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जन्मदिन पर विशेष : विश्व पटल तक पहुंचा परमहंस योगानंद का क्रिया योग

भारत सदियों से ऋषियों-महर्षियों का देश रहा है. यहां के ऋषियों ने विश्व को अपने दिव्य ज्ञान से अनुप्राणित किया, जिसके कारण संपूर्ण मानव जगत स्वयं को उत्कृष्टता के सर्वोच्च शिखर पर खुद को ले जाने के लिए हमेशा से तत्पर रहा है. इन्हीं ऋषियों की परंपराओं में एक परमहंस योगानंद हुए, जिन्हाेंने पूरे विश्व […]

भारत सदियों से ऋषियों-महर्षियों का देश रहा है. यहां के ऋषियों ने विश्व को अपने दिव्य ज्ञान से अनुप्राणित किया, जिसके कारण संपूर्ण मानव जगत स्वयं को उत्कृष्टता के सर्वोच्च शिखर पर खुद को ले जाने के लिए हमेशा से तत्पर रहा है. इन्हीं ऋषियों की परंपराओं में एक परमहंस योगानंद हुए, जिन्हाेंने पूरे विश्व में पूर्व से पश्चिम के बीच जो दूरियां थीं, उन्हें अपने आध्यात्मिक प्रकाश से सदा के लिए मिटा दिया.

आज भी उनके द्वारा फैलायी गयी क्रिया योग प्रविधि विश्व में अध्यात्म की नयी ज्वाला से पूरे मानव समाज को झंकृत कर रही है. लोग क्रिया योग के माध्यम से स्वयं और समाज दोनों को अनुप्राणित कर रहे हैं. यह क्रिया योग वह योग है, जिसकी कभी व्याख्या भगवान कृष्ण ने गीता में की. कभी महावतार बाबा जी ने लाहिड़ी महाशय से की. बाद में लाहिड़ी महाशय द्वारा स्वामी युक्तेश्वर गिरि से की गयी और फिर स्वामी युक्तेश्वर गिरि के माध्यम से परमहंस योगानंद तक पहुंची.

आज तो योगदा सत्संग सोसाइटी और सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप के माध्यम से यह जन-जन तक पहुंच रही है. क्रिया योग का ही प्रभाव है कि लोग आज जिन समस्याओं से जूझ कर अपनी जिंदगी को तनाव युक्त कर ले रहे हैं. उनसे वे मुक्ति पाने का अमोघ वैज्ञानिक प्रयास कर रहे हैं. आज स्थिति यह है कि लोग क्रिया योग के माध्यम से तनाव मुक्त होकर, ध्यान प्रविधियों से स्वयं को बेहतर स्थिति में पा रहे हैं. इसका सारा श्रेय परमहंस योगानंद जी को जाता है.

आज हम उनकी जन्मदिन मना रहे है. उनके चाहने वाले बड़े ही धूम-धाम से पूरे विश्व में उनकी जयंती मना रहे हैं. उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर रहे हैं. आज का दिन खास कर के किसी भी योगदा संन्यासी व भक्त के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है, क्योंकि आज उनके गुरु परमहंस योगानंद का प्रादुर्भाव हुआ था. ये परमहंस योगानंद ही थे, जिन्होंने भारत के क्रिया योग को विश्व पटल पर स्थापित किया.

योगानंद की लिखी पुस्तक ऑटोबायोग्राफी ऑफ योगी (योगी कथामृत) सर्वाधिक बिकनेवाली आध्यात्मिक पुस्तकों में से एक है. इसके बारे में कई आध्यात्मिक चिन्तकों, राजनीतिज्ञों, फिल्म अभिनेता व अभिनेत्रियों, खेल से जुड़े खिलाड़ियों व अन्य प्रसद्धि लोगों ने कहा है कि एक बार भी इसे पढ़ने पर वे परमहंस योगानंद से अत्यंय प्रभावित हुए. परमहंस योगानंद द्वारा लिखित यह पुस्तक को पढ़ने के बाद किसी भी व्यक्ति की आध्यात्मिक भूख बढ़ती चली जाती है.

