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कब रुकेंगे हादसे?
बनारस में निर्माणाधीन ओवरब्रिज के एक हिस्से के गिरने की वजहें तो गहन जांच के बाद सामने आयेंगी, पर अभी कुछ बातें बिल्कुल साफ हैं. किसी भी निर्माण के दौरान तीन बातों का बुनियादी तौर पर ध्यान रखना होता है, ताकि हादसे न हों. इस सिलसिले की पहली बात सुरक्षा-संबंधी मानकों का कड़ाई से पालन […]
बनारस में निर्माणाधीन ओवरब्रिज के एक हिस्से के गिरने की वजहें तो गहन जांच के बाद सामने आयेंगी, पर अभी कुछ बातें बिल्कुल साफ हैं.
किसी भी निर्माण के दौरान तीन बातों का बुनियादी तौर पर ध्यान रखना होता है, ताकि हादसे न हों. इस सिलसिले की पहली बात सुरक्षा-संबंधी मानकों का कड़ाई से पालन है. इसके साथ हिफाजती इंतजाम जरूरी होते हैं. तीसरा चरण हादसे के बाद राहत और बचाव के उपायों से जुड़ा है. बनारस के इस मामले में इन तीनों बुनियादी बातों की अनदेखी हुई है.
खबरों के मुताबिक, प्रशासन को कई बार आगाह किया गया था कि पुल के इलाके में वाहनों की आवाजाही बहुत ज्यादा है, सो, रास्ते को बदलकर निर्माण कराना ठीक होगा. लेकिन इसे अनसुना कर दिया गया. आम तौर पर जहां भी निर्माण कार्य चल रहा होता है, उस जगह के इर्द-गिर्द घेरा लगाने के साथ आवागमन को या तो सीमित कर दिया जाता है या फिर रोक दिया जाता है. लोगों को सावधानी बरतने के संकेत देने के लिए लाल झंडों और बत्तियों का इस्तेमाल होता है.
लेकिन बनारस में ऐसे न्यूनतम उपाय भी नहीं किये गये थे. अफसोस की बात यह भी है कि दुर्घटना के बाद तुरंत के अहम घंटों में न तो ऐसे क्रेन उपलब्ध थे, जिनके सहारे भारी मलबे हटाये जा सकें और न ही मलबे को टुकड़े में काटने के औजार.
अगर ये व्यवस्थाएं होतीं, तो कई जिंदगियों को बचाया जा सकता था. ध्यान रहे, ऐसे हादसे देश के अलग-अलग हिस्सों में अक्सर घटित होते रहते हैं. इसके बावजूद उन त्रासदियों से सबक लेने की कोई प्रवृत्ति हमारे प्रशासनिक तंत्र में दिखायी नहीं देती है. मार्च, 2016 में कोलकाता में ऐसी ही दुर्घटना हुई थी.
तब निर्माणाधीन पुल के गिरने से 18 लोगों ने जान गंवायी थी. जून, 2014 में चेन्नई में एक निर्माणाधीन ग्यारह मंजिली इमारत के गिरने से 61 लोगों की जान गयी थी. साल 2013 के अप्रैल और सितंबर में मुंबई में दो निर्माणाधीन इमारतों के गिरने की घटनाओं में 150 से ज्यादा लोग मारे गये थे. दिल्ली में 2010 में एक आवासीय परिसर के गिरने से 69 लोगों की जान गयी थी.
इन तमाम घटनाओं में निर्माण कार्य से जुड़े सुरक्षा मानकों के पालन में लापरवाही ही जिम्मेदार रही थी. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का आकलन है कि भारत में हर साल कार्यस्थलों पर औसतन 48 लाख लोगों की मौत होती है और इसमें एक चौथाई (24.20 फीसद) मौतें सिर्फ निर्माण कार्य के क्षेत्र से संबंधित हैं. प्रशासन और न्यायिक तंत्र की उदासीनता का आलम यह है कि अक्सर दोषी अधिकारी और ठेकेदार या तो छूट जाते हैं या फिर उन्हें मामूली सजा मिलती है.
बनारस के हादसे में जवाबदेही को फौरन तय करना तो जरूरी है ही, इससे सबक लेते हुए निर्माण कार्यों से संबंधित सुरक्षा मानकों का कठोरता से पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए तथा दोषियों पर गंभीर कार्रवाई होनी चाहिए. पर, नेताओं, अधिकारियों और ठेकेदारों की भ्रष्ट सांठ-गांठ को देखते हुए इन उम्मीदों का पूरा होना मुमकिन नहीं दिखता.
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