सुनील सम्राट
बनमनखी : कोसी और सीमांचल में भगवान नरसिंह के अवतार के लिए मशहूर बनमनखी अनुमंडल के धरहरा गांव का नाम न तो भारतीय पुरातत्व विभाग के नक्शे में है और न ही पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित होने वाले इलाकों की सूची में है. दिल्ली स्थित भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ऐसे किसी भी स्थल की जानकारी और विकास की योजना से इन्कार करता है. विभाग के अनुसार आजतक विभाग को भगवान नरसिंह के अवतार स्थली के होने की सूचना नहीं मिली है और न ही विभाग के पास इसके सर्वे से जुड़ा कोई आदेश प्राप्त हुआ है.
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के इस खुलासे ने धरहरा और पूर्णिया जिले में पर्यटन के विकास की आस लगाये लोगों के सपनों पर पानी फेर दिया है.
दरअसल, भारतीय पुरातत्व विभाग ने बनमनखी के सिकलीगढ़ धरहरा स्थित नरसिंह अवतार स्थली के विकास और इसकी खुदाई से जुड़े एक आरटीआइ का जवाब देते हुए कहा है कि उसके पास बनमनखी में किसी पुरातात्विक अवशेष की जानकारी नहीं है. विभाग ने इसके साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया है कि निकट भविष्य में धरहरा में पुरातत्व विभाग किसी प्रकार की खुदाई करने नहीं जा रहा है. विभाग से कुमार उत्सव विश्वेंद्र ने नरसिंह अवतार स्थली के विकास की योजना को लेकर जानकारी मांगा था. इसका जवाब देते हुए विभाग के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी डीएन सिन्हा ने जवाब में उक्त बातों का खुलासा किया.
1411 इंज लंबा है प्रह्लाद खंभ : जिला मुख्यालय से करीब 32 किलोमीटर की दूरी पर एनएच 107 के किनारे बनमनखी अनुमंडल के धरहरा स्थित सिकलीगढ़ में नरसिंह अवतार स्थल मौजूद है. यहां पर एक निश्चित कोण पर झुका हुआ खंभा है. स्तंभ का अधिकांश भाग जमीन के अंदर घुसा हुआ है और इसकी लंबाई तकरीबन 1411 इंच है. मिली जानकारी अनुसार प्रह्लाद स्तंभ के पास की गयी खुदाई में पुरातात्विक महत्व के सिक्के प्राप्त हुए थे. इसके बाद से ही स्थानीय प्रशासन ने इसके आस-पास खुदाई पर रोक लगा रखी है.
हालांकि उसके बाद से यहां भव्य मंदिर का निर्माण हो चुका है.
ब्रिटेन के अखबार में भी है स्तंभ का जिक्र : धरहरा के नरसिंह अवतार स्थली की जानकारी भले ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के पास न हो लेकिन इसका उल्लेख ब्रिटेन से प्रकाशित होने वाले क्विक पेजेज द फ्रेंडशिप इन इनसायक्लोपीडिया में भी इस बाबत खबर प्रकाशित हो चुकी है. जानकारों की मानें तो अंग्रेजों ने अपने समय में इस खंभे को हाथियों से खिंचवाने की कोशिश की थी. परंतु यह खंभा जमीन से नहीं निकल पाया और एक निश्चित कोण पर झुक गया. ऐसे में लोगों को हैरत इस बात से हो रही है कि जब अंग्रेजी अखबार में इसका जिक्र है तो भारत की केंद्रीय एजेंसी को इसकी जानकारी अबतक कैसे नहीं मिली है.
यहीं से शुरू हुआ था होलिका दहन
ऐसी मान्यता है कि राजा हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र विष्णुभक्त प्रह्लाद को मारने का कई बार प्रयास किया. राजा की बहन होलिका को इस काम के लिए लगाया गया, जिसे आग में नहीं जलने का वरदान प्राप्त था. होलिका ने भक्त प्रह्लाद को अपनी गोदी में बैठा कर अग्नि में प्रवेश किया जिसमें वह धू-धू कर जल गयी और भक्त प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हो सका. कहते हैं कि इसके पश्चात भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया और खंभा फाड़कर प्रकट हुए और हिरण्यकशिपु का वध किया था. उसके बाद से ही देश में होलिका दहन की परंपरा आरंभ हुई थी. यहां प्रतिवर्ष सरकारी स्तर पर धूमधाम से होलिका दहन कार्यक्रम का आयोजन होता रहा है.
