री और अन्य शीर्ष अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि वे समुचित कार्रवाई करें. सुषमा स्वराज ने ठीक यही किया है.
कर्तव्यनिष्ठ तत्परता के लिए उनकी सराहना होनी चाहिए थी, लेकिन हुआ उल्टा. सोशल मीडिया पर उन्मादी ट्रोल हजारों की संख्या में उनकी निंदा कर रहे हैं. इन अभद्र संदेशों में दंपत्ति के खिलाफ सांप्रदायिक टिप्पणी के साथ विदेश मंत्री को अपमानित किया जा रहा है. इन हरकतों से आहत स्वराज ने सोशल मीडिया के जरिये अपना क्षोभ जताया है.
यह दुर्भाग्यपूर्ण प्रकरण हमारे समय के एक बड़े अघट को इंगित करता है. कहने, लिखने और सुनने की आजादी एक तर्कसंगत और संतुलित व्यवहार करनेवाले व्यक्ति की मांग करती है, लेकिन सोशल मीडिया की दुनिया में ऐसे सभ्य और शालीन संवाद को सुनिश्चित करना असंभव होता जा रहा है. असंभव इसलिए कि तार्किकता और मर्यादा के हवाले को बड़ी आसानी से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला करार दिया जा सकता है. लोकरक्षा के धर्म के निर्वाह से कोई व्यवहार लोकतांत्रिक होता है, लोकप्रिय होने भर से इसकी गारंटी नहीं होती.
फेसबुक और ट्वीटर जैसे मंचों का इस्तेमाल अगर येन-केन-प्रकारेण जनमत को प्रभावित करने, लोकप्रियता पाने और उन्माद फैलाने के इरादे से होने पर जोर दिया जाता रहेगा, तो यह बड़ा खतरा बन जायेगा. धार्मिक और जातिगत तनाव पैदा करने से लेकर झूठ और अफवाह फैलाने के कई दुष्परिणामों को हमारा समाज भुगत रहा है.
सार्वजनिक या पेशेवर जीवन में योगदान दे रहे लोगों को डराने-धमकाने और बदनाम करने की कोशिशें भी आम हो चली हैं. सुषमा स्वराज इसी रवैये का निशाना बनी हैं. यदि एक सक्षम और सम्मानित केंद्रीय मंत्री के साथ भी इंटरनेट ट्रोल गिरोहबंद होकर हमलावर हो सकते हैं, तो इसे एक बड़ी चेतावनी के रूप में लिया जाना चाहिए.
लोकतांत्रिक स्वरों को मुखर होना पड़ेगा और प्रशासन को भी इंटरनेट अतिवाद से कड़ाई से निपटना होगा. उम्मीद है कि ऐसे नकारात्मक और दुर्बुद्धिग्रस्त तत्वों के विरुद्ध एक व्यापक राजनीतिक और सामाजिक एका बनेगी तथा इन ट्रोल गिरोहों पर प्रभावी अंकुश लग सकेगा.