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व्यवहार उर्फ कैश

आलोक पुराणिक व्यंग्यकार शादियों का सीजन है. हम भारतीयों के फर्जी होने के कई प्रमाण मिलने का सीजन भी. सरासर कैश लिफाफे में धरकर दे रहे हैं और कह रहे हैं- शगुन दे रहे हैं, व्यवहार दे रहे हैं. व्यवहार यानी कैश देना, यही बचपन से दिमाग में घुसता जाता है. मैंने कई सरकारी दफ्तरों […]

आलोक पुराणिक
व्यंग्यकार
शादियों का सीजन है. हम भारतीयों के फर्जी होने के कई प्रमाण मिलने का सीजन भी. सरासर कैश लिफाफे में धरकर दे रहे हैं और कह रहे हैं- शगुन दे रहे हैं, व्यवहार दे रहे हैं.
व्यवहार यानी कैश देना, यही बचपन से दिमाग में घुसता जाता है. मैंने कई सरकारी दफ्तरों में रिश्वत दी है, जब मेरी फर्जी आत्मा ने सवाल पूछा है कि ये क्या कर रहे हो. तब मेरी शातिर नैतिकता ने जवाब दिया है- व्यवहार किया है, शगुन टाइप कुछ. सरकारी दफ्तर से कोई लाइसेंस विदा करा के घर चले तो शगुन दिया बस. दलाल ने कुछ रकम ली, मैरिज डॉट कॉम वाले लेते हैं.
फिर लाइसेंस पर हस्ताक्षर करनेवाले अफसर को भी कन्या का पिता समझ के आश्वस्त करना जरूरी था, उसे भी कैश देकर आश्वस्त किया कि लाइसेंस की सही देखभाल की जायेगी और अगर किसी कमी-बेशी पर इसकी फिर धर-पकड़ हुई, तो फिर आगे उचित व्यवहार कर देंगे.
इस तरह से शादी का शगुन व्यवहार देख के व्यवहार की सही समझ विकसित हो जाती है.
रिश्ते मतलब लेन-देन, तो साफ क्यों न कहते कि लेन-देन करना है. पांच साल पहले वो दे गये थे हमारे यहां शादी में तो निबटाना है, वह लेन-देन. कई को तो मैंने ऐसे कलपते देखे हैं कि बताओ, हमने तो उनके यहां 1000 दिये थे, मगर वे मात्र 250 देकर चले गये.
लेन-देन के ऐसे एक व्यवहारी को मैंने समझाया कि भाई तू ने परिवार नियोजन न अपनाया तेरे यहां चार शादी होनी हैं, वह 250 एक में देगा तो चार में 1000 आ जायेंगे. वह सिर्फ एक बच्चे का बाप है, तो तेरे एक बार में 1000 गये. परिवार नियोजन अपनाने से सारा व्यवहार उर्फ लेन-देन एक ही बार में आ जाता है. यह बात परिवार नियोजन के इश्तिहारों में रेखांकित नहीं की जाती.
इधर मैं शादियों में जाता हूं, तो बुलानेवाला हल्ला सा काटे रहता है- 1500 प्रति प्लेट पड़ा है यहां खाना. मैं तो समझदार हूं, समझ जाता हूं दो मेंबर खाते हैं मेरे परिवार के, तो 3100 दे देता हूं. पर अब मैं ऐसे पर प्लेट रेट बतानेवाले से आग्रह कर देता हूं- भाई बड़ा सा बैनर टांग दे- पर प्लेट 1500, व्यवहार में ध्यान रखें. पता होना चाहिए बंदा 500 पर प्लेट समझ रहा हो और 1000 का व्यवहार टिका आये. मामला खालिस लेन-देन का हो, तो पारदर्शिता होनी चाहिए.
व्यवहार मतलब लेन-देन, एक विवाह में मैंने प्रस्ताव किया कि लोगों को सही व्यवहार देने के लिए उचित मार्गदर्शन आवश्यक है.जैसे अगर मैंने किसी के यहां दस साल पहले 1000 का व्यवहार किया है, तो अब तक उस रकम की वैल्यू कितनी बढ़ी मानी जाये, इस पर सम्यक मार्गदर्शन जरूरी है. शादी स्थल पर इस आशय के बैनर टांग दिये जायें कि 2007 के 100 रुपये की आज की वैल्यू यह है. इस मुल्क में वित्तीय साक्षरता की भारी कमी है. इस चक्कर में व्यवहार ठीक-ठाक नहीं हो पाता है. आप सहमत हैं न?

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