उनका जीवन प्रगति के शिखर को छूने को अथवा जिस कारण से मनुष्य ने जीवन धारण किया है, उसे जानने की ओर चलने लगता है. इससे उस व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति बहुत तेज़ी से होने लगती है. देखते ही देखते वह व्यक्ति बहुत जल्द आगे की ओर निकल जाता है.

योगदा सत्संग के उपाध्यक्ष स्वामी स्मरणानन्द गिरि कहते हैं कि आज का दिन किसी भी योगदा भक्त के लिए काफी मायने रखता है. आज के दिन लोगों को चाहिए कि वे स्वयं को अपने गुरु के प्रति समर्पित कर दें.

इसका मतलब है कि आपकी सारी जिम्मेदारी गुरु की है, आपकी आध्यात्मिक उन्नति से लेकर जितनी भी उन्नतियों पर आपका अधिकार है, वे गुरु उसे अवश्य दिलवायेंगे. अगर आपके अंदर इस बात का दृढ़ वश्विास है तो योगदा के संन्यासियों की बात करें. वे बताते कि अगर आप परमहंस योगानंद के सान्निध्य को प्राप्त कर अपनी दिनचर्या में ध्यान को सदा के लिए समायोजित कर लेते हैं, तो फिर आपकी उन्नति अवश्यम्भावी है. इस पर किन्तु, परन्तु होता ही नहीं, क्योंकि परमहंस योगानंद उन सारे योगदा के भक्तों के ज्यादा निकट हैं.

उन्हें अपना गुरु मान रखा है और जो उनके दिखाये गए मार्ग पर चल रहे है. योगी कथामृत में परमहंस योगानंद ने जो बातें लिखी हैं, वो इतनी रहस्यमय हैं कि जैसे-जैसे आप एक-एक करके पन्नों को पढ़ते जायेंगे, आपकी उत्सुकता बढ़ती जायेगी. योगानंद का बचपन बार-बार हिमालय की ओर भागनाए उनके परिवार के सदस्यों द्वारा बार-बार उन्हें रोकने की कोशिश, स्वामी युक्तेश्वर गिरि से उनकी हुई भेंट, गुरु-शिष्य की परम्परा का पालन करते हुए अध्यात्म के मार्ग की ओर निकल पड़ना, स्वामी युक्तेश्वर गिरि के आदेश से ही पश्चिम की ओर प्रस्थान करना, तथा भारत के प्रति उनका अकाट्य अनुराग बताता है, परमहंस योगानंद क्या थे.

रांची का योगदा मठ याेगदा की शिक्षा देता है

रांची में 1917 में उनके द्वारा स्थापित योगदा मठ आज भी उनके जीवन-दर्शन में मुख्य भूमिका निभाता है. आज भी इस मठ में जायेंगे तो वहां वह लीची का पेड़ है, जहां बैठकर परमहंस योगानंद लोगों को योगदा की शिक्षा देते थे. उसे देखकर आप रोमांचित हो जायेंगे. उस वृक्ष के नीचे बिना कुछ पल बिताये जाना नहीं चाहेंगे. यही नहीं वहां एक कमरा भी है, जहां रहकर परमहंस योगानंद ने कुछ समय बिताया. आज भी योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया ने इन सभी संस्मरणों को धरोहर के रूप में बचा कर रखा है, जो योगदा के भक्तों के लिए प्रेरणादायक है.

सचमुच आज परमहंस योगानंद जी का जन्मदिन. हम सभी के लिए संकल्प का दिन है कि हम इन महान सत्गुरु के बताये मार्ग पर चलें. प्राचीन क्रिया योग विधि की शिक्षा लें, निरन्तर ध्यान करते हुए, स्वयं को आध्यात्मिक मार्ग पर ले चलें. इससे हम स्वयं तो आलोकित होंगे ही औरों को भी आलोकित करेंगे ताकि अपना भारत और आगे की ओर अग्रसर हो पूर्व और पश्चिम की दूरियां मिट सकें, जिससे आध्यात्मिक उन्नति पर सबका अधिकार हो.

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