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क्या ”आर्थिक क्रांति” हो गयी है?
रविभूषण वरिष्ठ साहित्यकार ravibhushan1408@gmail.com क्या सचमुच 1 जुलाई, 2017 से ‘एक नये भारत का निर्माण’ हो चुका है- ‘आर्थिक भारत का निर्माण’? निश्चित रूप से जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) आजादी के बाद देश की कर-व्यवस्था में एक बड़ा बदलाव है, क्योंकि 17 कर और 26 उपकर समाप्त हो गये हैं, 36 राज्य और केंद्रशासित […]
रविभूषण
वरिष्ठ साहित्यकार
ravibhushan1408@gmail.com
क्या सचमुच 1 जुलाई, 2017 से ‘एक नये भारत का निर्माण’ हो चुका है- ‘आर्थिक भारत का निर्माण’? निश्चित रूप से जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) आजादी के बाद देश की कर-व्यवस्था में एक बड़ा बदलाव है, क्योंकि 17 कर और 26 उपकर समाप्त हो गये हैं, 36 राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों वाले इस बड़े देश में अब एक कर और एक बाजार है.
पर, जीएसटी लागू किये जाने को ‘आर्थिक आजादी’ कहना गलत है. ‘गंगानगर से इटानगर’ और ‘लेह से लक्षद्वीप’ तक अब एक देश में एक टैक्स लागू होगा, पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इसे ‘आर्थिक एकीकरण’ को पटेल के राष्ट्रीय एकीकरण (500 रियायतों को देश में मिलाना) से जोड़ने में मात्र ऊपरी साम्य है. देश के एकीकरण के लिए जो कार्य सरदार पटेल ने किया, क्या वैसा कार्य नरेंद्र मोदी ने किया है? यह कहना भी गलत होगा कि 14 अगस्त की अर्द्धरात्रि में जिस प्रकार सेंट्रल हॉल में देश की आजादी की घोषणा की गयी थी, उसी प्रकार 30 जून, 2017 की मध्यरात्रि में ‘आर्थिक आजादी’ की घोषणा की गयी.
तिथि, स्थान और समय के चयन में प्रधानमंत्री मोदी का कोई उदाहरण नहीं है. 1947, 1972, 1997 और 2017 में गुणात्मक अंतर है. इन चारों वर्षों में से आरंभिक तीन वर्ष आजादी की घोषणा, उसकी 25वीं और 50वीं वर्षगांठ से जुड़े हैं. सेंट्रल हाॅल में मध्य रात्रि का 2017 का आयोजन उन वर्षों की तुलना नहीं कर सकता. सेंट्रल हॉल में ही संविधान को स्वीकार किया गया था. आजादी, संविधान और जीएसटी में कोई समानता नहीं है.
इसी प्रकार जीएसटी की 18 बैठकों की तुलना गीता के 18 अध्यायों से करना मात्र संख्या प्रेम है. ‘डिजिटल इंडिया’ में अंक और संख्या ही सब कुछ है. जीवन न तो गणित है, न व्यापार. संख्या प्रेम देश प्रेम नहीं है. देश केवल प्रबंधन कौशल से नहीं चलता है. राष्ट्रीय एकता और कर एकता में भिन्नता है.
पहली बार 1954 में फ्रांस में यह कर प्रणाली (जीएसटी) लागू की गयी. भारत 161वां देश है, जहां जीएसटी लागू किया गया है. इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने गीता, चाणक्य, पटेल, आइंसटाइन सब को याद किया. जीएसटी के द्वारा हुए ‘आर्थिक एकीकरण’ का कम जयगान नहीं हुआ है.
आइंसटाइन ने कर को दुनिया की सबसे मुश्किल चीज कहा था, जिसे हल कर दिया गया. व्यापारियों का एक बड़ा हिस्सा भयभीत है. छोटे कारोबारियों के अनुसार यह कर-व्यवस्था एक ‘जटिल कर-व्यवस्था’ है. 30 जून को दिल्ली सहित देश के विविध हिस्सों में कारोबारियों और व्यापारियों द्वारा की गयी हड़ताल यह बताती है कि वे आशंका ग्रस्त हैं. जीएसटी के ‘कठिन प्रावधानों और ऊंची दरों’ के विरोध में ये प्रदर्शन हुए हैं. भाजपा शासित राज्यों में भी जीएसटी के विरोध में प्रदर्शन हुए. दूकानें बंद रही हैं. 1 जुलाई को जीएसटी दिवस माना जा रहा है. 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी के मात्र छह महीने बाद 30 जून, 2017 की मध्यरात्रि में जीएसटी लागू किये जाने को जितना प्रचारित-विज्ञापित किया जा रहा है, उसके फायदे और नुकसान की सही समीक्षा आनेवाले दिनों में होगी.
रोजगार सबसे ज्यादा असंगठित क्षेत्र में है और असंगठित क्षेत्र में कहीं अधिक परेशानी होगी. जीएसटी से क्या नये रोजगारों का सृजन होगा? संगठित क्षेत्र कहीं अधिक लाभान्वित होंगे और असंगठित क्षेत्र को परेशानी होगी. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने नये शब्द-निर्माण के तहत इसे ‘गुड’ और ‘सिंपल’ कहा है. देश भर में लागू की गयी एक कर प्रणाली सामान्य जनता और छोटे व्यापारियों के लिए कितना फायदेमंद है, फिलहाल नहीं कहा जा सकता है.
अजमेर के ब्यावर में रहनेवाले सुधीर हालाखंडी की जीएसटी पर हिंदी में लिखी गयी किताब यू ट्यूब पर सबने न देखी है, न पढ़ी है, पर सब यह जान रहे हैं कि जरूरी सामान छोड़ कर सारी चीजें टैक्स के दायरे में आ गयी हैं. दुनिया के किसी भी देश में भारत की तरह न तो जीएसटी के कई टैक्स हैं, और 28 प्रतिशत टैक्स तो कहीं भी नहीं है.
सोना पर 3 प्रतिशत और फोटाेकॉपी पर 28 प्रतिशत टैक्स क्यों है? मोबाइल फोन, कैलकुलेटर, कैमरा, स्पीकर और ट्रैक्टर पर सस्ता कर है और छाता, सिलाई मशीन, सीमेंट, प्लाइबोर्ड, टाइल्स, पंखा, बिजली का सामान, प्रिंटर, फोन बिल और बीमा प्रीमियम अब महंगा है.
घी और चीज सब किसान नहीं खाते. इसका महंगा होना समझा जा सकता है, पर कीटनाशक खाद क्यों महंगा हुआ? बड़ा सवाल तो यह है कि पेट्रोलियम और अल्कोहल को जीएसटी से बाहर नहीं रखा गया है. भाजपा ने पहले जीएसटी का विरोध किया था. अब वह जश्न मना रही है. नोटबंदी के बाद यह प्रधानमंत्री मोदी का दूसरा सबसे बड़ा ‘मास्टर स्ट्रोक’ है.
जीएसटी लागू होने के बाद भारत एक बाजार बन गया है. अब भारत में कई बाजार नहीं होंगे. अब भारत खुद बाजार है. एक देश, एक बाजार.
अब व्यापारियों को हर महीने तीन रिटर्न भरने होंगे. वर्ष भर में 37 रिटर्न भरने होंगे. जीएसटी की धारा 69 में सजा का भी प्रावधान है. फिलहाल एक देश में एक कर है. साथ ही एक देश में कई डर भी है.
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