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समाज के हर स्तर पर महिला सुरक्षा जरूरी

रंजना कुमारी सामाजिक कार्यकर्ता जब तक देश का नेतृत्व महिलाओं के लिए कोई बड़ा कदम नहीं उठायेगा, तब तक माहौल नहीं बदलेगा. मसलन, संसद में महिला आरक्षण बिल पास हो जाये. सरकार और संसद में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी, तो उन्हें लेकर समाज का नजरिया भी बदलेगा. साल 2015 की शुरुआत में ही महिला सुरक्षा […]

रंजना कुमारी
सामाजिक कार्यकर्ता
जब तक देश का नेतृत्व महिलाओं के लिए कोई बड़ा कदम नहीं उठायेगा, तब तक माहौल नहीं बदलेगा. मसलन, संसद में महिला आरक्षण बिल पास हो जाये. सरकार और संसद में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी, तो उन्हें लेकर समाज का नजरिया भी बदलेगा.
साल 2015 की शुरुआत में ही महिला सुरक्षा के लिए लॉन्च किये जा रहे एप्प अपने आप में एक शुभ लक्षण है.
कई राज्य सरकारों ने इस तरह की शुरुआत की है, ताकि तकनीक का प्रयोग कर महिलाएं जरूरत पड़ने पर पुलिस को सूचित कर सकें. दिल्ली में ‘हिम्मत’ एप्प लॉन्च हुआ है और दिल्ली पुलिस की यह पहल स्वागतयोग्य है. लेकिन इस सुविधा को थोड़ा सहज किये जाने की जरूरत है, ताकि हर महिला तक यह पहुंच सके. अभी ‘हिम्मत’ डाउनलोड करने के लिए एंड्रॉयड मोबाइल होना चाहिए और उसका इंटरनेट से कनेक्ट होना जरूरी है. एप्प खुलने में कम से कम दो मिनट का समय लेता है. बिना इंटरनेट के यह काम नहीं करेगा.
हालांकि, मुसीबत में तत्काल सूचना पहुंचाने का यह एक अच्छा तरीका है. लेकिन सवाल सिर्फ सूचना पहुंचने भर का नहीं है. हम उस समाज में रह रहे हैं, जहां लोगों के सामने घटना हो जाती है और लोग मूक बन कर देखते रहते हैं. निर्भया के मामले में यह हुआ. दिल्ली में हाल ही में हुए एसिड अटैक में भी यही हुआ. पीड़ित चिल्लाती रही और लोग खड़े होकर देखते रहे. इसलिए अहम बात यह है कि लोगों में चेतना और मदद करने की भावना कितनी है. इससे भी आगे बढ़ें तो सवाल यह भी है कि इस एप्प से सूचना मिलने पर तत्काल एक्शन लेने के लिहाज से पुलिस की तैयारी कितनी है. तकनीक के तंत्र को तो आप नियंत्रित कर सकते हैं, लेकिन मानव तंत्र को कैसे नियंत्रित करेंगे? वह भी तब, जब लगातार पुलिस के काम करने के तरीके और मानसिकता में बदलाव की जरूरत जतायी जा रही हो. मैं एक बार जर्मनी के म्यूनिख शहर में यात्र कर रही थी, वहां के पुलिस प्रमुख ने मुङो दिखाया कि किस तरह 5 से 7 मिनट में सूचना मिलने पर उनकी पुलिस घटनास्थल पर पहुंच कर तुरंत जवाबी कार्रवाई करती है. अपराधी को गिरफ्तार कर तत्काल पीड़िताको मदद पहुंचाती है. हमारे यहां भी पहले से यह सुनिश्चित करना होगा कि सुनियोजित ढंग से कैसे पुलिस तत्काल पहुंचे.
एक जरूरी बात यह है कि इस तरह के एप्प का इस्तेमाल सिर्फ एंड्रॉयड फोन पर ही किया जा सकता है. आम महिला के हाथ में हजार रुपयेवाले फोन होते हैं, तो जाहिर है उनकी सुरक्षा के दूसरे तरीके लाने होंगे. खासतौर पर लोवर मिडिल क्लास, मिडिल क्लास की लड़कियां, जो बसों में चल रही हैं, सड़कों पर हैं या ऑटो रिक्शे में जा रही हैं या सरकारी स्कूलों में पढ़ रही हैं, उन्हें ध्यान में रखते हुए सुरक्षा की पहल की जानी चाहिए. गांव में, मलिन बस्तियों में रहनेवाली लड़कियों और महिलाओं की सुरक्षा के लिए भी अलग कदम उठाये जायें. सिर्फ सूचना देने से सुरक्षा और समाधान नहीं मिलेंगे. बाजार में बहुत सारे एप्प हैं, लेकिन यह तभी प्रभावशाली होंगे, जब इनके लिए प्रॉपर रिस्पांस सिस्टम तैयार किया जायेगा.
