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सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) के ताजा आंकड़ों को देख अर्थशास्त्री हैरत में हैं और उनकी हैरत वाजिब भी है. बीते वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में वृद्धि दर सात फीसदी थी. फिर अगले तीन महीनों में ऐसा क्या हुआ कि यह करीब एक प्रतिशत की तेज गिरावट के साथ 6.1 फीसदी पर पहुंच गयी? हैरत […]

सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) के ताजा आंकड़ों को देख अर्थशास्त्री हैरत में हैं और उनकी हैरत वाजिब भी है. बीते वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में वृद्धि दर सात फीसदी थी. फिर अगले तीन महीनों में ऐसा क्या हुआ कि यह करीब एक प्रतिशत की तेज गिरावट के साथ 6.1 फीसदी पर पहुंच गयी?

हैरत का रंग और भी गाढ़ा नजर आता है, जब यह ध्यान आता है कि ये आंकड़े मौजूदा सरकार के तीन साल पूरे करने के मौके पर आये हैं. फिलहाल सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में यह तथ्य गिना रही है कि 2016-17 में जीडीपी की वृद्धि दर सात फीसदी से ज्यादा रहने के अनुमान हैं. अगर याद करें कि 2015-16 में जीडीपी की वृद्धि दर 7.93 प्रतिशत रही थी, तो 2016-17 की आखिरी तिमाही में जीडीपी की बढ़वार की दर पेश की जा रही उपलब्धियों की तस्वीर के विपरीत पड़ती है. नोटबंदी के असर से तीसरी तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर सात फीसदी रही थी, तो वित्त मंत्री ने कहा था कि देश नोटबंदी के असर से उबर गया है.

लेकिन, चौथी तिमाही के आंकड़े वित्त मंत्री की उम्मीद पर सवाल करते प्रतीत होते हैं. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत कई जानकारों ने कहा भी था कि अर्थव्यवस्था पर नोटबंदी का नकारात्मक असर पड़ेगा और आर्थिक वृद्धि दर में एक से दो प्रतिशत की गिरावट आयेगी.

वर्ष 2016 के अक्तूबर-दिसंबर (तीसरी तिमाही) यानी नोटबंदी के सर्वाधिक असर वाले दिनों में जीडीपी की दर संभली हुई नजर आने की बड़ी वजह एक तो यह थी कि केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने वर्ष 2015-16 की तीसरी तिमाही के अनुमानित आंकड़ों को नये तथ्यों के आलोक में घटाया था और उसकी तुलना में वर्ष 2016-17 की तीसरी तिमाही का आंकड़ा बढ़ा हुआ नजर आया. दूसरे, अक्तूबर-दिसंबर के महीने भारत में त्यौहारी खरीद के महीने होते हैं और कारोबार सामान्य तौर पर बढ़ा हुआ रहता है. अर्थशास्त्रियों के मुताबिक नोटबंदी का वास्तविक असर चौथी तिमाही में दिखा है और आगे के लिए रुझान अच्छे नहीं हैं.

प्रतिशत पैमाने पर देखें, तो मार्च की तुलना में कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, सीमेंट और इस्पात का उत्पादन अप्रैल माह में घटा है. औद्योगिक विकास-दर के घटने का असर सीधे रोजगार सृजन पर नजर आ रहा है और वित्त मंत्री के मुताबिक विकसित देशों की संरक्षणवादी नीतियों के कारण निर्यात के मोर्चे पर भी स्थिति चुनौतीपूर्ण बन रही है. उम्मीद है कि सरकार नीतिगत समीक्षा करते हुए जीडीपी की वांछित दर पाने के लिए कारगर उपाय करेगी, ताकि सबसे तेज गति से बढ़नेवाली अर्थव्यवस्था के रूप में भारत की साख बनी रहे.

Prabhat Khabar Digital Desk
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