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एक और आधी रात !
आधी रात को जश्न मनाया जाये, तो उसकी बात ही कुछ अलग होती है. देश की कुछ आबादी ही अब आजादी की ‘आधी रात’ की चश्मदीद है, जबकि इमरजेंसी वाली ‘आधी रात’ अब भी बहुत लोगों की जुबान पर है. नोटबंदी वाली ‘आधी रात’ का दर्द तो जेहन में आज भी ताजा है. अब एक […]
आधी रात को जश्न मनाया जाये, तो उसकी बात ही कुछ अलग होती है. देश की कुछ आबादी ही अब आजादी की ‘आधी रात’ की चश्मदीद है, जबकि इमरजेंसी वाली ‘आधी रात’ अब भी बहुत लोगों की जुबान पर है. नोटबंदी वाली ‘आधी रात’ का दर्द तो जेहन में आज भी ताजा है.
अब एक और ‘आधी रात’ का जश्न. ‘जीएसटी’ लागू हो गया. वैसे भी कागजों पर लिखे बिल या डिब्बे पर छपे टैक्स न हम पहले जानते थे, न अब पता है. यह हिंदुस्तान है, यहां कोई भी टैक्स हो, हड़बड़ाहट कहीं नहीं है. निश्चित रूप से देश की बड़ी आबादी लिखे हुए ‘नियम और शर्ते’ न पढ़ना जानती है, न ही पढ़ना चाहती है. ऐसे में जीएसटी आ गया तो कौन सा तूफान खड़ा हो जायेगा?
एमके मिश्रा, रातू, रांची,
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