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पाकिस्तान और आतंकवाद

पाकिस्तानी जमीन पर सक्रिय हक्कानी नेटवर्क, लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद समेत तमाम आतंकी संगठन पड़ोसी देशों के लिए कितनी बड़ी चिंता का कारण हैं, अमेरिका समेत पूरी दुनिया इससे बखूबी वाकिफ है. लेकिन अमेरिका द्वारा आधिकारिक रूप से पाकिस्तान को आतंकियों के सुरक्षित पनाहगाह के रूप में स्वीकार करना एक संतोषजनक घटना है. कांग्रेस में रखी […]

पाकिस्तानी जमीन पर सक्रिय हक्कानी नेटवर्क, लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद समेत तमाम आतंकी संगठन पड़ोसी देशों के लिए कितनी बड़ी चिंता का कारण हैं, अमेरिका समेत पूरी दुनिया इससे बखूबी वाकिफ है.
लेकिन अमेरिका द्वारा आधिकारिक रूप से पाकिस्तान को आतंकियों के सुरक्षित पनाहगाह के रूप में स्वीकार करना एक संतोषजनक घटना है. कांग्रेस में रखी गयी सालाना रिपोर्ट में अमेरिकी विदेश विभाग ने माना है कि पाकिस्तान में सक्रिय तमाम खूंखार आतंकी संगठन खुलेआम रैलियां, चंदा वसूली और आतंकियों को प्रशिक्षित करते हैं. अमेरिकी रक्षा सचिव जेम्स मैटिस भी स्थानीय स्तर की जटिलताओं और पाकिस्तान के असहयोगात्मक रवैये को अफगानिस्तान में अशांति का बड़ा कारण मान चुके हैं.
ट्रंप प्रशासन पाकिस्तान पर दबाव बनाने और रक्षा सहयोग में कटौती करने का पक्षधर है और इसके लिए तीन संशोधन विधेयक भी पेश किये जा चुके हैं. सीमा पार आतंकवाद और घुसपैठ को मिल रहे पाकिस्तानी राजनीतिक संरक्षण के मुद्दे को भारत तमाम अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाता रहा है, लेकिन अमेरिका और कुछ अन्य ताकतवर देशों के दोहरे मापदंड आतंकवाद के स्थायी समाधान में सबसे बड़ी बाधा हैं. वर्ष 1996 से भारत आतंकवाद के मुद्दे पर व्यापक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की मांग करता आ रहा है.
इस मांग पर मुंह फेर लेनेवालों में अमेरिका सबसे आगे रहा है. इसलामी देशों के संगठन ओआइसी और लातिन अमेरिकी देश भी इसके पक्ष में खड़े नहीं हुए. अमेरिका शांति के समय में सैन्यबलों की कार्रवाई को मसौदे से बाहर रखना चाहता है, तो ओआइसी देश इजरायल-फिलिस्तीन के मुद्दे पर छूट लेना चाहते हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-20 सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय असहयोग पर निराशा जतायी और परस्पर सहयोग की अपील की. प्रधानमंत्री का कहना सही है कि आतंकी संगठनों के नाम अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन उनकी विचारधारा एक है. आतंकियों को विभिन्न देशों द्वारा मिल रहे धन और हथियारों का मुद्दा उठा कर पाकिस्तान और उसके समर्थक देशों की भूमिका पर बार-बार सवाल खड़े किये हैं. आज विश्व का शायद ही कोई ऐसा हिस्सा है जो आतंक के भयावह साये से अछूता है.
इस स्थिति में उन कुछ देशों के प्रति नरमी का कोई तुक नहीं है जो आतंकी गिरोहों का इस्तेमाल अपने राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए करते हैं. ऐसे में जरूरी है कि वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए तमाम देशों को एकजुट होकर आतंकवाद के सभी रूपों की भर्त्सना करनी चाहिए और साझा प्रयासों की पहल करनी चाहिए.

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