हाल ही में एक खबर आयी कि बदायूं में पुलिसवालों ने एक 14 साल की लड़की का थाने में खींच कर रेप किया. इसलिए देखना भी जरूरी है कि पुलिस के दिमाग के तंत्र की इंजीनियरिंग कैसे की जायेगी. जिस देश में पुलिस खुद ही रक्षक की जगह भक्षक बनी हुई हो, वहां आप कोई भी तंत्र ले आयें, वह कैसे काम करेगा! तकनीक आपने बना दी, लेकिन उसके पीछे काम करनेवाले तंत्र को आपने दुरुस्त नहीं किया तो कैसे सफलता मिलेगी. हम लोगों ने पीड़ित के लिए वन स्टॉप क्राइसेस सेंटर बनाने की मांग की थी.
ताकि पीड़ित को यहां-वहां भटकना ना पड़े. जांच के लिए डॉक्टर, कानूनी सलाह व पुलिस की कार्रवाई के लिए अधिकारी एक ही सेंटर पर मिलें. रेप विक्टिम को सुरक्षा और आघात से उबरने का माहौल मिल सके. अभी उसे किसी भी अस्पताल के इमरजेंसी में स्ट्रेचर पर छोड़ दिया जाता है. लोग आते-जाते रहते हैं. देखते रहते हैं, सवाल पूछते रहते हैं. कोई जगह नहीं है, जहां प्राइवेसी हो और रेप विक्टिम का ठीक से उपचार हो सके. साइकोलॉजिकल काउंसलिंग हो सके. निर्भया फंड से वन स्टॉप क्राइसेस सेंटर बनाने की बात कही गयी थी. यह अभी तक नहीं हुआ और सुनने में आ रहा है कि अब होगा भी नहीं, क्योंकि इसकी आवश्यकता नहीं समझी जा रही है. अगर इस तरह से सुरक्षा की जिम्मेवारी से सरकारें पीछे हटेंगी, तो कैसे महिलाओं को सुरक्षा मिलेगी?
महिला सुरक्षा के मामले में अभी कई स्तरों पर काम करने की जरूरत है. हम इस तरह की व्यवस्था में रह रहे हैं, जहां साल के पहले दिन ही ऑफिस पहुंच कर यह पता चलता है कि पुलिस कर्मियों ने एक बच्ची का रेप किया. एक 19 साल की लड़की को प्यार करने की सजा पिता ने गला दबा कर उसकी जान लेकर दी. इसलिए हमारे देश, सरकार और समाज के सामने महिला सुरक्षा को लेकर एक बहुत बड़ा प्रश्नचिह्न् है. सरकार को सबसे पहले कानून व्यवस्था को सुधारने की जरूरत है. जब तक यह मानसिकता रहेगी कि हम छूट सकते हैं,तब तक महिला अपराधों को रोका नहीं जा सकता. दूसरा, समाज को तमाशबीन बनने की बजाय सामूहिक जिम्मेवारी लेनी होगी. परिवार में जब तक बेटा-बेटी का भेद होगा, तब तक महिला सुरक्षा सुनिश्चित नहीं होगी. बेटियों को स्कूल भेजा जाये, तो बदलाव संभव है. संपत्ति, शिक्षा और स्वास्थ्य के स्तर पर तमाम परिवारों के भीतर जेंडर इक्वलिटी (लिंग समानता) का मूल्य स्थापित करना होगा.
देश में महिला साक्षरता दर 66.45 है. यानी अभी 24 फीसदी लड़कियां स्कूल तक नहीं पहुंच पायी हैं. कार्य सहभागिता में अभी सिर्फ एक-तिहाई महिलाएं ही हैं. 2013 में 8,083 दहेज हत्या के मामले दर्ज हुए. वर्ल्ड डेवलपमेंट की एक रिपोर्ट में 142 देशों में महिलाओं के स्वास्थ्य के मामले में भारत सबसे नीचे 142वें स्थान पर था. इसलिए महिलाओं का सर्वागीण विकास और सशक्तिकरण सुरक्षा की पहली शर्त है. जब तक इस तरफ ध्यान नहीं दिया जायेगा, तब तक बदलाव मुश्किल है. यह स्वागतयोग्य है कि उनकी सुरक्षा के लिए एप्प लॉन्च हो रहा है, लेकिन यह सब शिक्षा के बिना कारगार नहीं होगा. महिलाओं के साथ होनेवाली हिंसा के लिए राजनेताओं के महिला को ही दोषी बतानेवाले बयान भी जिम्मेवार हैं. इसे भी रोकना होगा. साथ ही जब तक देश का नेतृत्व महिलाओं के लिए कोई बड़ा कदम नहीं उठायेगा, तब तक माहौल नहीं बदलेगा. मसलन, संसद में महिला आरक्षण बिल पास हो जाये. सरकार और संसद में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी, तो उन्हें लेकर समाज का नजरिया भी बदलेगा. शिक्षा, सुरक्षा और स्वास्थ्य के साथ ही समाज के हर स्तर पर महिलाओं को मजबूत करना जरूरी है.
(बातचीत : प्रीति सिंह परिहार)

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