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Thursday, March 28, 2024

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पानी में फ्लोराइड और आर्सेनिक की बढ़ती मात्रा जानलेवा

विगत वर्षों में देश में भूजल का गिरता स्तर स्पष्ट संकेत देने लगा है कि भविष्य में हालात और भी ज्यादा गंभीर हो सकते हैं. केंद्रीय भूजल बोर्ड के वर्ष 2016 में मानसून-पूर्व के अध्ययन के नतीजे न केवल चौंका रहे हैं, बल्कि चिंता में भी डाल रहे हैं. केवल यह कहना कि बारिश कम […]

विगत वर्षों में देश में भूजल का गिरता स्तर स्पष्ट संकेत देने लगा है कि भविष्य में हालात और भी ज्यादा गंभीर हो सकते हैं. केंद्रीय भूजल बोर्ड के वर्ष 2016 में मानसून-पूर्व के अध्ययन के नतीजे न केवल चौंका रहे हैं, बल्कि चिंता में भी डाल रहे हैं. केवल यह कहना कि बारिश कम हुई है इसलिए ऐसा हो रहा है, कतई तर्कसंगत नहीं होगा.

भूजल स्तर में हुई कमी के अन्य महत्वपूर्ण कारकों को भी समझना अति आवश्यक है. प्राकृतिक स्रोतों का सूखना और अनियोजित विकास भी कहीं न कहीं गिरते भूजल स्तर के लिए जिम्मेदार है. सालों पहले जो पानी जमीन के नीचे पहुंच कर भूजल के स्तर को बरकरार रखता था आज वो ही बेकार चला जाता है..रेनवाटर हार्वेस्टिंग पर अमल न होना भी भूजल स्तर में आ रही गिरावट की एक महत्वपूर्ण वजह है. फिर समस्या भूजल स्तर में आ रही कमी की ही नहीं है, पानी का जहरीला होना और भी चिंताजनक है.

भूजल विकास और प्रबंधन पर जल संसाधन मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समिति की पिछले दिनों हुई बैठक में पेश की गई रिपोर्ट ने यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि आने वाले दिनों में बूंद-बूंद पानी के लिए देश में हाहाकार मच सकता है। ‘वाटर एडÓ के शोध पर आधारित रिपोर्ट ने इस बात की पुष्टि की है कि देश के साढ़े चार सौ से ज्यादा जिलों में भूजल बेहद प्रदूषित हो चुका है. इन जिलों में भूजल में फ्लोराइड, आर्सेनिक, आयरन, सीसा, नाइट्रेट, सोडियम और क्रोमियम जैसे घातक रसायन मिले पाए गए हैं.

विश्व के पैंतीस देशों में तीस करोड़ से अधिक की आबादी फ्लोराइड की गिरफ्त में है. अपने देश में तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, केरल, बिहार, आंध्र प्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे राज्य भी फ्लोराइड और आर्सेनिक की चपेट में हैं. देश में करीब 4.9 करोड़ लोग हर साल प्रदूषित पानी पीने से बीमार पड़ रहे हैं. बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान सहित पंद्रह राज्यों के भूजल में आर्सेनिक की मात्रा 0.06 मिलीग्राम प्रति लीटर से ज्यादा हो चुकी है. करीब पच्चीस राज्यों में फ्लोराइड की मात्रा 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक, आयरन की मात्रा 2 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक, नाइट्रेट 48 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक, सीसा 0.02 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक और क्रोमियम की मात्रा 0.05 मिलीग्राम प्रति लीटर से भी अधिक है. उत्तराखंड जो कि गंगा और यमुना का मायका है, यहां के सैंतालीस स्थानों पर भूजल रसातल में पहुंच चुका है जिनमें हरिद्वार, देहरादून और नैनीताल भी शामिल हैं. शोधकर्ताओं के मुताबिक भूजल गिरने के पीछे मूल रूप से बारिश की कमी, रेनवाटर हार्वेस्टिंग न करना, अनियोजित निर्माण से जल-स्रोतों का सूखना व भूजल में सुधार को लेकर सरकारी उदासीनता भी शामिल है.

नीति आयोग के मुताबिक, भूजल का अस्सी फीसद उपयोग कृषिक्षेत्र में किया जाता है. आजादी के समय देश में प्रतिव्यक्ति पानी की उपलब्धता सात हजार क्यूबिक मीटर थी. यह कम होकर वर्ष 2001 में दो हजार क्यूबिक मीटर रह गई. भूवैज्ञानिकों के मुताबिक, वर्ष 2025-26 में यह उपलब्धता घट कर बारह सौ क्यूबिक मीटर रह जाएगी. नीति आयोग का कहना है कि देश की बत्तीस फीसद आबादी का इलाका पानी की गहन समस्या से जूझ रहा है, जबकि विश्व बैंक का कहना है कि भारत में अड़तालीस फीसद अंचलों में पानी की समस्या है जिनमें चौबीस फीसद का पानी जहरीला हो चुका है। वर्षाजल संरक्षण और उचित जल प्रबंधन ही एकमात्र विकल्प है। इसके बगैर हमारा कोई भविष्य नहीं है। बोरिंग व ट्यूबवेल पर नियंत्रण लगना चाहिए. तभी जाकर पानी की बर्बादी को रोकना संभव हो पाएगा

एक अध्ययन के मुताबिक, भूजल के अस्सी फीसद हिस्से का हम इस्तेमाल कर चुके हैं और उसके बाद भी उसका दोहन निरंतर करते जा रहे हैं. वर्ष 1922 में एक चेतावनी दी गई थी कि वर्ष 2025 में विश्व में पानी के लिए लड़ाइयां होंगी. काफी पहले दी गई इस चेतावनी के प्रति हम आज भी बेपरवाह बने हुए हैं. जल संरक्षण पर विशेष रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है. जहां कम वर्षा होती है वहां भी जल संरक्षण के माध्यम से पानी को बर्बाद होने से बचाया जा सकता है.

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