36.9 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

बदल रहा भारत: तीन दिन में फिल्में कमा लेती हैं 100 करोड़

अब फिल्म बनाने के लिए गाड़ी-बंगला गिरवी नहीं रखना पड़ता एक जमाना था, जब फिल्में सिनेमा हॉलों में महीनों लगी रहती थीं. लोग एक-एक फिल्म 10-10, 20-20 बार देखा करते थे. टिकट खिड़कियों पर मार होती थी. पहले दिन पहला शो देखने के लिए लोग देर रात से लाइन में लग जाया करते थे. अब […]

अब फिल्म बनाने के लिए गाड़ी-बंगला गिरवी नहीं रखना पड़ता

एक जमाना था, जब फिल्में सिनेमा हॉलों में महीनों लगी रहती थीं. लोग एक-एक फिल्म 10-10, 20-20 बार देखा करते थे. टिकट खिड़कियों पर मार होती थी. पहले दिन पहला शो देखने के लिए लोग देर रात से लाइन में लग जाया करते थे. अब ये नजारे नहीं दिखते. परदेवाले थियेटर का स्थान मल्टीप्लेक्स ने लिया है.

लोग आराम से इंटरनेट पर टिकट बुक करते हैं. अब दर्शकों की भीड़ भले ही वैसी न दिखती हो, पर सिनेमा का कारोबार बहुत बढ़ गया है. हमारी श्रृंखला ‘बदल रहा भारत’ में आज पढ़िए सिनेमा उद्योग में आये इस बदलाव के बारे में.

दादा साहेब फाल्के ने 3 मई 1913 को भारत की पहली फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ दर्शकों के सामने पेश की थी. उन्हें इस फिल्म के लिए पत्नी के गहने तक बेचने पड़े थे. रुपहले परदे पर रेंगती तसवीरों का सम्मोहन कुछ ऐसा था कि इस जोखिम को लेने के लिए धीरे-धीरे एक पौध तैयार हो गयी. भारतीय सिनेमा के शुरुआती दशक में कुल 91 फिल्में बनीं.

इसकेसौ साल बाद भारतीय सिनेमा उद्योग का चेहरा पूरी तरह बदल चुका है. आज हर साल एक हजार से ज्यादा फिल्में यहां बनती हैं. उद्योग संगठन, एसोचैम के मुताबिक भारतीय फिल्म उद्योग की आमदनी पिछले साल के 8190 करोड़ की तुलना में 56 फीसदी बढ़ कर 2015 तक 12,800 करोड़ रुपये हो जायेगी. देश में 12,000 से ज्यादा थिएटर स्क्रीन, 400 से ज्यादा प्रोडक्शन हाउस और विशाल दर्शक संख्या है.

उदारीकरण की शुरु आत के साथ फिल्म का अर्थशास्त्र पूरी तरह मुनाफे के सिद्धांत पर चलना शुरू हुआ. प्रवासी भारतीयों ने फिल्मों में पैसा लगाना शुरू किया. 2001 में एनडीए सरकार ने फिल्मों को उद्योग का दर्जा दिया और अब तो फिल्म उद्योग का पूरी तरह कॉरपोरेटीकरण हो चुका है. फिल्म निर्माण से लेकर फिल्म बेचने के तरीकों में इस कदर बदलाव आया है कि फ्लॉप-हिट की परिभाषा धूमिल हो गयी है.

आज यूटीवी मोशन पिक्चर्स, इरॉस, रिलायंस इंटरनेटमेंट, एडलैब्स, वायकॉम 18, बालाजी टेलीफिल्म्स और यशराज फिल्म्स जैसे प्रोडक्शन हाउस ने फिल्मों का पूरा खेल बदल दिया है. इनका फिल्मों में पैसा लगाने का तरीका भी अलग है. अब ये फिल्म नहीं ‘पोर्टफोलियो मैनजमेंट’ करते हैं. केबल व सेटेलाइट अधिकार, विदेश वितरण, संगीत, होम वीडियो और न्यू मीडिया जैसे मंचों के लिए अलग अधिकार बेचे जाते हैं और इनसे प्रोडक्शन हाऊस को जबरदस्त आय होती है. आज मीडिया में प्रसारित होने वाले कुल कंटेंट का लगभग एक तिहाई बॉलीवुड से संबंधित हैं.

