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सशक्त लड़कियां समाज की नींव

शफक महजबीन टिप्पणीकार हमारे समाजों में लड़का-लड़की को एक समान न समझा जाना आम बात है. हर समाज में लड़कियां अपने हक के लिए संघर्ष करती रही हैं, पर बहुत सी लड़कियों ने मिसाल भी कायम की है और यह मनवा लिया है कि वे किसी भी मामले में लड़कों से कम नहीं हैं. ऐसी […]

शफक महजबीन

टिप्पणीकार

हमारे समाजों में लड़का-लड़की को एक समान न समझा जाना आम बात है. हर समाज में लड़कियां अपने हक के लिए संघर्ष करती रही हैं, पर बहुत सी लड़कियों ने मिसाल भी कायम की है और यह मनवा लिया है कि वे किसी भी मामले में लड़कों से कम नहीं हैं.

ऐसी मिसालों को हर आम लड़की तक पहुंचाने, उन्हें जागरूक और सशक्त बनाने के उद्देश्य से 24 जनवरी को बालिका दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन को राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाने की घोषणा इसलिए की गयी, क्योंकि इसी दिन भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में इंदिरा गांधी ने कुर्सी संभाली थी.

विभिन्न समाजों में शुरू से ही लड़का-लड़की में भेदभाव रहा है. उन्हें अगर घर से बाहर जाना है, तो पूरी डिटेल बतानी पड़ती है कि वे कहां और क्यों जा रही हैं. कई घरों में तो लड़कियों को पोषण से भरपूर खाना भी नहीं मिलता. मां-बाप सोचते हैं कि लड़कियां तो घर में ही रहती हैं, इसलिए वे कुछ भी खाकर रह सकती हैं. लोगों को औलाद के रूप में लड़का ही चाहिए, क्योंकि मानसिकता है कि वह बुढ़ापे का सहारा बनता है.

इन्हें यह समझना चाहिए कि कोई पैदा होते ही किसी का सहारा नहीं हो जाता. अगर लड़कियों की भी परवरिश लड़कों के समान ही हो, तो वे भी बुढ़ापे का सहारा बन जायेंगी.

शिक्षा के बावजूद लड़कियां आज भी सामाजिक कुरीतियों- जैसे बाल विवाह, पर्दा प्रथा, दहेज प्रथा की शिकार हैं. अक्सर बेटी की शादी के लिए पिता को कर्ज लेना पड़ता है. कर्ज के डर से लोग लड़कियों को दुनिया में लाना ही नहीं चाहते और इसलिए भ्रूण हत्याएं होती हैं.

लड़कियों की मृत्युदर में कमी, अच्छी शिक्षा और बेहतर माहौल देने के उद्देश्य से और इनके सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने कई योजनाएं चलायी हैं, जिनका गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों को लाभ मिलता है.

जैसे- भाग्यलक्ष्मी योजना, सुकन्या समृद्धि योजना, धनलक्ष्मी योजना, कन्या विवाह योजना, लाडली बेटी योजना, लाडली लक्ष्मी योजना, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना आदि. इन योजनाओं के चलते लड़कियां आर्थिक, शारीरिक और मानसिक रूप से आत्मनिर्भर बन सकेंगी और उनमें अपने जीवन में सही फैसले लेने की क्षमता विकसित होगी, जिससे आनेवाले समय में वे एक अच्छे समाज की नींव रख सकेंगी.

सिर्फ एक दिन बालिका दिवस मनाना ही नहीं, लड़की के मां-बाप को जागरूक होना भी जरूरी है, ताकि वे अपनी बेटियों को ऐसी शिक्षा दे सकें, जिससे वे आत्मनिर्भर हो सकें और अपने मां-बाप का सहारा भी बन सकें.बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का उद्देश्य बेटियों की मृत्युदर में कमी कर उन्हें अच्छी शिक्षा देना है.

लेकिन, क्या केवल गर्भ में ही बचा लेनेभर से बेटियां सुरक्षित हो पायेंगी? बीते दिनों हरियाणा के अलग-अलग हिस्सों में रेप की दर्दनाक घटनाओं ने हमें सच से रूबरू करा दिया है कि बेटियों की सुरक्षा का हम सिर्फ दावा ही करते हैं, उसे गंभीरता से नहीं लेते.

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