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बैंककर्मियों की क्षमता

बैंकिंग तंत्र अर्थव्यवस्था की जीवन-रेखा है. आर्थिक-वृद्धि को गति देने और उसकी रफ्तार बनाये रखने में बैंक उत्प्रेरक काम करते हैं और वैश्वीकरण के दौर में वैश्विक पूंजी-बाजार के उतार-चढ़ाव को उनकी भूमिका भारत जैसे विकासशील देशों के लिए पहले की तुलना में आज कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो उठी है. अफसोस की बात यह है […]

बैंकिंग तंत्र अर्थव्यवस्था की जीवन-रेखा है. आर्थिक-वृद्धि को गति देने और उसकी रफ्तार बनाये रखने में बैंक उत्प्रेरक काम करते हैं और वैश्वीकरण के दौर में वैश्विक पूंजी-बाजार के उतार-चढ़ाव को उनकी भूमिका भारत जैसे विकासशील देशों के लिए पहले की तुलना में आज कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो उठी है.
अफसोस की बात यह है कि आज जहां एक तरफ हर नागरिक को बैंकिंग तंत्र के दायरे में लाने पर जोर है, वहीं दूसरी तरफ बैंकिंग क्षेत्र पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है. सार्वजनिक क्षेत्र के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की मुखिया अरुंधति भट्टाचार्य ने इस तरफ नये सिरे से संकेत किया है.
उनका कहना है कि तेज विस्तार के बीच बैंकिंग सेक्टर कई तरह की चुनौतियों का सामना कर रहा है. बैंककर्मी नयी जिम्मेदारियों का निर्वाह करने के मामले में कुशल तथा बैंकिंग से जुड़े जोखिम के तत्व से समुचित रूप से आगाह नहीं हैं. जाहिर है, ग्राहकों को किसी बैंकिंग सेवा से जुड़े जोखिम के बारे में ठीक-ठीक बता पाना उनके लिए संभव नहीं है.
यह स्थिति बैंक और ग्राहक के बीच के रिश्ते से जुड़ी नैतिकता की एक तरह से अनदेखी है. चिंता की बात यह भी है कि बैकिंग नियमों में बदलाव तेज गति से हो रहे हैं, लेकिन इनका अपेक्षित अनुपालन नहीं हो पा रहा है. इसका कारण यह है कि नये नियमों से जुड़ी तकनीकी जटिलता के बरक्स जिस प्रशिक्षण और तैयारी की जरूरत है, वह बैंककर्मियों को ठीक से उपलब्ध नहीं है. तीसरी चुनौती प्रौद्योगिकी के विस्तार से जुड़ी है. फिलहाल तमाम बैंक इंटरनेट की आभासी दुनिया से जुड़ गये हैं और वित्तीय लेन-देन का डिजिटलीकरण हो चुका है.
ऐसे में डेटा का विशाल भंडार हर मिनट तैयार हो रहा है. इससे लेन-देन से संबंधित गोपनीयता और पारदर्शिता का सवाल जुड़ा है, पर फिलहाल हमारा बैंकिंग सेक्टर इस भंडार की सुरक्षा या फिर बैंकिंग के नयी सेवाएं तैयार करने के लिहाज से विश्लेषण करने में सक्षम नहीं हैं. आनेवाले वक्त में बैकिंग के दायरे का और विस्तार होना है, क्योंकि देश में प्रति एक लाख आबादी पर व्यावसायिक बैंकों की संख्या 9.7 है. इसमें भी गांव और शहर का अंतर साफ दिखता है.
ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में प्रति लाख आबादी पर व्यावसायिक बैंक की संख्या 7.8 है, जबकि शहरी और महानगरीय इलाकों में यह आंकड़ा लगभग 19 है. इस विस्तार को ध्यान में रखते हुए बैंकों को पेशेवर चुनौतियों से निपटने के लिए अपने को जल्दी से जल्दी से तैयार करना होगा.

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