अब पहले की तरह फ्लॉप फिल्म के निर्माता को कर्ज अदा करने के लिए शायद ही अपना बंगला-गाड़ी गिरवी रखना पड़ता हो.

फिल्म की कमाई के नये तरीकों के ईजाद के बाद तो फ्लॉप फिल्में भी अपनी लागत निकाल ले रही हैं. सितारों पर टिके बॉलीवुड के अर्थशास्त्र को कॉरपोरेट कंपनियों ने अपनी पूंजी के आसरे मुनाफा कमाने के फॉर्मूले से जोड़ने में बहुत हद तक सफलता हासिल कर ली है. आज महंगी फिल्में ढाई से तीन हजार प्रिंटों के साथ रिलीज की जाती हैं, जो धुआंधार प्रचार के घोड़े पर सवार होकर तीन दिन में ही लागत के साथ मुनाफे का किला फतह कर लेती हैं.

चाहे वो दर्शकों की कसौटी पर खरी उतरें या न उतरें. इस साल जनवरी में आयी सलमान खान स्टारर जय हो इसका बेहतरीन उदाहरण है.

आज हर शुक्र वार को दो-तीन फिल्में रिलीज हो रही हैं, लिहाजा फिल्मों का भविष्य पहले तीन दिन में ही तय होने लगा है. मल्टीप्लेक्स ने फिल्म देखने के तौर-तरीके में बदलाव कर दिया. आज ‘ए वेडनेसडे’,‘ पीपली लाइव’, ‘डर्टी पिर’, ‘कहानी’, ‘पान सिंह तोमर’, ‘शाहिद’ जैसी फिल्में अगर दर्शकों तक पहुंच रही हैं तो इसकी वजह छोटे स्क्रीन्स और मल्टीप्लेक्सेज हैं, जिनकी मदद से छोटे निर्माता केवल कंटेंट के दम पर अपनी कम बजट की भी फिल्म की लागत से तीन-चार-पांच गुना राशि कमा ले रहे हैं.

उदाहरण के लिए 3.5 करोड़ की लागत में बनी ‘ए वेडनसडे’ ने 11 करोड़ का कारोबार किया, छह करोड़ की लागत से बनी ‘पीपली लाइव’ ने लगीाग 30 करोड़ का, आठ करोड़ की ‘कहानी’ ने 75 करोड़, पांच करोड़ की विक्की डोनर ने 40 करोड़ और साढ़े चार करोड़ की लागत से बनी पान सिंह तोमर ने 25 करोड़ का कारोबार किया.

बॉक्स ऑफिस इंडिया के मुताबिक तत्कालीन मुद्रास्फीति के आकलन के बाद भारतीय सिनेमा के इतिहास में 50 फिल्मों ने 100 करोड़ से ज्यादा का कारोबार किया है. इनमें से अधिकांश 2006 के बाद रिलीज हुईं. दिलचस्प यह है कि अब फिल्मकारों का नया लक्ष्य 600 करोड़ का है, क्योंकि चार-पांच सौ करोड़ का लक्ष्य भी कई निर्माता हासिल कर चुके हैं.

दुनिया भर में धूम 3 530 करोड़, चेन्नई एक्सप्रेस 395 करोड़, थ्री ईडियट्स 392 करोड़, किक 360 करोड़ की कमाई कर चुकी हैं. इस साल रिलीज लगभग सारी बड़ी फिल्में सौ करोड़ से अधिक की कमाई कर चुकी हैं. इस साल रिलीज ‘क्वीन’ से लेकर ‘गुंडे’, ‘एक विलेन’, ‘हॉलिडे’, ‘2 स्टेट्स’, ‘किक’ और ‘सिंघम रिटर्न्‍स’ तक सौ करोड़ क्लब में एंट्री पा चुकी हैं. ऐसे में अब कहा जा सकता है कि बॉलीवुड के भी अच्छे दिन आ चुक हैं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें