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कांग्रेस के साथ-साथ पत्नी दीपा ने भी छोड़ दिया था प्रियरंजन दासमुंशी का साथ!

कोलकाता : एक वक्त था, जब प्रियरंजन दासमुंशी पश्चिम बंगाल ही नहीं, राजधानी दिल्ली में भी कांग्रेस के सबसे प्रिय नेता हुआ करते थे. प्रिय दा को जब ब्रेन हेमरेज हुआ, तो पूरी कांग्रेस चिंतित हो उठी थी. उन्हें सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा उपलब्ध करवाने की पूरी व्यवस्था की गयी. जर्मनी में उनका इलाज कराया गया. ग्रेट […]

कोलकाता : एक वक्त था, जब प्रियरंजन दासमुंशी पश्चिम बंगाल ही नहीं, राजधानी दिल्ली में भी कांग्रेस के सबसे प्रिय नेता हुआ करते थे. प्रिय दा को जब ब्रेन हेमरेज हुआ, तो पूरी कांग्रेस चिंतित हो उठी थी. उन्हें सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा उपलब्ध करवाने की पूरी व्यवस्था की गयी. जर्मनी में उनका इलाज कराया गया. ग्रेट ब्रिटेन के बड़े-बड़े डॉक्टरों की राय ली गयी, ताकि कांग्रेस और अन्य दलों में समान रूप से प्रिय दा ठीक हो जायें. फिर से राजनीति में सक्रिय हो जायें. लेकिन, प्रिय दा के प्रति कांग्रेस की यह राय अंतिम दिनों तक नहीं रही. यहां तक कि उनकी पत्नी दीपा दासमुंशी ने भी उनका साथ छोड़ दिया.

यहां तक कि कुछ ही दिनों बाद प्रियरंजन दा की पत्नी दीपा दासमुंशी ने भी उनकी देखरेख करना छोड़ दिया. हालांकि, वर्ष 2008 में उनकी पहल पर ही प्रिय दा को ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडकिल साईंसेज (एम्स) से अपोलो अस्पताल में शिफ्ट किया गया था. लेकिन, प्रिय दा की स्थिति में सुधार न होता देख, उन्होंने भी अस्पताल आना कम कर दिया. धीरे-धीरे अस्पताल जाना बंद ही कर दिया.

9 साल तक कोमा में रहे प्रियरंजन दासमुंशी का निधन

कभी प्रियरंजन दासमुंशी के निजी सचिव रहे पीपी सिंह ने बताया कि वर्ष 2008 से दासमुंशी कोमा में हैं. कुछ दिनों तक तो लोग उनकी जानकारी लेते रहे. लेकिन, बाद में सभी लोगों ने उन्हें लगभग भुला ही दिया. यहां तक कि प्रियरंजन दा की 72वीं सालगिरह पर भी कोई उनसे मिलने नहीं आया. श्री सिंह की मानें, तो दीपा दासमुंशी को भी हाल के दिनों में अस्पताल में कभी नहीं देखा गया. ज्ञात हो कि दिल्ली में पीपी सिंह ही प्रियरंजन दासमुंशी की देखरेख कर रहे थे.

उन्होंने बताया कि पहले कभी-कभार दीपा दासमुंशी उन्हें देखने के लिए अस्पताल आती थीं. बाद में उन्होंने आना लगभग बंद ही कर दिया. श्री सिंह ने बताया कि संक्रमण की वजह से प्रिय दा को घर नहीं भेजा जा सकता था. हालांकि, अस्पताल के उनके केबिन में उन्हें ह्वीलचेयर पर हर दिन घुमाया जाता था. यदा-कदा कांग्रेस का कोई नेता फोन पर प्रियरंजन बाबू के बारे में जानकारी ले लेता. लेकिन, कभी कोई उन्हें देखने नहीं आया.

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उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान प्रियरंजन दासमुंशी को स्टार प्रचारकों की सूची में रखा गया था. हालांकि, वह उसके बहुत पहले से अस्पताल में भरती थे. राजनीतिज्ञ बताते हैं कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस को खड़ा करने में प्रियरंजन दासमुंशी ने अहम भूमिका निभायी थी. पहले छात्र नेता के रूप में और फिर पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस के नेता के रूप में दासमुंशी ने सुब्रत मुखर्जी के साथ मिलकर कांग्रेस को राज्य में स्थापित किया.

राजनीति के आसमान में चमकने वाले इस स्टार ने खेल की दुनिया में भी अपनी छाप छोड़ी. प्रियरंजन दा के निधन से पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक बड़ा शून्य आ गया है, जिसे निकट भविष्य में भर पाना कांग्रेस के लिए कठिन होगा.

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