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लालू का बिहार की सियासत में नया गेम प्लॉन, राज्यसभा चुनाव में चला MB कार्ड, जानें क्या होगा असर

पटना : कहते हैं कि बिहार के सियासत को साधने के लिए हमेशा राजनेता जातिगत समीकरण का हथियार और जोड़ घटाव अपने पास रखकर चलते हैं. इस मामले में राजद सुप्रीमो और बिहार के सबसे बड़े सियासी परिवार के मुखिया लालू यादव सबसे आगे हैं. चारा घोटाला मामले में रांची के होटवार जेल में बंद […]

पटना : कहते हैं कि बिहार के सियासत को साधने के लिए हमेशा राजनेता जातिगत समीकरण का हथियार और जोड़ घटाव अपने पास रखकर चलते हैं. इस मामले में राजद सुप्रीमो और बिहार के सबसे बड़े सियासी परिवार के मुखिया लालू यादव सबसे आगे हैं. चारा घोटाला मामले में रांची के होटवार जेल में बंद लालू यादव ने अपनी पार्टी की ओर से राज्यसभा में प्रतिनिधित्व करने वाले उम्मीदवारों का जब चयन किया, तो उन्होंने ऊपर लिखी हुई बातों का ध्यान रखा है. लालू जानते हैं कि बिहार की राजनीति में उन्हें मुस्लिम और यादव समीकरण की सियासत करने वाला सबसे बड़ा नेता माना जाता है, लेकिन बदलते वक्त की राजनीति में उन्हें यह भी पता है कि अब बिना सबको साथ लेकर चले, काम बनने वाला नहीं है. राज्यसभा में भेजने के लिए उन्होंने जिन दो उम्मीदवारों का चयन किया है. उसमें एक मुस्लिम तबके से आते हैं और एक ब्राह्मण समाज से. राजनीतिक प्रेक्षकों की मानें, तो लालू ने शरद यादव तक को भी दरकिनार करते हुए पार्टी के ऊर्जावान नेता और राष्ट्रीय प्रवक्ता मनोज झा को राज्यसभा का टिकट दिया है. संदेश साफ है, लालू अब सवर्णों को भी नाराज करके बिहार में राजनीति करना नहीं चाहते हैं.

बिहार की सियासत में लालू को अब तक पिछड़ों का सबसे बड़ा नुमाईंदा और सत्ता तक पहुंचने के लिए यादव मुस्लिम समीकरण को साधने वाला नेता माना जाता रहा है. खासकर, अन्य ऊंची जातियों में लालू की छवि सवर्ण विरोधी आज भी बनी हुई है. अपनी पार्टी में हाल के दिनों में लालू ने कई ब्राह्मणों को जगह दी है, शिवानंद तिवारी को पार्टी में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तक बनाया है. इन सारी कवायदों के बाद भी लालू के पूर्व के बयानों को कोट करते हुए सवर्ण जातियों के लोग उन्हें अपना विरोधी मानते हैं. राजनीतिक जानकारों की मानें, तो राज्यसभा में इस बार के उम्मीदवार का चयन, इसी धारणा को बदलने का प्रयास है. मनोज झा दिल्ली विवि में प्रोफेसर हैं और काफी तेज तर्रार हैं. बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी के लिए चाणक्य की भूमिका निभाने वाले मनोज झा ने, अक्रामक चुनाव प्रचार की प्लानिंग की थी और मोहन भागवत के आरक्षण वाले बयान को मुद्दा बनाने की सलाह मनोज झा ने ही लालू को दी थी. लालू ने मनोज झा की पार्टी के प्रति निष्ठा और मेहनत को आगे रखते हुए, उन्हें उसका इनाम राज्यसभा की टिकट के रूप में दिया है.

राजनीतिक प्रेक्षक कहते हैं कि लालू को बिहार में आगे भी सत्ता के शीर्ष तक पहुंचने की राजनीति करनी है, उन्हें पता है कि मुस्लिम और यादव उनके पारंपरिक सपोर्टर हैं, उन्हें कोई तोड़ नहीं सकता. हाल के दिनों में सवर्ण विरोधी बनी छवि को एमबी समीकरण के जरिए ठीक किया जा सकता है. लालू ने मनोज झा को टिकट देकर सवर्णों में यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह उनके दुश्मन नहीं हैं. राज्यसभा के दूसरे उम्मीदवार अशफाक करीब काफी पैसे वाले बताये जाते हैं, साथ ही सीमांचल के पिछड़े जिले कटिहार से आते हैं. अशफाक सीमांचल में काफी लोकप्रिय हैं और खासकर गरीब मुस्लिम समुदाय पर उनका खासा प्रभाव है. अशफाक ने लगे हाथों लालू को इस फैसले के लिए धन्यवाद दिया है और मीडिया से बातचीत में कहा है कि विकास उनकी पहली प्राथमिकता है और मेरी कोशिश होगी कि मैं जिस इलाके से आता हूं, वहां कामकरूं और वहां के लोगों की समस्याओं का समाधान करूं. करीम ने कहा कि मेरा फोकस शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर रहेगा. राजद के इस फैसले के बाद पार्टी के अंदर उठ रही चर्चा पर बोलते हुए करीम ने यह भी कहा कि मुझे और मनोज झा को टिकट देने का फैसला लालू का है, इसलिए पार्टी में कोई नाराजगी नहीं है.

उधर, टिकट की घोषणा के वक्त पार्टी कार्यालय में संवाददाता सम्मेलन में प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे ने कहा कि राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद ने नाम का चुनाव किया है. पूर्वे ने कहा कि पार्टी अध्यक्ष लालू प्रसाद ने भोला यादव के द्वारा मैसेज भेजा. जिसमें राज्यसभा के लिए उम्मीदवारों के नाम को फाइनल किया. उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद है कि दोनों नेता राज्यसभा में पार्टी की आवाज को बुलंद करेंगे. प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि मनोज झा पार्टी के लिए हमेशा खड़े रहे. पार्टी का उन्होंने हर समय साथ दिया. पार्टी हर तबके को साथ लेकर चलती है. मतलब साफ है कि रामचंद्र पूर्वे को भी यह साफ निर्देश दिया गया था कि वह इस बात को जोर देकर लोगों के सामने रखें कि पार्टी हर तबके को साथ लेकर चलती है और साथ लेकर चलने में विश्वास रखती है. वैसे भी लालू सियासत के माहिर खिलाड़ी हैं, उन्हें पता है, कब कौन सा कदम उठाकर सियासत साधी जा सकती है.

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