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मैक्रों का दौरा

फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों के भारत दौरे और द्विपक्षीय समझौतों की अहमियत को वैश्विक स्तर पर बदलते शक्ति-संतुलन के संदर्भ में समझा जाना चाहिए. ब्रेक्जिट के बाद आर्थिक शक्ति के बतौर यूरोपीय संघ का भविष्य बहुत कुछ जर्मन नेता एंजेला मर्केल पर निर्भर माना जा रहा था, पर जर्मन राजनीति में उनका नेतृत्व कमजोर हुआ […]

फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों के भारत दौरे और द्विपक्षीय समझौतों की अहमियत को वैश्विक स्तर पर बदलते शक्ति-संतुलन के संदर्भ में समझा जाना चाहिए. ब्रेक्जिट के बाद आर्थिक शक्ति के बतौर यूरोपीय संघ का भविष्य बहुत कुछ जर्मन नेता एंजेला मर्केल पर निर्भर माना जा रहा था, पर जर्मन राजनीति में उनका नेतृत्व कमजोर हुआ है.
उदारवादी होने के नाते मैक्रों मजबूत नेता माने जाते हैं. उनके पास आर्थिक सुधार की महत्वाकांक्षी योजनाएं हैं. वे संरक्षणवाद के मुखर विरोधी हैं. ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के लिए विदेशी निवेश और तकनीकी सहयोग के आकांक्षी भारत के लिए उनका यह रुख अनुकूल है.
जैतापुर परमाणु संयंत्र के लिए तकनीक मुहैया कराने की दिशा में प्रगति इसका एक संकेत है. अमेरिका की संरक्षणवादी नीतियों और उसके अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारी के कुछ समझौतों से पीछे हटने से पैदा हुई वैश्विक चुनौतियों के साथ चीन के बढ़ते वर्चस्व से उत्पन्न एशिया-प्रशांत क्षेत्र की मौजूदा भू-राजनीति के संदर्भ में भी मैक्रों की यात्रा अहम है.
जलवायु परिवर्तन से संबंधित पेरिस समझौते से अमेरिका के हाथ खींच लेने के बाद भारत और फ्रांस इस समझौते के तहत साझेदारी में काम करने की दिशा में अग्रसर हैं. अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन में फिलहाल 60 से ज्यादा देश शामिल हो चुके हैं.
इस पहल के जरिये जीवाश्म-ईंधन पर निर्भर वैश्विक अर्थव्यवस्था के भीतर विकासशील देशों के लिए अपनी आर्थिक दावेदारी का एक नया और वैकल्पिक मंच तैयार होने की संभावना को बल मिला है. राष्ट्रपति मैक्रों तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संयुक्त घोषणा में यह तथ्य आया है कि सस्ते दर पर सौर-ऊर्जा हासिल करने के साधन उपलब्ध कराये जायेंगे और इसके लिए धन जुटाने की कोशिशें होंगी.
भारत (1.4 अरब डॉलर) और फ्रांस (1.3 अरब डॉलर) इस उद्देश्य से निवेश के लिए तैयार हैं. दोनों देशों की परस्पर निकटता सघन होने का एक साझा बिंदु चीन है. उसकी ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना का एक हिस्सा पूर्वी यूरोप के देशों तथा रोमानिया, सर्बिया, स्लोवानिया जैसे बाल्कन मुल्कों से जुड़ता है. अगर चीनी परियोजना को कामयाबी मिलती है, यह यूरोपीय संघ के आर्थिक हितों और प्रभाव की कीमत पर होगा.
हिंद महासागर में चीन के सामरिक और आर्थिक विस्तार के प्रति भारत की चिंता से फ्रांस इसी कारण सहमत है. पर, अंतरराष्ट्रीय संबंधों का समीकरण जटिल और बहुपक्षीय होता है. मैक्रों चीन के साथ भी सहयोग के आकांक्षी हैं. अमेरिकी संरक्षणवाद बढ़ने पर यूरोप और चीन के संबंध गहरे होंगे. तनाव के बावजूद भारत और चीन के रिश्तों का एक पहलू वाणिज्यिक निकटता भी है.
जैतापुर में तकनीक- हस्तांतरण की गति धीमी है. जलवायु परिवर्तन के लिए समुचित धन जुटाने की चुनौती भी है. हालांकि राष्ट्रपति मैक्रों के दौरे ने परस्पर सहयोग को नया आयाम दिया है, लेकिन दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय सहयोग का भविष्य इन वास्तविकताओं को संज्ञान में लेकर ही बेहतर हो सकता है.

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