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सुरक्षा का सवाल

सरकारी चिकित्सा-तंत्र में कार्यरत डाॅक्टर विभागीय अधिकारियों और प्रशासन के पास अपनी शिकायत या फरियाद लेकर जा सकते हैं. वेतन, काम के घंटे या अन्य शिकायतों को लेकर सरकारी मेडिकल कॉलेजों में होनेवाली डॉक्टरों की हड़ताल की खबरें अक्सर आती हैं. लेकिन, जो चिकित्साकर्मी निजी क्षेत्र में हैं, वे किसी मरीज की मौत या उसके […]

सरकारी चिकित्सा-तंत्र में कार्यरत डाॅक्टर विभागीय अधिकारियों और प्रशासन के पास अपनी शिकायत या फरियाद लेकर जा सकते हैं. वेतन, काम के घंटे या अन्य शिकायतों को लेकर सरकारी मेडिकल कॉलेजों में होनेवाली डॉक्टरों की हड़ताल की खबरें अक्सर आती हैं.
लेकिन, जो चिकित्साकर्मी निजी क्षेत्र में हैं, वे किसी मरीज की मौत या उसके उपचार में की गयी कथित लापरवाही के कारण गुस्सायी भीड़ के सामने उतने ही असहाय होते हैं, जितना कि कोई आम नागरिक. ये चिकित्सक अपनी सुरक्षा की फरियाद लेकर कहां जायें! सभ्य समाज यानी नियम-कायदों के आधार पर चलनेवाले लोकतांत्रिक समाज के बाशिंदे के तौर पर कोई भी पेशेवर अपने पेशे के लिए जरूरी स्वायत्तता और जीवन-जीविका की सुरक्षा चाहे, तो इसका समर्थन किया जाना चाहिए. ऐसी मांग को पूरी हमदर्दी से सुना जाना चाहिए. यही उम्मीद रही होगी जो मरीज के परिजन के गुस्से का शिकार बनने की घटनाओं से तंग आकर डाॅक्टरों ने अपनी एकता का प्रदर्शन करने का निर्णय लिया है.
देश के विभिन्न हिस्सों से आये हजारों डाॅक्टरों ने अपनी हिफाजत और काम से जुड़ी स्वायत्तता की मांग उठाते हुए मंगलवार को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के बैनर तले दिल्ली में प्रदर्शन किया और सख्त कानूनी प्रावधान की मांग की. बढ़ती आबादी के साथ चिकित्सा की जरूरतों में भारी इजाफा हुआ है और इस मांग की पूर्ति के लिए निजी क्षेत्र में चिकित्सा की दुकानदारी भी बेहिसाब बढ़ी है. निजी क्षेत्र के नियमन के उपाय बेशक किये गये हैं, लेकिन इन नियमों के उल्लंघन की कहानियां भी किसी से अनजानी नहीं हैं.
एक सेवा के रूप में चिकित्सा की गुणवत्ता, सेवा दे रहे विशेषज्ञ के तौर पर चिकित्सक की निर्णय लेने की स्वायत्तता, साथ ही उससे जुड़ी मरीज के प्रति जिम्मेवारी और एक मरीज को चिकित्सा-सेवा के ग्राहक के रूप में हासिल अधिकारों का दायरा नियमों से बांधा गया है. लेकिन, इन नियमों को लेकर ज्यादातर लोगों में जागरूकता की कमी है. एक मुश्किल यह भी है कि लोग चिकित्सक और चिकित्सा के पेशे को बाकी सेवा-सामान की बराबरी में नहीं रखते, उन्हें अक्सर चिकित्सक से करिश्मे की उम्मीद होती है.
मरीज या मरीज का तीमारदार होने के नाते उन्हें इसका पक्का भरोसा होता है कि चिकित्सक और उसके सहयोगी अतिरिक्त सहानुभूति का बरताव करेंगे. परिजनों के आक्रोश के पीछे यही दो मुख्य वजहें हैं. निजी क्षेत्र की चिकित्सा-सेवा का पर्याप्त नियमन और निगरानी और एक सेवा-प्रदाता के रूप में डाॅक्टर तथा ग्राहक के रूप में गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा के मरीज के अधिकारों के प्रति व्यापक जागरूकता समय की मांग है. इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए.

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